भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुंडली (Horoscope) को जीवन का दर्पण माना गया है। जन्म के समय ग्रहों की स्थिति और नक्षत्रों की गणना के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव, भाग्य और भविष्य का अंदाज़ा लगाया जाता है। लेकिन सवाल यह है कि Kundli kaise dekhe? कुंडली देखने की शुरुआत हमेशा मूलभूत तत्वों – 12 राशियाँ, 12 भाव, 27 नक्षत्र और 9 ग्रह – से होती है। इनका सही ज्ञान होने पर ही आप लग्न कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं।
तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का करते हैं श्री गणेश और अपनी जन्म कुंडली पढ़ने का आरंभ करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
लग्न कुंडली कैसे पढ़ें?

प्रत्येक ग्राफ ऐसा ही होगा और धीरे-धीरे आपको सब समझ भी आएगा लेकिन शुरुआत में थोड़ा सा अधिक अभ्यास आपको करना होगा और फिर सबकुछ आसान हो जाएगा; सबसे पहले हमको कुंडली के घर पता होना चाहिए कि कौनसा सा घर कहाँ पर है तभी Kundli kaise dekhe? का अगला चरण समझ आयेगा।
तो चित्र-1 में देखो 1H जहाँ लिखा है वो कुंडली का पहला घर है और इसी को लग्न कहा जाता है,, फिर क्रमशः 2H, 3H, 4H, 5H, 6H, 7H, ……… 12H जैसा कि बताया गया कि कुंडली के बारह घर ही होते हैं और ये घर हमेशा स्थिर रहते हैं अर्थात् जहाँ पहला घर है वो हमेशा वहीं रहेगा लेकिन ये कभी किसी भी कुंडली में लिखे नहीं होते हैं; आपको ये याद करने होंगे कि कुंडली का पहला घर कहाँ है और सातवाँ या बारहवाँ कहाँ है।
कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं?
कुंडली के 12 भावों के आगे बढ़ने का क्रम भी यही रहता है कि 1H पहला कदम और अब आगे बढ़ेंगे तो दूसरा कदम 2H ,, आगे तीसरा कदम 3H….. क्रमशः इसी तरह आगे बढ़ते हुए 12H तक यह क्रम जाता है; जैसे चित्र 1 में arrow ͢ आगे बढ़ते हुए क्रम में बने हुए…… बस शुरुआत में थोड़ा सा ध्यान से मेहनत करना है फिर यही सब आगे जाके आपके लिए बहुत आसान हो जाएगा; यक़ीन कीजिए आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा।
अभी तक हमें कुंडली के घर कहाँ है और उनको कैसे गिना जाता है और ये कुंडली के भाव स्थिर रहते हैं ये सीखा तो अब चित्र-2 की तरफ़ चलते हैं। चित्र-2 में 1H, 2H, 3H, 4H, 5H, 6H, 7H, ……… 12H भी लिखे हुए हैं और साथ में कुछ 1 से 12 तक नंबर भी लिखे हुए हैं; तो ये नंबर कुछ और नहीं 1 से 12 तक की राशियाँ है। जैसे चित्र-2 में 1H में 1 लिखा है आर्थत् मेष राशि, उसी तरह 2 यानि वृषभ राशि। 1H में 1 लिखा है – हो सकता है वहाँ आपके लग्न या 1H में कोई अन्य नंबर लिखा हो।
1H में जो भी राशि होती है मेष से मीन तक; उसी को लग्न बोला जाता है, जैसे मेष लग्न की कुंडली और इसी लग्न के मालिक को लग्नेश कहा जाता है — मतलब 1H में 1 लिखा है तो मेष राशि और मेष राशि के स्वामी हैं मंगल तो लग्नेश हुए मंगल, अगर वहाँ कोई अन्य राशि होती तो उसके मालिक लग्नेश होते।
कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष।
अब हम चित्र-3 की तरफ़ चलते हैं जहाँ 1H, 2H, 3H, 4H, 5H, 6H, 7H, ……… 12H ये नहीं लिखा हुआ है और जैसा कि पहले हमने कहा था कि ये कुंडली का कौनसा सा घर कहाँ पर है वो नहीं लिखा होगा, ये तो आपको याद करना होगा। यहाँ जो नंबर हैं वो राशियाँ हैं जैसे यहाँ चित्र-3 में 1H में 7 लिखा है अर्थात् तुला राशि; तो ये तुला लग्न की कुंडली हुई और तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं तो लग्नेश हुए शुक्र देव। अब आप मुझे नीचे कमेंट करके बतायेंगे कि आपकी किस लग्न की कुंडली है और लग्नेश कौन हैं आपके? — इतना तो उम्मीद कर ही सकता हूँ आपसे!
कुंडली में 12 राशियों का महत्व
कुंडली में 12 राशियाँ होती हैं, जो जीवन के अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। सबसे पहले हम कुंडली में 12 राशियाँ क्या होती हैं इसका संक्षिप्त वर्णन करेंगे। ये राशियाँ आपको याद करनी होंगी क्योंकि बिना 12 राशियों को याद किए, आप लग्न कुंडली को पढ़ ही नहीं सकते हैं। आप ये अच्छी तरह समझ लीजिए कि सम्पूर्ण ज्योतिष 12 राशियाँ, 12 भाव, 27 नक्षत्र और 9 ग्रहों पर टिका हुआ है।
प्रत्येक राशि का स्वामी ग्रह और उसका तत्व (तत्त्व) अलग होता है जोकि इस प्रकार है;
| राशि | स्वामी | तत्व |
|---|---|---|
| मेष – पहली राशि | मंगल | अग्नि |
| वृषभ – दूसरी राशि | शुक्र | पृथ्वी |
| मिथुन – तीसरी राशि | बुध | वायु |
| कर्क – चौथी राशि | चंद्र | जल |
| सिंह – पाँचवी राशि | सूर्य | अग्नि |
| कन्या – छठी राशि | बुध | पृथ्वी |
| तुला – सातवीं राशि | शुक्र | वायु |
| वृश्चिक – आठवीं राशि | मंगल | जल |
| धनु – नौवीं राशि | गुरु | अग्नि |
| मकर – दसवीं राशि | शनि | पृथ्वी |
| कुंभ – ग्यारहवीं राशि | शनि | वायु |
| मीन – बारहवीं राशि | गुरु | जल |
👉 लग्न कुंडली का पूरा चक्र 360° का होता है, और हर राशि 30° की होती है। यही कारण है कि 12 राशियों से मिलकर पूरा लग्न चक्र (Lagna Chakra) बनता है।
- ये राशियों का क्रम हमेशा यही रहता है; पहली राशि हमेशा मेष रहेगी और ग्याहरवीं हमेशा कुंभ और यही क्रम आपको याद करना होगा।
- ये जो 12 राशियाँ हैं इन्हीं के नंबर आपकी लग्न कुंडली में लिखे होते हैं जैसे 1 नंबर यानि कि मेष राशि, 8 नंबर यानि वृश्चिक राशि।
- लग्न कुंडली में कुल 12 घर होते हैं जिसको हम लग्न चक्र भी कह सकते हैं। कुंडली का सम्पूर्ण चक्र 360° का होता है, इसलिए कुंडली का एक घर 30° के बराबर होता है।
- इसी प्रकार एक राशि भी 30° की होती है, कुल 12 Rashiya होने से लग्न चक्र 360° का पूर्ण हो जाता है।
प्रत्येक राशि के नक्षत्र
हर राशि में 3 नक्षत्र आते हैं। एक नक्षत्र 13°20′ का होता है और उसका हर चरण 3°20′ का होता है। एक राशि में कुल 9 चरण आते हैं।
उदाहरण:
- मेष राशि = अश्विनी (4 चरण), भरणी (4 चरण), कृतिका (1 चरण)
- वृषभ राशि = कृतिका (3 चरण), रोहिणी (4 चरण), मृगशिरा (2 चरण)
इसी प्रकार सभी राशियों में नक्षत्र बँटे होते हैं। इसका गहरा सम्बन्ध चंद्रमा की गति से होता है।
| राशि | नक्षत्र |
| मेष | अश्विनी, भरणी, कृतिका |
| वृषभ | कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा |
| मिथुन | मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु |
| कर्क | पुनर्वसु, पुष्या, आश्लेषा |
| सिंह | मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी |
| कन्या | उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा |
| तुला | चित्रा, स्वाति, विशाखा |
| वृश्चिक | विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा |
| धनु | मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा |
| मकर | उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा |
| कुंभ | धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद |
| मीन | पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती |
- ये जो लिखा हुआ है कि मेष राशि के नक्षत्र अश्विनी, भरणी, कृतिका ये दरअसल मेष राशि में आने वाले नक्षत्र हैं; जिस राशि के आगे जो नक्षत्र लिखे हैं वो नक्षत्र उस राशि में आते हैं।
- अब आप सोच रहे होंगे कि एक नक्षत्र दो राशियों में कैसे आ सकता है जैसे कृतिका नक्षत्र मेष राशि में भी है और वृषभ राशि में भी है। फिलहाल आप आसान भाषा में ये समझो कि एक नक्षत्र के चार चरण होते हैं अर्थात् सीधे-सीधे कहा जाए तो एक नक्षत्र के चार बराबर-बराबर हिस्से।
- अब एक राशि में केवल 9 हिस्से आते हैं और एक नक्षत्र में चार हिस्से होते हैं। तो जैसा उपर लिखा है कि मेष राशि में अश्विनी, भरणी और कृतिका नक्षत्र आते हैं तो इसका मतलब ये कि अश्विनी नक्षत्र के चारों हिस्से या चरण मेष राशि में आते हैं और भरणी नक्षत्र के भी चारों चरण मेष राशि में आते हैं; ठीक इसी प्रकार कृतिका नक्षत्र का एक हिस्सा या एक चरण या प्रथम चरण मेष राशि में आता है शेष 3 चरण वृषभ राशि में आते हैं क्योंकि एक राशि में केवल 9 हिस्से या चरण ही तो आते हैं।
- एक चरण 3°20′ का होता है और एक नक्षत्र 13°20′ का होता है। एक राशि में 9 हिस्से आते हैं एक हिस्सा 3°20′ का तो 3°20′ × 9 = 30° = एक राशि = कुण्डली का एक घर अब आया समझ; अगर नहीं आया तो अगली हैडिंग में जरूर आएगा समझ लेकिन फिर भी ना आए तो बार-बार पढ़ो समझ आ जाएगा फिर भी ना आए तो कमेंट करना।
- मैं हमेशा आपकी सेवा में तत्पर हूँ, और ज्यादा माथा-पच्ची लगे तो अभी आरम्भ में आप बेसिक में इतना ही सीखो, आगे चलकर स्वतः आपको समझ आ जाएगा कि ये सब चंद्रमा की चाल की गणना है। साथ-साथ ये भी समझ आ जाएगा कि चंद्र कुंडली का क्या महत्व है।
पृथ्वी का घूर्णन और ज्योतिषीय गणना
1. पृथ्वी का वास्तविक घूर्णन
- नाक्षत्र दिवस (Sidereal Day):
पृथ्वी 360° घूमकर तारों के सापेक्ष उसी स्थिति में पहुँचती है।
⏱ समय = 23 घंटे 56 मिनट 4 सेकंड। - सौर दिवस (Solar Day):
पृथ्वी 360° घूमकर सूर्य को फिर उसी स्थिति (जैसे दोपहर से दोपहर) पर लाती है।
⏱ समय = 24 घंटे।
➡ फर्क = लगभग 4 मिनट प्रतिदिन।
2. ज्योतिषीय दृष्टिकोण
- ज्योतिष जीवन के अनुभवजन्य दिन-रात पर आधारित है, जो सूर्य से संचालित होते हैं।
- इसी कारण ज्योतिष में सौर दिवस (24h) को आधार बनाया गया।
- नियम स्थिर कर दिया गया:
- 360° = 24 घंटे
- 1° = 4 मिनट
- 1 राशि (30°) = 2 घंटे
- 1 नक्षत्र (13°20′) = 53 मिनट 20 सेकंड
- 1 चरण (3°20′) = 13 मिनट 20 सेकंड
- 1′ (अंश/arcminute) = 4 सेकंड
- 1″ (arcsecond) = 1/15 सेकंड ≈ 0.0667 सेकंड
3. “स्थिर” नियम का महत्व
- “स्थिर” का अर्थ → परंपरा में एक मानक सूत्र स्वीकार करना।
- इससे ज्योतिषीय गणना सरल, समान और सबके लिए समझने योग्य हो गई।
- व्यावहारिक अनुभव (दिन-रात) और खगोलीय गणना (नाक्षत्र दिवस) के बीच का अंतर दीर्घकालिक समायोजन (अयनांश, लीप वर्ष) से संभाल लिया गया।
- अगर आपने ज्योतिष में समय की गणना कैसे की जाती है? और 12 महीनों के नामकरण का सफ़र। ये दो लेख पढ़े होंगे तो ये सब आपको और भी अच्छे से समझ आयेगा कि 4 मिनट का फर्क कैसे गायब किया।
4. ज्योतिष की महत्ता
- ज्योतिष का उद्देश्य वैज्ञानिक माप से अधिक मानव जीवन के अनुभव और प्रभाव को समझना है।
- मनुष्य के स्वास्थ्य, भाग्य, कर्म और चेतना पर ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव तब ही समझा जा सकता है जब गणना स्थिर और सार्वभौमिक हो।
- इसी कारण 1° = 4 मिनट का नियम सदियों से ज्योतिषीय गणना का आधार है।
पृथ्वी वास्तव में 23h 56m में घूमती है, लेकिन ज्योतिष 24h के अनुभवजन्य दिन को मानकर ही चलता है। यही “स्थिर नियम” ज्योतिष को सरल, उपयोगी और जीवन के लिए प्रासंगिक बनाता है।
नक्षत्र और उनके स्वामी ग्रह
अभी-अभी आपने देखा कि कौन-से नक्षत्र किस राशि में आते हैं और अब आप समझो कि कौन-से नक्षत्र के स्वामी कौन है परंतु आप ये ना समझ लेना कि जैसे अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में आता है और मेष राशि के स्वामी मंगल हैं तो अश्विनी नक्षत्र के स्वामी मंगल है ,,,, ऐसा नहीं क्योंकि अश्विनी नक्षत्र आता जरूर मेष राशि में है लेकिन वो है केतु देव का नक्षत्र लेकिन आप बस ये समझो कि जो नक्षत्र हैं उनके स्वामी ग्रह दूसरे हैं और ये नक्षत्र जिस राशि में आते हैं उन रशियों के स्वामी अलग है ।
| नक्षत्र | स्वामी ग्रह |
|---|---|
| कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा | सूर्य |
| श्रवण, रोहिणी, हस्त | चंद्र |
| चित्रा, धनिष्ठा, मृगशिरा | मंगल |
| आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती | बुध |
| पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, पुनर्वसु | बृहस्पति |
| पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी | शुक्र |
| उत्तराभाद्रपद, पुष्य, अनुराधा | शनि |
| स्वाति, शतभिषा, आर्द्रा | राहु |
| अश्विनी, मघा, मूल | केतु |
ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव
हर ग्रह की अपनी प्रकृति (Nature) और स्वभाव होता है। यह शुभ-अशुभ फल तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
| ग्रह | प्रकृति | स्वभाव |
|---|---|---|
| सूर्य | क्रूर | स्वतंत्र, न्यायप्रिय |
| चंद्र | सम | महत्वाकांक्षी |
| मंगल | क्रूर | पराक्रमी |
| बुध | सम | बालकों सा स्वभाव |
| गुरु | शुभ | सत्यप्रिय |
| शुक्र | शुभ | ऐश्वर्य की चाह |
| शनि | पापी | दार्शनिक |
| राहु | पापी | गहन अध्ययन |
| केतु | पापी | छलावा, जल्दबाज़ |
- बुध = बुध ग्रह को कई ज्योतिषी सम ग्रह की स्थिति में रखते हैं और कई ज्योतिषी बुध ग्रह को शुभ मानते हैं लेकिन तब; जब बुध के साथ किसी शुभ ग्रह की युति हो अन्यथा पापी या क्रूर ग्रह की युति के साथ बुध ग्रह की प्रकृति को भी वैसा ही मानते हैं। लेकिन, अगर आप मेरी बात करेंगे तो मैं बुध को सबसे अच्छा ग्रह मानता हूँ अगर शुक्र के बाद आप अन्य किसी ग्रह का चयन करने को मुझसे कहेंगे तो मैं बुध का चयन करूँगा।
- सूर्य-मंगल = सूर्य-मंगल को कई ज्योतिषी क्रूर की श्रेणी में रखते हैं और अन्य पापी ग्रह की श्रेणी में।
- चंद्र = शुक्ल पक्ष का चंद्रमा शुभ प्रकृति का माना जाता है और कृष्ण पक्ष का चंद्रमा अशुभ या पापी ग्रह की श्रेणी में आता है।
- पापी/शुभ/क्रूर/सम = इन सब का मतलब ये नहीं कि शुभ ग्रह की श्रेणी में गुरु-शुक्र के आ जाने से लग्न कुंडली में शुभ फल देते हैं। कोई भी ग्रह कब अच्छा परिणाम देगा और कब गलत, इसका निर्धारण केवल लग्न कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात् ही पता लगाया जा सकता है।
ग्रहों के अंश बल और अवस्थाएँ
किसी भी ग्रह का बल छः प्रकार से देखा जाता है और तभी पता चलता है कि किसी ग्रह में कितनी ताक़त है लेकिन ग्रहों के अंश से भी उनकी ताक़त देखी जाती है और उसकी हिसाब से ग्रह को एक अवस्था दी जाती है जैसे कोई तीन डिग्री का ग्रह हो तो अंश बल के अनुसार वो बाल्यावस्था में रखा जाएगा—
| अंश | अवस्था | बल |
|---|---|---|
| 0-6° | बाल्यावस्था | 25% |
| 6-12° | युवावस्था | 50% |
| 12-18° | पूर्ण युवा | 100% |
| 18-24° | प्रौढ़ावस्था | 50% |
| 24-30° | वृद्धावस्था | 25% |
ग्रहों की उच्च और नीच राशियाँ
राहु – केतु को छोड़कर प्रत्येक ग्रह की अपनी एक या दो राशि होती है और प्रत्येक ग्रह किसी राशि में एक विशेष स्थिति में होता है जैसे सूर्य मेष राशि में जोकि मंगल की राशि है ; उच्च का होता है आर्थत् जैसे मेष राशि में सूर्य फूफा या जीजा बना हो और अब उसकी एक विशेष स्थिति हो गई।
उच्च मतलब बहुत अच्छा ग्रह लेकिन कोई ग्रह किसी राशि में उच्च का होता है तो किसी राशि में नीच का भी होता है ,,, प्रत्येक ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है ठीक उससे सातवीं दृष्टि पर या सातवीं जगह नीच का होता है ,,, जैसे सूर्य पहली राशि मेष में उच्च का होता है तो ठीक सातवीं राशि तुला में नीच का होता है ,, बाक़ी अन्य ग्रह की उच्च – नीच अवस्था निम्न प्रकार है :-
| ग्रह | उच्च राशि | नीच राशि |
|---|---|---|
| सूर्य | मेष | तुला |
| चंद्र | वृषभ | वृश्चिक |
| मंगल | मकर | कर्क |
| बुध | कन्या | मीन |
| गुरु | कर्क | मकर |
| शुक्र | मीन | कन्या |
| शनि | तुला | मेष |
| राहु | वृषभ, मिथुन | वृश्चिक, धनु |
| केतु | वृश्चिक, धनु | वृषभ, मिथुन |
ग्रहों की मित्रता और शत्रुता
जिस तरह प्रत्येक इंसान किसी से मित्रता रखता है तो किसी से चिड़ता या शत्रुता रखता है और कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं जो सबके साथ एक बराबर रहते , ना किसी से मित्रता और ना किसी से शत्रुता; ठीक वैसे ही एक ग्रह किसी का मित्र है तो किसी का शत्रु और किसी के साथ सम (neutral)।
| देव ग्रह | सम ग्रह | दानव ग्रह |
| सूर्य | बुध | शुक्र |
| चंद्र | शनि | |
| मंगल | राहु | |
| बृहस्पति | केतु |
- देव ग्रह और दानव ग्रह; इसका मतलब ये नहीं कि शुक्र के अधीन लग्न कुंडली दानवों सा व्यवहार करेगी। बस आप ये समझ के चलो की कुछ ग्रहों को देव की श्रेणी में रखा है और कुछ ग्रहों को दानवों की श्रेणी में और बुध ग्रह को सम की श्रेणी में।
- देव ग्रह = देव ग्रह की श्रेणी में आने वाले ग्रह सभी आपस में मित्र हैं।
- दानव ग्रह = दानव ग्रह आपस में मित्र हैं।
- सम ग्रह = सम ग्रह की श्रेणी में केवल बुध आते हैं। बुध ग्रह की चंद्र-मंगल से शत्रुता है, बाकि सभी ग्रहों से बुध की मित्रता है।
ग्रहों की दृष्टि कैसे देखें?
सभी ग्रहों की 7 वीं दृष्टि होती है लेकिन कुछ ग्रहों के पास विशेष दृष्टियाँ भी होती हैं जिनका विवरण अग्रानुसार है:—
| ग्रह | दृष्टि |
| गुरु, राहु, केतु | 5, 7, 9 |
| मंगल | 4, 7, 8 |
| शनि | 3, 7, 10 |
| शुक्र, बुध, चंद्र, सूर्य | 7 |
- ग्रहों की दृष्टि हमेशा स्थिर रहतीं हैं अर्थात वो कभी बदलती नहीं हैं जैसे ऊपर की तालिका में बताया गया है; अमुक ग्रह की दृष्टि हमेशा वही रहेगी।

- गुरु की दृष्टि से समझते हैं; मानो कि किसी लग्न कुंडली में गुरु 12H में हैं तो उनकी दृष्टि 5,7 और 9 कुंडली में कहाँ-कहाँ पड़ेगी चलो देखते हैं — तो किसी भी ग्रह की जब हम दृष्टि देखते हैं तो पहला कदम उसका वहीं होता है जहाँ वो ग्रह बैठा है जैसे 12H में गुरु तो पहला कदम वहीं 12H में, दूसरा कदम 1H, तीसरा कदम 2H, चौथा कदम 3H, पाँचवा क़दम 4H, छठा कदम 5H, सातवां कदम 6H, आठवाँ कदम 7H और नवाँ कदम 8H
- तो इस प्रकार गुरु की 5,7 और 9 वी दृष्टि कुंडली में क्रमशः चौथा भाव = 4H, छठा भाव = 6H और आठवाँ भाव =8H पर पड़ेगी; अब इसी तरह आप अन्य सभी ग्रह की दृष्टि अपनी लग्न कुंडली में देखना कि अमुक ग्रह किस किस जगह अपनी दृष्टि डाल रहा है।
निष्कर्ष: कुंडली देखने की शुरुआत कैसे करें?
कुंडली देखने के लिए सबसे पहले यह समझें कि 12 राशियाँ, 27 नक्षत्र और 9 ग्रह ही ज्योतिष की नींव हैं। जब आप इनकी स्थिति और स्वभाव को समझ लेते हैं, तो धीरे-धीरे योग, दशा और ग्रहों के परिणाम को पढ़ना आसान हो जाता है। शुरुआत में केवल यह समझें कि Kundli kaise dekhe इसका आधार है – राशियों और ग्रहों की स्थिति। समय और अभ्यास के साथ यह ज्ञान गहराता चला जाता है।
अंतिम संदेश
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