Vrishchik Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को क्रोधी, दृढ़ निश्चयी, आत्मविश्वासी, गुप्त स्वभाव और बदला लेने की प्रवृति वाला बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि वृश्चिक लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आंकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
वृश्चिक लग्न का महत्व
वृश्चिक लग्न (Vrishchik Lagna) जल तत्व और स्थिर स्वभाव का प्रतीक है। यह रहस्य, गहराई, दृढ़ता और साहस का द्योतक है। इस लग्न के जातक रहस्यमयी व्यक्तित्व, गहन विचारशीलता और अटूट इच्छाशक्ति के लिए जाने जाते हैं। वे जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करके भी अपने लक्ष्य तक पहुँचने की क्षमता रखते हैं।
इस लग्न का स्वामी मंगल है, जो ऊर्जा, पराक्रम और दृढ़ निश्चय का ग्रह है। मंगल का प्रभाव वृश्चिक लग्न जातक को जुझारू, आत्मविश्वासी और किसी भी चुनौती का डटकर सामना करने वाला बनाता है।
हालाँकि, वृश्चिक लग्न का छाया-पक्ष जिद, अधिक गुप्तता और कभी-कभी क्रोध की अधिकता हो सकता है। इसलिए ग्रहों का सही संतुलन यहाँ और भी महत्वपूर्ण हो जाता है—यह जानना आवश्यक है कि कौन-से ग्रह सहयोगी हैं और कौन अवरोधक।
वृश्चिक लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण
वृश्चिक लग्न में ग्रहों का स्वभाव अन्य लग्नों से अलग होता है। यहाँ ग्रहों का वर्गीकरण उनके भाव स्वामित्व और प्रभाव के आधार पर किया जाता है। कुछ ग्रह जातक के जीवन में सकारात्मकता और स्थिरता लाते हैं, जबकि कुछ ग्रह संघर्ष और अवरोध उत्पन्न करते हैं।
- योगकारक ग्रह (Positive): मंगल, गुरु, चंद्र और सूर्य।
ये ग्रह जातक को शक्ति, ज्ञान, स्थिरता और सफलता की ओर ले जाते हैं। - मारक ग्रह (Negative): शुक्र और बुध।
ये ग्रह जीवन में संघर्ष, अस्थिरता और आर्थिक/पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। - सम ग्रह (Neutral): शनि।
यह स्थिति और दृष्टि के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों प्रकार के परिणाम देता है। - राहु-केतु: ये परिस्थितिजन्य ग्रह हैं और जिस भाव में स्थित हों, उसी अनुसार फल प्रदान करते हैं।
वृश्चिक लग्न में ग्रहों का विस्तृत वर्गीकरण
| ग्रह | श्रेणी | कारण / भूमिका |
|---|---|---|
| मंगल (लग्नेश) | योगकारक | पराक्रम, साहस, दृढ़ निश्चय और जीवन शक्ति का कारक। |
| गुरु (धनेश व ईष्टदेव) | योगकारक | द्वितीय और पंचम भाव का स्वामी, धन, शिक्षा और संतान सुख देता है। |
| चंद्र (भाग्येश) | योगकारक | नवम भाव का स्वामी, भाग्य, धार्मिकता और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। |
| सूर्य (कर्मेश) | योगकारक | दशम भाव का स्वामी, करियर, प्रतिष्ठा और सामाजिक मान-सम्मान बढ़ाता है। |
| शुक्र (सप्तमेश व व्ययेश) | मारक | सप्तम और बारहवें भाव का स्वामी, विवाह और व्यय में अस्थिरता लाता है। |
| बुध (अष्टमेश व आयेश) | मारक | अष्टम और एकादश भाव का स्वामी, हानि, अचानक संकट और लाभ में बाधा का कारक। |
| शनि (प्रक्रामेश व सुखेश) | सम ग्रह | तृतीय और चतुर्थ भाव का स्वामी, स्थिति अनुसार शुभ-अशुभ दोनों परिणाम। |
| राहु-केतु | परिस्थितिजन्य | अपनी स्थिति और युति के अनुसार शुभ या अशुभ परिणाम देते हैं। |
योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?
वृश्चिक लग्न कुंडली में योगकारक ग्रह वे होते हैं जो जातक के जीवन को स्थिरता, प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाते हैं। ये ग्रह शिक्षा, धन, करियर, भाग्य और मानसिक शक्ति को मजबूती देते हैं। वृश्चिक लग्न में मंगल, गुरु, चंद्र और सूर्य को मुख्य योगकारक माना जाता है।
1. मंगल (Mars) – लग्नेश और आत्मविश्वास का दाता
- मंगल वृश्चिक लग्न का स्वामी है और यहाँ प्रथम भाव से जुड़ा होता है।
- यह आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ निश्चय और जुझारूपन प्रदान करता है।
- बलवान मंगल जातक को नेतृत्व क्षमता, ऊर्जा और कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाता है।
2. गुरु (Jupiter) – धन, शिक्षा और संतान सुख का कारक
- गुरु द्वितीय (धन, वाणी) और पंचम (शिक्षा, संतान, बुद्धि) भाव का स्वामी है।
- यह जातक को आर्थिक स्थिरता, विद्या और संतान सुख प्रदान करता है।
- गुरु की शुभ स्थिति धार्मिक दृष्टि, नैतिकता और समाज में सम्मान भी देती है।
3. चंद्र (Moon) – भाग्य और मानसिक स्थिरता का स्वामी
- चंद्र नवम भाव (भाग्य, धर्म, उच्च शिक्षा) का स्वामी है।
- यह जातक के जीवन में सौभाग्य, धार्मिक प्रवृत्ति और मानसिक शांति लाता है।
- मजबूत चंद्र विदेश यात्रा और उच्च शिक्षा के अवसर भी देता है।
4. सूर्य (Sun) – करियर और प्रतिष्ठा का स्वामी
- सूर्य दशम भाव (कर्म, करियर, प्रतिष्ठा) का स्वामी है।
- यह जातक को करियर में उन्नति, सरकारी क्षेत्र में सफलता और सामाजिक सम्मान दिलाता है।
- बलवान सूर्य नेतृत्व क्षमता, प्रबंधन कौशल और स्थायी सफलता का कारक है।
वृश्चिक लग्न के लिए मुख्य शुभ योग
वृश्चिक लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह (मंगल, गुरु, चंद्र, सूर्य) मजबूत स्थिति में हों या आपस में शुभ युति बनाएँ, तब कई महत्वपूर्ण राजयोग और धनयोग का निर्माण होता है। ये योग जातक को शक्ति, धन, शिक्षा, भाग्य और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।
1. रुचक राजयोग (पंचमहापुरुष योग)
- निर्माण: जब लग्नेश मंगल प्रथम भाव (लग्न) में स्थित हो।
- फल: जातक को अपार ऊर्जा, साहस, पराक्रम और नेतृत्व क्षमता मिलती है। प्रशासनिक सफलता और युद्ध जैसी परिस्थितियों में विजय भी इस योग से मिलती है।
2. नीच भंग राजयोग
- निर्माण: जब मंगल नवम भाव में नीच राशि में हो और उसका नीचत्व भंग हो।
- विशेष संयोग:
- यदि चंद्र के साथ मंगल हो तो चंद्र-मंगल लक्ष्मी राजयोग भी बनता है।
- यदि गुरु भी साथ हो तो यहाँ तीन योग बनते हैं –
- नीच भंग राजयोग
- चंद्र-मंगल लक्ष्मी राजयोग
- गजकेसरी राजयोग (गुरु-चंद्र की युति से)
- फल: यह संयोजन जातक को अत्यधिक भाग्यशाली, आर्थिक रूप से सम्पन्न और समाज में आदरणीय बनाता है।
3. शश राजयोग (पंचमहापुरुष योग)
- निर्माण: जब शनि चतुर्थ भाव (मकर राशि) में स्थित हो।
- फल: जातक को स्थायी संपत्ति, पारिवारिक सुख, दीर्घायु और समाज में प्रतिष्ठा मिलती है।
4. विपरीत राजयोग
- निर्माण: शुक्र और बुध वृश्चिक लग्न के लिए मारकेश हैं, लेकिन यदि ये त्रिक भाव (षष्ठ, अष्टम, द्वादश) में स्थित हों और लग्नेश मंगल बलवान हो तो विपरीत राजयोग का निर्माण होता है।
- फल: जातक को संघर्षों से उबरकर सफलता मिलती है। प्रारंभिक जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन बाद में अचानक प्रगति और लाभ की स्थिति बनती है।
मारक ग्रह कौन होते हैं?
ज्योतिष में मारक ग्रह वे माने जाते हैं जो जातक के जीवन में अवरोध, अस्थिरता और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यहाँ “मारक” का अर्थ मृत्यु से नहीं, बल्कि ऐसे ग्रहों से है जो प्रगति की गति को धीमा करते हैं और शुभ परिणामों को कम कर देते हैं।
वृश्चिक लग्न कुंडली में मुख्य मारक ग्रह शुक्र और बुध हैं।
- शुक्र सप्तम और बारहवें भाव का स्वामी है। सप्तम भाव विवाह और साझेदारी का है, जबकि बारहवाँ भाव व्यय और हानि का। अशुभ दशा में शुक्र वैवाहिक जीवन में तनाव, अनावश्यक खर्च और भौतिक सुख-सुविधाओं में अस्थिरता ला सकता है।
- बुध अष्टम और एकादश भाव का स्वामी है। अष्टम भाव अचानक घटनाओं, संकट और मानसिक तनाव का है, जबकि एकादश भाव लाभ और इच्छाओं की पूर्ति का। अशुभ दशा में बुध हानि, लाभ में अस्थिरता और सामाजिक जीवन में मतभेद ला सकता है।
इसके अतिरिक्त शनि यहाँ सम ग्रह माना जाता है। यह स्थिति और दृष्टि के अनुसार कभी शुभ तो कभी अशुभ फल देता है। वहीं राहु-केतु अपनी स्थिति और युति के अनुसार परिस्थितिजन्य अवरोधक की तरह काम करते हैं।
वृश्चिक लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?
Vrishchik Lagna Kundli का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1
- ये वृश्चिक लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 8(वृश्चिक राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
- 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 8 लिखा है यानि आठवीं राशि और हमको पता है कि आठवीं राशि वृश्चिक होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल होते हैं तो लग्नेश हुए मंगल।
- लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 6H मिला है जोकि व्यक्तित्व और शत्रुता का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
- आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
- 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
- अब बात करते हैं 2H की जहाँ 9 नंबर लिखा है अर्थात धनु राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
- यहाँ 2H के स्वामी बृहस्पति हैं और 5H में भी उनकी ही मीन राशि है और वो लग्नेश मंगल के मित्र हैं इसलिए गुरु देव योगकारक के साथ-साथ ईष्ट देव भी हैं; क्योंकि कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है।
- 3H जिसमें लिखा है 10 नंबर जोकि होती है मकर राशि – जिसके स्वामी होते हैं शनि देव और शनि देव को वृश्चिक लग्न में दो घर मिले हैं 3H और 4H; एक घर पराक्रम का है तो एक भौतिक सुख का; इसी कारण शनि देव सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- सम ग्रह = जब किसी व्यक्ति की कुंडली होगी तो सम ग्रह का निर्धारण हो जाएगा कि ये सम ग्रह शनि देव योगकारक होंगे या मारक की श्रेणी में आयेंगे। योगकारक हुए तो परिणाम जरूर धीरे हो सकता है लेकिन अंततः परिणाम अच्छा ही होता है; वहीं अगर शनि देव मारक हुए तो परिणाम भी बहुत धीरे मिलता है और जितना किया जाये उसका कुछ कम ही परिणाम मिलता है। योगकारक होने पर व्यक्ति हार नहीं मानता और धीरे-धीरे ही सही पर लगा रहता है लेकिन मारक होने पर व्यक्ति हताश और निराश हो जाता है।
- 7H जिसमें वृषभ राशि है जोकि शुक्र देव की है और उनकी तुला राशि 12H में है और अभी-अभी हमने अष्टम-द्वादश सिद्धांत की बात करी, इस नाते शुक्र देव मारक ग्रह की श्रेणी में आ जाते हैं।
- 8H और 11H जिसमें बुध देव की क्रमशः मिथुन और कन्या राशियाँ हैं, बुध देव को कुछ ज़्यादा अच्छे घर नहीं दिए हैं मंगल देव ने और वो लग्नेश के शत्रु भी है इसलिए दूसरे अति मारक ग्रह हुए बुध देव।
- 9H जिसमें कर्क राशि है जोकि चंद्र देव की है जो भाग्येश बने हैं और लग्नेश के तो मित्र हैं ही इसलिए तीसरे अति महत्वपूर्ण योगकारक ग्रह हुए चंद्र।
- अब बात करते हैं 10H की जिसमें लिखा है 5 नंबर यानि सिंह राशि जिसके स्वामी हैं सूर्य देव जोकि कर्मेश बनें हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
| योगकारक | सम | मारक |
| मंगल | शनि | शुक्र |
| गुरु | बुध | |
| चंद्र | ||
| सूर्य |
चित्र – 2
हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपनी विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।
👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।
तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है। तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-
| योगकारक | मारक |
| गुरु | मंगल |
| शनि | बुध |
| शुक्र | सूर्य |
| चंद्र | केतु |
| राहु |
- मंगल लग्नेश हैं और लग्नेश सदा योगकारक होता है लेकिन यहाँ लग्नेश त्रिक भाव में जाने से अच्छा नहीं हुआ और इसी कारण लग्नेश मारक ग्रह की श्रेणी में आयें हैं; बेशक व्यक्ति दीर्घायु होगा लेकिन जीवन की परेशानियों और संघर्षों के साथ।
- गुरु धनेश हैं, पंचमेश हैं और ईष्टदेव भी और केंद्र में सप्तम भाव में हैं जोकि कुंडली का अति महत्वपूर्ण और अच्छा स्थान है तथा लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए गुरु योगकारक होंगे।
- शनि सम ग्रह होते है और उनकी स्थिति कुंडली में अच्छी है; वो धन भाव में हैं तो योगकारक होंगे।
- वृश्चिक लग्न में प्रथम मारक ग्रह शुक्र होते हैं लेकिन यहाँ स्वराशि होने की वजह से योगकारक हुए हैं और इन्होंने तो सप्तम भाव में मालव्य राजयोग बना दिया जोकि पंचमहापुरुष राजयोग का एक प्रकार है; हाँ ये राजयोग उतना शक्तिशाली नहीं होगा और दृष्टि का भी अच्छा परिणाम नहीं हो सकता लेकिन बिज़नेस भाव में तो राजयोग बन ही गया।
- शुक्र के बाद दूसरे मारक ग्रह बुध होते हैं और यहाँ भी उनके साथ कोई विशेष स्थिति नहीं बनी इसलिए वो मारक ही रहेंगे; हाँ ये ज़रूर कह सकते कि सप्तम भाव में अच्छे परिणाम दे सकते हैं क्योंकि मित्र शुभ ग्रहों के साथ हैं लेकिन जहाँ उनकी राशियाँ है और उनकी दृष्टि वाली जगह नकारात्मक परिणाम ही देंगे।
- चंद्र भाग्येश हैं और कर्म भाव में हैं इसलिए योगकारक होंगे; केतु के साथ हैं लेकिन इससे चंद्र मारक नहीं होते बल्कि उनकी योगकारकता के फल देने के बल में कमी आती है।
- सूर्य कर्मेश हैं और त्रिक भाव में उच्च का होना अच्छी बात नहीं है, हाँ शत्रुओं पर विजय मिलेगी और मेहनत करने पर सरकारी जॉब भी मिल सकती है लेकिन कर्म में संघर्ष तो बढ़ा ही दिया और लग्नेश के भी त्रिक भाव में होने के साथ सूर्य का यहाँ होना व्यक्ति को रोगी बना सकता है जोकि अच्छी बात नहीं कुलमिलाकर सूर्य मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
- राहु मित्र की राशि में हैं और मित्र योगकारक हैं इसलिए राहु भी योगकारक होंगे लेकिन उनकी दृष्टि चंद्र पर पड़ रही है तो व्यक्ति का मन स्थिर नहीं रहेगा और अधिकतर भ्रमित ही होगा इंसान लेकिन राहु योगकारक ही रहेंगे।
- केतु शत्रु की राशि में हैं और शत्रु के साथ हैं इसलिए मारक होंगे और केतु ने तो चंद्र ग्रहण दोष का भी निर्माण कर दिया है।
- तो उम्मीद है कि सबकुछ समझ आ रहा होगा आपको और कहीं कुछ विशेष परेशानी होती है तो जरूर आप कमेंट करना,,,, आप बस कोशिश कीजिए आपको जरूर समझ आएगा।
राहु-केतु की गणना
- राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
- लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
- केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
- केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है;
- राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
- राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
- राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
- राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
- कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।
निष्कर्ष: वृश्चिक लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन
वृश्चिक लग्न कुंडली जातक को साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और रहस्यमयी आकर्षण का वरदान देती है। लग्नेश मंगल के प्रभाव से ऐसे लोग कठिन परिस्थितियों में भी जुझारूपन दिखाते हैं और लक्ष्य प्राप्त करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।
योगकारक ग्रह – मंगल, गुरु, चंद्र और सूर्य जातक को आत्मविश्वास, धन, शिक्षा, संतान सुख, भाग्य और करियर में सफलता प्रदान करते हैं। जब ये ग्रह बलवान हों तो व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करता है और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
दूसरी ओर, शुक्र और बुध मारक ग्रह माने जाते हैं, जो विवाह, धन और मानसिक शांति में अस्थिरता ला सकते हैं। शनि यहाँ सम ग्रह है, जो अपनी स्थिति और दृष्टि के अनुसार शुभ या अशुभ फल देता है। वहीं राहु-केतु परिस्थितिजन्य अवरोधक होते हैं, जो जिस भाव में स्थित हों उसी के अनुसार परिणाम देते हैं।
मुख्य मार्गदर्शन
- योगकारक ग्रहों को मज़बूत करें:
- मंगल के लिए साहस और अनुशासन को जीवन में अपनाएँ।
- गुरु के लिए ज्ञान, धर्म और दान-पुण्य पर ध्यान दें।
- सूर्य के लिए आत्मविश्वास और नियमितता बनाए रखें।
- चंद्र के लिए मन को शांत रखने हेतु ध्यान और साधना करें।
- मारक ग्रहों के प्रभाव को कम करें:
- शुक्र के लिए वैवाहिक जीवन में धैर्य और संयम रखें।
- बुध के लिए निर्णयों में जल्दबाज़ी से बचें और संवाद को स्पष्ट रखें।
- सम ग्रह शनि: अनुशासन और सेवा भाव से शुभ फल देता है, इसलिए धैर्य और मेहनत को जीवन में उतारें।
- राहु-केतु: भ्रम से बचें और स्थिर निर्णय लें, तभी इनके नकारात्मक असर को कम किया जा सकता है।
अंतिम संदेश
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- मकर लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।
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- मीन लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।
