मिथुन लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Mithun Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को बुद्धिमान, चतुर, तर्कशील और जिज्ञासु बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि मिथुन लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

मिथुन लग्न का महत्व

मिथुन लग्न (Mithun Lagna) वायु तत्व और द्विस्वभाव का प्रतीक है—तेज़ बुद्धि, जिज्ञासा, संचार-कौशल और अनुकूलन-क्षमता इसकी पहचान हैं। लग्नेश बुध विचारों को स्पष्ट करने, सीखने-सिखाने, नेटवर्किंग और बहु-कार्य (multitasking) की शक्ति देता है, इसलिए इस लग्न के जातक जानकारी को जोड़ने और अवसरों को शब्दों/संबंधों के माध्यम से वास्तविकता में बदलने में माहिर माने जाते हैं।

यह लग्न गति और परिवर्तन से फलता-फूलता है; पर इसी गति का छाया-पक्ष अस्थिरता, अधिक सोच (overthinking) और कभी-कभी निर्णय टालना भी हो सकता है। तभी ग्रहों का संतुलन—कौन सहायक है और कौन बाधक—समझना अत्यावश्यक हो जाता है।

मिथुन लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

हर लग्न के अनुसार ग्रहों का स्वभाव बदलता है। मिथुन लग्न में ग्रहों को “योगकारक” (सकारात्मक, सहायक) और “मारक” (नकारात्मक, अवरोधक) दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। यहाँ योगकारक का अर्थ है—जीवन में प्रगति, सफलता और सहयोग देने वाले ग्रह। वहीं, मारक ग्रह वे हैं जो जातक के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं और अच्छे फलों को रोकते हैं।

मिथुन लग्न का स्वामी बुध है, जो वाणी, शिक्षा, बुद्धि और व्यवसाय को सशक्त बनाता है। इसके साथ सूर्य, शुक्र, गुरु और शनि भी शुभ माने जाते हैं और योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर, चंद्रमा और मंगल इस लग्न में अवरोधक ग्रह बन जाते हैं।

मिथुन लग्न में ग्रहों का वर्गीकरण

ग्रहश्रेणीकारण / भूमिका
बुध (लग्नेश)योगकारक (सकारात्मक)बुद्धि, वाणी, शिक्षा और व्यवसाय का कारक।
सूर्ययोगकारकतीसरे भाव का स्वामी होकर साहस, पराक्रम और संचार में सहयोगी।
शुक्रयोगकारकपंचम भाव का स्वामी होकर शिक्षा, प्रेम और रचनात्मकता देता है।
गुरु योगकारकसप्तम और दशम भाव का स्वामी होकर साझेदारी व करियर में सहायक।
शनियोगकारकअष्टम और नवम भाव से जुड़कर भाग्य, अनुशासन और गहराई लाता है।
चंद्रमारक (नकारात्मक)द्वितीय भाव का स्वामी होकर धन संग्रह में बाधा और अस्थिरता देता है।
मंगलमारक (नकारात्मक)षष्ठ और एकादश भाव का स्वामी होकर ऋण, विवाद और लाभ में रुकावट बढ़ाता है।
राहु-केतुपरिस्थितिजन्यजिन भावों में स्थित हों, वहीं के अनुसार शुभ/अशुभ परिणाम देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

मिथुन लग्न में योगकारक ग्रह वे हैं जो जातक के जीवन में सहयोग, स्थिरता और उन्नति लाते हैं। ये ग्रह अच्छे भावों के स्वामी होकर शिक्षा, करियर, धन, संबंध और भाग्य के क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम देते हैं।

  • बुध (Mercury) – लग्नेश और प्रमुख योगकारक
  1. मिथुन लग्न का स्वामी बुध है।
  2. यह बुद्धि, वाणी, व्यापार, शिक्षा और तर्कशक्ति का कारक है।
  3. जब बुध बलवान हो तो जातक चतुर, प्रखर वक्ता और सफल व्यापारी बनता है।
  • सूर्य (Sun) – पराक्रम और साहस का दाता
  1. सूर्य तीसरे भाव का स्वामी है।
  2. साहस, पराक्रम, छोटे भाई-बहन, और संचार क्षमता को बढ़ाता है।
  3. शुभ स्थिति में सूर्य आत्मविश्वास और नेतृत्व प्रदान करता है।
  • शुक्र (Venus) – प्रेम और रचनात्मकता का कारक
  1. शुक्र पंचम भाव का स्वामी है।
  2. शिक्षा, संतान, प्रेम और कला में सफलता देता है।
  3. रचनात्मक क्षेत्रों, मनोरंजन और विलासिता से जुड़े कार्यों में सहायक होता है।
  • गुरु (Jupiter) – करियर और साझेदारी में सहायक
  1. गुरु सप्तम और दशम भाव का स्वामी है।
  2. विवाह, साझेदारी, व्यापार और करियर में प्रगति दिलाता है।
  3. गुरु की मजबूत स्थिति से जातक समाज में सम्मान और उच्च पद प्राप्त करता है।
  • शनि (Saturn) – भाग्य और गहराई का दाता
  1. शनि अष्टम और नवम भाव का स्वामी है।
  2. नवम भाव से भाग्य और धर्म के कारण शनि शुभ परिणाम देता है।
  3. शनि जातक को अनुशासन, स्थिरता और जीवन की गहराई से जुड़ने की क्षमता देता है।

मिथुन लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

मिथुन लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह (बुध, सूर्य, शुक्र, गुरु और शनि) आपस में शुभ युति या दृष्टि संबंध बनाते हैं, तो जातक के जीवन में अनेक प्रकार के शुभ योग निर्मित होते हैं। ये योग व्यक्ति को शिक्षा, करियर, धन, वैवाहिक जीवन और समाज में उच्च स्थान प्रदान करते हैं।

  • बुध–सूर्य का मेल (बुद्धादित्य योग)
  1. बुध और सूर्य का एक साथ होना या परस्पर दृष्टि देना जातक को अद्वितीय बुद्धिमत्ता और प्रभावशाली वाणी प्रदान करता है।
  2. यह योग व्यापार, संचार और सरकारी पदों में सफलता दिलाता है।
  • शुक्र–बुध का संबंध
  1. जब पंचम भाव का स्वामी शुक्र और लग्नेश बुध का शुभ मेल हो, तो जातक को शिक्षा, कला और प्रेम जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त होती है।
  2. यह योग रचनात्मक क्षेत्रों और व्यापार में प्रगति कराता है।
  3. इन दोनों ग्रहों की युति वैसे भी लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण करती है।
  • गुरु–शनि का शुभ संबंध
  1. दशम भाव के स्वामी गुरु और नवम भाव के स्वामी शनि का मेल “धर्म-कर्माधिपति योग” बनाता है। हालाँकि ये योग इस लग्न में इतना प्रबल नहीं होता है लेकिन अगर दशम भाव में ही बन जाये तब ज़रूर कह सकते हैं कि प्रभावशाली योग का निर्माण हो गया।
  2. यह योग करियर और भाग्य के मेल से जातक को उच्च पद, स्थिर सफलता और समाज में प्रतिष्ठा दिलाता है।
  • राजयोग
  1. यदि बुध, शुक्र और शनि किसी केंद्र या त्रिकोण में मिलकर शुभ स्थिति बनाते हैं, तो जातक के जीवन में राजयोग जैसा ही निर्माण होता है।
  2. इससे जातक नेतृत्व, प्रशासन और बड़े व्यापारिक क्षेत्रों में सफलता पाता है।

मिथुन लग्न में मारक ग्रह

मिथुन लग्न के लिए चंद्र और मंगल मुख्य अवरोधक (मारक) ग्रह माने जाते हैं। ये दोनों ग्रह जीवन में बनी शुभ परिस्थितियों को कमजोर करके मानसिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ खड़ी कर सकते हैं।

  • चंद्र (Moon) – धन और मानसिक स्थिरता पर असर
  1. द्वितीय भाव का स्वामी होने के कारण चंद्र धन संग्रह और स्थिरता में बाधा डालता है।
  2. जातक की वाणी और निर्णय लेने की क्षमता अस्थिर हो सकती है।
  3. मानसिक उतार-चढ़ाव और परिवारिक क्लेश भी उत्पन्न होते हैं।
  • मंगल (Mars) – ऋण और लाभ में रुकावट
  1. षष्ठ भाव (ऋण, रोग, शत्रु) और एकादश भाव (लाभ, इच्छाओं की पूर्ति) का स्वामी।
  2. अशुभ स्थिति में ऋण, विवाद और मुकदमेबाज़ी की संभावना बढ़ती है।
  3. लाभ और इच्छाओं की पूर्ति में अड़चनें आती हैं, मेहनत का पूरा फल नहीं मिलता और अनचाहे खर्चे बढ़ते हैं।
  • राहु-केतु का प्रभाव
  1. ये स्वभाव से छायाग्रह हैं और जिस भाव/ग्रह से जुड़ते हैं, उसी के अनुसार परिणाम देते हैं।
  2. यदि चंद्र या मंगल के साथ मिलकर द्वितीय, षष्ठ या एकादश भाव को प्रभावित करें, तो मारक प्रभाव और भी प्रबल हो जाता है।

शुभ-अशुभ ग्रहों का जीवन पर प्रभाव

मिथुन लग्न कुंडली में ग्रहों का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र पर गहराई से पड़ता है। जहाँ योगकारक ग्रह (बुध, सूर्य, शुक्र, गुरु और शनि) जातक को उन्नति और स्थिरता प्रदान करते हैं, वहीं मारक ग्रह (चंद्र और मंगल) प्रगति के मार्ग में रुकावट डालते हैं। आइए इनके प्रभावों को विस्तार से समझें –

1) स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: बुध और शनि जातक को मानसिक संतुलन, अनुशासन और स्वास्थ्य में स्थिरता देते हैं।
  • अशुभ ग्रह: मंगल षष्ठ भाव का स्वामी होकर रोग, चोट और दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ाता है। चंद्र मानसिक अस्थिरता और तनाव का कारण बनता है।

2) करियर और धन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: गुरु और बुध करियर, साझेदारी और व्यापार में प्रगति दिलाते हैं। शुक्र रचनात्मक क्षेत्रों और व्यवसाय में सफलता देता है।
  • अशुभ ग्रह: चंद्र द्वितीय भाव का स्वामी होने के कारण धन संग्रह में बाधा डालता है। मंगल लाभ भाव का स्वामी होकर इच्छाओं की पूर्ति में रुकावट और आर्थिक अस्थिरता ला सकता है।

3) विवाह और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: गुरु सप्तम भाव का स्वामी होकर विवाह और साझेदारी में सहयोगी है। शुक्र प्रेम और सामंजस्य का दाता है।
  • अशुभ ग्रह: मंगल वैवाहिक जीवन में विवाद और तनाव उत्पन्न कर सकता है। चंद्र की अस्थिरता परिवार और भावनात्मक रिश्तों में क्लेश ला सकती है।

4) मानसिक और सामाजिक जीवन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: सूर्य और बुध समाज में संवाद-क्षमता, नेतृत्व और लोकप्रियता प्रदान करते हैं। शनि से गंभीरता और स्थिरता आती है।
  • अशुभ ग्रह: चंद्र मानसिक उलझन और अस्थिर विचार उत्पन्न करता है। मंगल विवादप्रिय प्रवृत्ति और रिश्तों में टकराव बढ़ा सकता है।

मिथुन लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Mithun Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये मिथुन लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 3(मिथुन राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 3 लिखा है यानि तीसरी राशि और हमको पता है कि तीसरी राशि मिथुन होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और मिथुन राशि के स्वामी बुध होते हैं तो लग्नेश हुए बुध।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 4H मिला है जोकि व्यक्तित्व और भौतिक सुख का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 4 नंबर लिखा है अर्थात कर्क राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
  5. यहाँ 2H के स्वामी चंद्र है जोकि लग्नेश बुध के शत्रु हैं इसलिए चंद्र अति मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  6. 3H जिसमें लिखा है 5 नंबर जोकि होती है सिंह राशि – जिसके स्वामी होते हैं सूर्य देव जोकि प्रक्रामेश बने हैं और लग्नेश के मित्र भी है; कम-से-कम सूर्य देव मेहनत करने के बाद ही सही, पर मेहनत का रिजल्ट तो देंगे ही देंगे; इसलिए सूर्य देव भी योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  7. 4H जिसमें लिखा है 6 नंबर यानि कन्या राशि जोकि बुध देव की है और बुध तो है ही लग्नेश; हाँ अगर बुध त्रिक भाव (6H-8H-12H) में जाएँगे या नीच के होंगे तो जरूर लग्नेश को केंद्राधिपति दोष लग जाएगा और फिर बुध मारक ग्रह की श्रेणी में आ जाएँगे लेकिन ऐसा ना होने पर वो लग्नेश हैं जो सदा ही योगकारक होते हैं।
  8. 5H जिसमें लिखा है 7 नंबर यानि तुला राशि जिसके स्वामी हैं शुक्र देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; शुक्र देव को 12H भी मिला है जोकि व्यय का भाव है पर वो ईष्टदेव हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  9. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  10. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  11. अब बात करते हैं 6H की जिसमें लिखा है 8 नंबर यानि वृश्चिक राशि जिसके स्वामी हैं मंगल देव और इनको एक और घर मिला है 11H — तो मंगल देव चंद्र के बाद दूसरे अति मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं क्योंकि इनको घर भी अच्छे नहीं मिले और लग्नेश के शत्रु भी है।
  12. 7H में धनु राशि है और 10H मीन राशि जोकि गुरु की राशियाँ है और गुरु लग्नेश बुध के शत्रु नहीं है इसलिए ये भी योगकारक ग्रह की श्रेणी में आयेंगे तब तक – जब तक इनको केन्द्राधिपति दोष ना लगे।
  13. 8H में मकर राशि है और 9H में कुंभ राशि है जोकि शनि देव की राशियाँ हैं; मिथुन लग्न में शनि देव अष्टमेश होने के साथ-साथ भाग्येश भी हैं और लग्नेश के मित्र भी है इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आयेंगे।
  14. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकमारक
बुध चंद्र
सूर्य मंगल
शुक्र
गुरु
शनि

चित्र – 2

हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपनी विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।

👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।

तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है।; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
बुध गुरु
चंद्र
सूर्य
शुक्र
मंगल
शनि
राहु
केतु
  1. बुध लग्नेश हैं और पराक्रम वाले घर में चले गए हैं; यहाँ बुध को कोई दोष नहीं लगा है इसलिए वो योगकारक हैं।
  2. चंद्र मिथुन लग्न में मारक ग्रह होते हैं लेकिन स्वराशि होने की वजह से योगकारक हो गए।
  3. सूर्य भी एक अच्छे घर में बैठे हैं और कुछ भी ग़लत नहीं है तो सूर्य भी योगकारक हैं।
  4. शुक्र तो वैसे ही ईष्टदेव हैं और यहाँ तो स्वराशि भी हैं तो योगकारक होते हैं।
  5. मंगल, चंद्र के बाद दूसरे मारक ग्रह होते हैं लेकिन यहाँ मंगल भी योगकारक हैं क्योंकि मंगल का विपरीत राजयोग बना है।
  6. गुरु योगकारक होते हैं लेकिन गुरु अष्टम भाव में हैं जिसके कारण वो मारक ग्रह तो हुए ही हैं और साथ में गुरु को केन्द्राधिपति दोष भी लग गया है। यहाँ सर्वप्रथम गुरु का उपाय करना अति आवश्यक है।
  7. शनि भाग्येश हैं और यहाँ बैठे भी कर्म स्थान में हैं तो शनि भी योगकारक हैं।
  8. राहु तृतीय भाव में बैठे हैं और राहु के साथ एक नियम हमेशा याद रखना आप कि राहु 3H और 11H में चाहें जो कोई भी स्थिति क्यों ना बनी हुई हो लेकिन यहाँ राहु हमेशा योगकारक ही होते हैं और यहाँ तो स्थिति भी बहुत अच्छी बनी हुई है — राहु अपने मित्र बुध के साथ बैठे हैं इसलिए राहु यहाँ योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
  9. केतु नवम भाव में बैठे हैं और जिस राशि में हैं वो उनके मित्र की राशि है और मित्र भी उनका योगकारक है इसलिए केतु भी यहाँ योगकारक हैं।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: मिथुन लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

मिथुन लग्न कुंडली जातक को वाणी की कला, बुद्धि, जिज्ञासा और अनुकूलन क्षमता का वरदान देती है। इस लग्न के लिए योगकारक ग्रह — बुध, सूर्य, शुक्र, गुरु और शनि — जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगी बनकर सफलता, स्थिरता और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वहीं चंद्र और मंगल अवरोधक (मारक) ग्रह होकर मानसिक अस्थिरता, धन-संग्रह में कठिनाई, ऋण, विवाद और इच्छाओं की पूर्ति में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।

इसलिए मिथुन लग्न जातकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि वे अपने सकारात्मक ग्रहों को बलवान करें और नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को कम करने के उपाय अपनाएँ। बुध और शुक्र को मज़बूत करने से वाणी, व्यापार और रचनात्मकता में प्रगति होगी। गुरु और शनि का संतुलन करियर और भाग्य में स्थिरता देगा। सूर्य आत्मविश्वास और नेतृत्व शक्ति को सशक्त करेगा।

दूसरी ओर, चंद्र और मंगल के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए मानसिक स्थिरता, संयम, ध्यान और अनुशासित जीवनशैली आवश्यक है। मंगल के दोषों को नियंत्रित करने के लिए धैर्य और शांत स्वभाव अपनाना उपयोगी है।

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2 thoughts on “मिथुन लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।”

  1. Ruchi rawat dob 30/01/1995 time 3:15pm place chhatarpur mp

    बहुत ही सुंदर
    समझाया

    1. नमस्ते 🙏, मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने कमेंट किया और अपनी डिटेल्स शेयर की आपके कुंडली में लग्न दोष बन रहा है और जब हम लग्न दोष के बारे में जिक्र करेंगे तो आपकी कुंडली के बारे में चर्चा जरूर करेंगे,,, फ़िलहाल अभी आपको कई लोग एप्रोच करते होंगे और आपसे अट्रैक्ट होते हाँगे और अगर आप लव मैरिज करना चाहते हो तो अभी समय उचित है और आपका लव मैरिज का योग भी बन रहा है लेकिन आपका इम्युनिटी पॉवर बहुत वीक है बहुत जल्दी जल्दी आप बीमार और कोई ना कोई दवाई खाते रहते होंगे,,,, बताने को तो बहुत कुछ है लेकिन केवल कमेंट के माध्यम से ही सबकुछ नहीं बताया जा सकता है। 🙏

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