तुला लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Tula Lagna Kundli ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को प्रायः न्यायप्रियता, कूटनीतिज्ञ और सौंदर्य का गुण प्रदान करती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि तुला लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

तुला लग्न का महत्व

तुला लग्न (Tula Lagna) वायु तत्व और चर स्वभाव का प्रतीक है। यह संतुलन, सुंदरता, सामंजस्य और न्यायप्रियता का सूचक है। तुला लग्न के जातक सौंदर्य-बोध, कूटनीति और संबंध बनाने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। वे सामाजिक, आकर्षक और हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं।

इस लग्न का स्वामी शुक्र है, जो प्रेम, कला, रचनात्मकता और भौतिक सुख-सुविधाओं का ग्रह माना जाता है। शुक्र के प्रभाव से तुला लग्न जातक विलासिता और सौंदर्य की ओर आकर्षित होते हैं, साथ ही संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश करते हैं।

हालाँकि, तुला लग्न का छाया-पक्ष अत्यधिक निर्णयहीनता और दूसरों को खुश करने की प्रवृत्ति हो सकती है। इसलिए ग्रह-संतुलन—कौन सहयोगी है और कौन अवरोधक—समझना तुला लग्न जातकों के लिए बहुत आवश्यक है।

तुला लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

तुला लग्न कुंडली में ग्रहों का स्वभाव बदल जाता है। कुछ ग्रह जीवन को प्रगति और स्थिरता की ओर ले जाते हैं, जबकि कुछ अवरोध और संघर्ष लाते हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है—योगकारक (सकारात्मक), मारक (नकारात्मक/अवरोधक) और सम (तटस्थ)

  • योगकारक ग्रह (Positive): शुक्र, शनि और बुध (ये ग्रह तुला लग्न जातक के लिए सहयोगी और उन्नति प्रदान करने वाले होते हैं)।
  • मारक ग्रह (Negative): मंगल, गुरु और सूर्य (ये ग्रह अवरोध, संघर्ष और अस्थिरता लाते हैं)।
  • सम ग्रह (Neutral): चंद्र (स्थिति के अनुसार शुभ या अशुभ फल देता है)।
  • राहु-केतु: परिस्थितिजन्य ग्रह हैं, जो अपनी स्थिति और दृष्टि के आधार पर फल देते हैं।

तुला लग्न में ग्रहों का वर्गीकरण तालिका

ग्रहश्रेणीकारण / भूमिका
शुक्र (लग्नेश)योगकारकप्रेम, कला, सौंदर्य और संतुलन का दाता।
शनियोगकारकचतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी, शिक्षा, स्थिरता और सुख देता है।
बुधयोगकारकनवम और बारहवें भाव से जुड़कर भाग्य, बुद्धि और ज्ञान देता है।
मंगलमारकदूसरे और सप्तम भाव का स्वामी, वाणी और विवाह में अवरोध उत्पन्न करता है।
गुरु (बृहस्पति)मारकतीसरे और छठे भाव का स्वामी, परिश्रम और शत्रु बढ़ा सकता है।
सूर्यमारकग्यारहवें भाव का स्वामी, लाभ और इच्छाओं की पूर्ति में उतार-चढ़ाव लाता है।
चंद्रसम ग्रहदशम भाव का स्वामी, करियर में मिश्रित फल देता है।
राहु-केतुपरिस्थितिजन्यजिन भावों में स्थित हों, उसी अनुसार शुभ या अशुभ परिणाम देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

तुला लग्न कुंडली में योगकारक ग्रह वे होते हैं जो जातक के जीवन को प्रगति, स्थिरता और सफलता की ओर ले जाते हैं। ये ग्रह शिक्षा, धन, करियर, परिवार और सामाजिक जीवन में सकारात्मक परिणाम देते हैं। तुला लग्न में मुख्य योगकारक ग्रह शुक्र, शनि और बुध हैं।

1. शुक्र (Venus) – लग्नेश और प्रमुख योगकारक

  • तुला लग्न का स्वामी स्वयं शुक्र है।
  • यह प्रेम, कला, सौंदर्य और भौतिक सुख-सुविधाओं का कारक है।
  • मजबूत शुक्र जातक को आकर्षक व्यक्तित्व, सामाजिक लोकप्रियता और जीवन में संतुलन प्रदान करता है।
  • व्यवसाय और संबंधों में भी शुक्र सहयोगी होता है।

2. शनि (Saturn) – शिक्षा और स्थिरता का दाता

  • शनि तुला लग्न में चतुर्थ (घर, माता, सुख) और पंचम (शिक्षा, संतान, बुद्धि) भाव का स्वामी है।
  • यह ग्रह जातक के जीवन में शिक्षा, परिवारिक स्थिरता और संतान सुख लाता है।
  • मजबूत शनि जातक को दीर्घकालिक सफलता, धैर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाता है।

3. बुध (Mercury) – भाग्य और ज्ञान का कारक

  • बुध नवम भाव (भाग्य, धर्म, उच्च शिक्षा) और बारहवें भाव (विदेश, व्यय, आध्यात्मिकता) से संबंधित होता है।
  • इसकी शुभ स्थिति जातक को विद्वत्ता, तर्कशक्ति और भाग्य वृद्धि प्रदान करती है।
  • विदेश यात्रा, शिक्षा और ज्ञानार्जन में बुध की भूमिका विशेष होती है।

तुला लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

तुला लग्न कुंडली में कई शक्तिशाली राजयोगों का निर्माण होता है। इनमें से कुछ पंचमहापुरुष योग हैं, जबकि अन्य ग्रहों की विशेष स्थिति या युति से बनते हैं। ये योग जातक को उच्च पद, सम्मान, धन, सुख-सुविधाएँ और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।

1. मालव्य योग (पंचमहापुरुष योग)

  • निर्माण: जब लग्नेश शुक्र तुला लग्न में प्रथम भाव में स्थित हो।
  • फल: जातक को सुंदर व्यक्तित्व, कला और रचनात्मकता में सफलता, विलासिता और भौतिक सुख-सुविधाएँ मिलती हैं।

2. शश योग (पंचमहापुरुष योग)

  • निर्माण: जब शनि तुला राशि में प्रथम भाव में उच्च के हों।
  • विशेष स्थिति:
    • यदि शनि और शुक्र युति करें तो यह राजयोग और अधिक बलवान हो जाता है।
    • शनि चतुर्थ भाव मकर राशि में हों तो भी शश योग का निर्माण होता है।
    • शनि सप्तम भाव में नीच होकर भी यदि नीचभंग हो जाए तो नीचभंग राजयोग बनता है।
  • फल: जातक को स्थिर करियर, दीर्घायु, प्रतिष्ठा और समाज में प्रभावशाली स्थान मिलता है।

3. रुचक योग (पंचमहापुरुष योग)

  • निर्माण: मंगल चतुर्थ भाव में मकर राशि में उच्च के हों या सप्तम भाव में स्थित हों।
  • विशेष स्थिति:
    • यदि मंगल दशम भाव में नीच हों और उनका नीचभंग चंद्र या गुरु से हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।
    • यदि नीचभंग चंद्र से हो तो इसके साथ चंद्र-मंगल लक्ष्मी राजयोग भी बन जाता है।
  • फल: जातक को पराक्रम, साहस, प्रचुर धन और प्रशासनिक सफलता मिलती है।

4. बुद्धादित्य राजयोग

  • निर्माण: जब सूर्य और बुध की युति एकादश भाव में हो।
  • फल: जातक को बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता, प्रसिद्धि और धन में वृद्धि मिलती है।

5. विपरीत राजयोग

  • निर्माण: जब बुध या गुरु त्रिक भावों (षष्ठ, अष्टम, द्वादश) में स्थित हों।
  • फल: प्रारंभिक जीवन में संघर्ष के बाद जातक को अचानक प्रगति, लाभ और सफलता मिलती है।

मारक ग्रह कौन होते हैं?

ज्योतिष में मारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो जातक के जीवन में रुकावटें, संघर्ष और अस्थिरता लाते हैं। यहाँ “मारक” का अर्थ मृत्यु नहीं, बल्कि ऐसे ग्रहों से है जो शुभ फलों को कम करके मानसिक, आर्थिक या सामाजिक स्तर पर नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं।

तुला लग्न कुंडली में मुख्य मारक ग्रह मंगल, गुरु और सूर्य हैं।

  • मंगल तुला लग्न में दूसरे (धन, वाणी) और सप्तम (विवाह, साझेदारी) भाव का स्वामी होता है। इस कारण यह विवाह में अवरोध, दांपत्य जीवन में तनाव और आर्थिक मामलों में उतार-चढ़ाव पैदा कर सकता है।
  • गुरु तीसरे (पराक्रम, भाई-बहन, मेहनत) और छठे (शत्रु, रोग, ऋण) भाव का स्वामी है। अशुभ दशा में गुरु संघर्ष बढ़ाता है, शत्रुओं को मज़बूत करता है और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ देता है।
  • सूर्य ग्यारहवें भाव (लाभ, इच्छाओं की पूर्ति) का स्वामी है। इसके नकारात्मक प्रभाव से जातक की इच्छाएँ अधूरी रह सकती हैं, लाभ में अस्थिरता आती है और मित्रों से मतभेद भी हो सकते हैं।

इसके अलावा चंद्र तुला लग्न में दशम भाव का स्वामी होता है, जिसे सम ग्रह माना जाता है। इसकी स्थिति के आधार पर यह शुभ या अशुभ दोनों प्रकार के परिणाम दे सकता है। वहीं राहु-केतु परिस्थितिजन्य प्रभाव डालते हैं और जिस भाव से जुड़े होते हैं, वहाँ बाधाएँ बढ़ा सकते हैं।

तुला लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Tula Lagna Kundli का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये तुला लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 7(तुला राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 7 लिखा है यानि सातवीं राशि और हमको पता है कि सातवीं राशि तुला होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं तो लग्नेश हुए शुक्र।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 8H मिला है जोकि व्यक्तित्व और मृत्यु का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 8 नंबर लिखा है अर्थात वृश्चिक राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
  5. यहाँ 2H और 7H के स्वामी मंगल हैं और वो लग्नेश शुक्र के शत्रु है, इसलिए मंगल मारक की श्रेणी में आते हैं; अगर मंगल स्वराशि (अपनी ही राशि) हो जाएँ तो योगकारक हो जाते हैं।
  6. 3H जिसमें लिखा है 9 नंबर जोकि होती है धनु राशि – जिसके स्वामी होते हैं गुरु देव और गुरु देव को तुला लग्न में दो घर मिले हैं 3H और 6H; कुछ ज़्यादा अच्छे घर शुक्र देव ने नहीं दिए गुरु देव को, एक संघर्ष वाला घर है तो एक कर्ज़ का और गुरु – शुक्र के शत्रु भी हैं इसलिए गुरु मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  7. 4H जिसमें लिखा है 10 नंबर यानि मकर राशि जिसके स्वामी हैं शनि देव, जो बने हैं सुखेश और शुक्र के मित्र भी हैं। शनि देव को एक बहुत अच्छा घर मिला है और वो लग्नेश शुक्र के मित्र भी हैं इसलिए शनि देव योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  8. 5H जिसमें लिखा है 11 नंबर यानि कुंभ राशि जिसके स्वामी हैं शनि देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; शनि देव को दो बहुत अच्छे घर मिले हैं और वो लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  9. 6H-7H-8H की हम बात कर चुके हैं इसलिए अब हम बात करेंगे 9H की जिसमें लिखा है 3 नंबर जोकि होती है मिथुन राशि जिसके स्वामी हैं बुध देव; इनको एक और घर मिला है 12H — बुध को एक बहुत अच्छा घर मिला है जोकि 9H है क्योंकि ये भाग्य का भाव है, बुध देव इस कुंडली में भाग्येश हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए बुध भी योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  10. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  11. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  12. अब बात करते हैं 10H की जिसमें लिखा है 4 नंबर यानि कर्क राशि जिसके स्वामी हैं चंद्र देव और चंद्र देव हैं तो लग्नेश के शत्रु लेकिन इनको कुंडली का एक मुख्य घर मिला है और ये कर्मेश बनें हैं, इसलिए ही ये सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  13. सम ग्रह = जब किसी व्यक्ति की कुंडली होगी तो सम ग्रह का निर्धारण हो जाएगा कि ये सम ग्रह चंद्र देव योगकारक होंगे या मारक की श्रेणी में आयेंगे। योगकारक हुए तो परिणाम अच्छा मिलता है और मारक हुए तो करियर में भय और असुरक्षा की भावना बनी ही रहती है।
  14. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकसममारक
शुक्र चंद्र मंगल
शनि गुरु
बुध सूर्य

चित्र – 2

हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपनी विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।

👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।

तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है। तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
शुक्र मंगल
गुरु राहु
शनि केतु
बुध
चंद्र
सूर्य
  1. शुक्र तो लग्नेश हैं और कर्म भाव में विराजमान भी हैं तो कोई संदेह ही नहीं कि वो योगकारक हैं।
  2. गुरु ने विपरीत राजयोग बना दिया है और इसी कारण से वो योगकारक हुए हैं।
  3. शनि तो हैं ही ईष्टदेव और बैठे भी पंचम भाव में है तो कोई संदेह ही नहीं है कि वो योगकारक कैसे हैं।
  4. बुध भाग्येश हैं और लाभ भाव में हैं तो योगकारक तो होंगे ही।
  5. चंद्र सम ग्रह होते हैं लेकिन इस कुंडली में सप्तम भाव में है और उनके साथ कोई अशुभ स्थिति का निर्माण नहीं हो रहा है इसलिए वो योगकारक होंगे।
  6. सूर्य स्वराशि हैं और बुध के साथ बुधादित्य राजयोग का निर्माण भी कर रहे हैं तो सूर्य भी योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
  7. मंगल तो मारक होते हैं और यहाँ तो त्रिक भाव में हैं; हालाँकि मंगल गुरु के साथ हैं तो कुछ हद तक अशुभता में कमी ही आई होगी लेकिन यहाँ इस कुंडली में अत्यंत मारक ग्रह मंगल होंगे।
  8. राहु-केतु नीच के भी हैं और स्थिति भी अच्छी नहीं है इसलिए मारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
  9. तो उम्मीद है कि सबकुछ समझ आ रहा होगा आपको और कहीं कुछ विशेष परेशानी होती है तो जरूर आप कमेंट करना,,,, आप बस कोशिश कीजिए आपको जरूर समझ आएगा।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: तुला लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

तुला लग्न कुंडली जातक को सौंदर्य, संतुलन और सामाजिक आकर्षण का वरदान देती है। लग्नेश शुक्र के प्रभाव से ये लोग संबंधों को सँभालने, रचनात्मक कार्यों और भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर झुकाव रखते हैं। लेकिन जीवन की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि योगकारक ग्रह कितने सशक्त हैं और मारक ग्रहों का प्रभाव कितना नियंत्रित है।

योगकारक ग्रह – शुक्र, शनि और बुध जातक के जीवन में सफलता, स्थिरता और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। जब ये ग्रह बलवान हों तो व्यक्ति करियर, धन, विवाह और समाज में सम्मान की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।

मारक ग्रह – मंगल, गुरु और सूर्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में रुकावटें पैदा करते हैं। मंगल विवाह और धन संबंधी समस्याएँ लाता है, गुरु शत्रु और स्वास्थ्य की चुनौतियाँ बढ़ाता है और सूर्य इच्छाओं की पूर्ति तथा लाभ में अस्थिरता ला सकता है। चंद्र यहाँ सम ग्रह है, जो शुभ स्थिति में करियर और प्रतिष्ठा बढ़ाता है लेकिन अशुभ दशा में अस्थिरता ला सकता है।

मुख्य मार्गदर्शन

  • योगकारक ग्रहों को मजबूत करें:
    • शुक्र के लिए कला, संगीत और प्रेमभाव का विकास करें।
    • बुध के लिए संवाद-कौशल और ज्ञानार्जन पर ध्यान दें।
    • शनि के लिए अनुशासन, धैर्य और सेवा भाव अपनाएँ।
  • मारक ग्रहों के प्रभाव को कम करें:
    • मंगल से बचने के लिए क्रोध और विवादों पर नियंत्रण रखें।
    • गुरु के लिए अहंकार और अनावश्यक परिश्रम से दूर रहें।
    • सूर्य के लिए संतुलन बनाएँ और लाभ के पीछे अंधाधुंध न भागें।
  • सम ग्रह चंद्र: इसकी स्थिति पर नज़र रखें और मन को शांत रखने के लिए ध्यान और साधना करें।
  • राहु-केतु की दशा में भ्रम से बचें और स्थिर निर्णय लें।

अंतिम संदेश

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