सूर्य ग्रहण दोष – क्या सच में यह कुंडली को प्रभावित करता है?

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सूर्य ग्रहण दोष क्या है? – मूल परिभाषा और वैदिक दृष्टिकोण

वैदिक ज्योतिष में Surya Grahan Dosh तब बनता है जब कुंडली में सूर्य के साथ राहु या केतु की युति होती है। यह युति साधारण नहीं मानी जाती, क्योंकि सूर्य आत्मा, अहंकार, तेज, प्रतिष्ठा और जीवन-ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि राहु और केतु छाया ग्रह हैं—जो भ्रम, संशय, छल, मोह, अनिश्चितता और भाग्य-विघ्न का कारक होते हैं। जब तेजस्वी सूर्य पर छाया ग्रहों की ऊर्जा पड़ती है, तो इसे रूपक रूप में ग्रहण की स्थिति कहा जाता है।

लेकिन वैदिक सिद्धांत यह भी कहता है कि हर सूर्य–राहु/केतु युति दोष नहीं होती। ग्रहण दोष बनने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें होती हैं:

✔ 1. दोनों में से एक ग्रह मारक हो

यदि सूर्य या राहु/केतु में से कोई एक भी लग्न कुंडली में मारक भूमिका निभाता हो, तो यह युति नकारात्मक हो जाती है।

✔ 2. दोनों ग्रह मारक हों

यदि दोनों ग्रह मारक हों, तब यह सूर्य ग्रहण दोष पूर्ण रूप से सक्रिय माना जाता है। यह स्थिति अहंकार, फैसलों में भ्रम, करियर के उतार-चढ़ाव, रिश्तों में गलतफहमियाँ, और आंतरिक संघर्ष पैदा करती है।

✔ 3. यदि दोनों ग्रह योगकारक हों?

ऐसी स्थिति में यह युति दोष नहीं मानी जाती। हाँ, इसे नाम मात्र का ग्रहण कह सकते हैं, परंतु फल ज्यादातर सकारात्मक मिलते हैं—क्योंकि:

  • योगकारक सूर्य आत्मविश्वास, प्रतिष्ठा और नेतृत्व को बढ़ाते हैं,
  • और योगकारक राहु महत्त्वाकांक्षा, साहस, अवसर और उपलब्धियों को बढ़ाता है।

इसलिए “ग्रहण” का अर्थ केवल छाया नहीं, बल्कि ऊर्जा का असंतुलन है—और यह असंतुलन तभी हानिकारक बनता है जब ग्रहों की मूल प्रकृति व्यक्ति के पक्ष में न हो।

सूर्य ग्रहण दोष के सार को सरल शब्दों में समझें

  • सूर्य = आत्मा + मान-सम्मान + सत्य + तेज
  • राहु = भ्रम + लालसा + अनिश्चितता + छल
  • केतु = अलगाव + वैराग्य + संशय

जब आत्मा पर भ्रम, अनिश्चितता या मानसिक अस्पष्टता की छाया पड़ती है, तो जीवन कई बार दिशाहीन हो सकता है। यही छाया प्रभाव सूर्य ग्रहण दोष कहलाता है।

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मेष लग्न में सूर्य–राहु की युति: विस्तृत विश्लेषण

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य पाँचवें भाव के स्वामी होते हैं। इसलिए यह लग्न सूर्य को ईष्टदेव ग्रह के रूप में स्वीकार करता है—क्योंकि 5H बुद्धि, प्रज्ञा, संतान, सौभाग्य और जीवन-निर्णयों की गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण से मेष लग्न में सूर्य स्वभावतः योगकारक और शुभ फलदायी माने जाते हैं। दूसरी ओर राहु का परिणाम भाव और राशि पर निर्भर करता है—कहीं अत्यंत शुभ, कहीं मध्यम, और कुछ स्थानों पर अत्यंत मारक भी। इसलिए मेष लग्न में सूर्य–राहु की युति को समझने के लिए पहले यह देखना अत्यन्त आवश्यक है कि ये दोनों ग्रह किस भाव में बैठे हैं और वहाँ इनकी स्वभाविक अनुकूलता कैसी है।

1st, 4th, 5th, 9th भाव — सूर्य योगकारक लेकिन राहु यहाँ मारक

इन भावों में सूर्य तो बलवान, योगकारक और मेष लग्न के लिए शुभ होते हैं, परंतु राहु यहाँ शत्रु राशियों में होकर अशुभ परिणाम देता है—विशेषकर:

  • 1H (लग्न) में राहु भ्रम, पहचान संकट, over-confidence और अचानक निर्णय उत्पन्न कर देता है।
  • 4H में राहु भावनात्मक अस्थिरता और गृह सुख में बाधा देता है।
  • 5H में राहु बुद्धि और विवेक को प्रभावित करता है।
  • 9H में राहु नीच का भी माना जाता है—यह सबसे कमजोर स्थिति है।

👉 इसलिए इन घरों में सूर्य–राहु की युति ग्रहण दोष की सक्रिय और अशुभ श्रेणी में आती है, क्योंकि दोष राहु की ओर से अधिक घातक होता है।

2nd, 3rd, 11th भाव — दोनों ग्रह योगकारक, इसलिए युति शुभफलदायी

इन भावों में राहु मेष लग्न के लिए शक्तिशाली माना जाता है:

  • 2H में राहु मित्र की राशि में होता है और 3H में राहु उच्च का भी होता है,
  • 3H और 11H में तो राहु हर लग्न के लिए शुभ फल देता है—यह उसकी सर्वोत्तम स्थिति मानी जाती है।

सूर्य पहले से ही मेष लग्न के लिए योगकारक हैं, अतः इनके साथ राहु की यह युति शुभ योग का निर्माण करती है:

  • धन लाभ
  • साहस और निर्णय क्षमता
  • बड़े अवसर
  • विदेश और तकनीकी क्षेत्रों में उन्नति
  • social authority

👉 यहाँ “सूर्य ग्रहण दोष” नाम मात्र का रह जाता है—फल पूर्ण रूप से सकारात्मक।

🔹 विशेष नोट:
यदि शुक्र, बुध या शनि भी मेष लग्न में योगकारक हों, तो यह युति अत्यंत शक्तिशाली बन जाती है और कई बार राजयोग-समान फल देती है।

6th, 8th, 12th भाव — त्रिक भाव, पूर्ण मारक युति

ये भाव स्वभाव से ही चुनौतीपूर्ण होते हैं। इन घरों में सूर्य–राहु की युति:

  • स्वास्थ्य हानि,
  • मानसिक तनाव,
  • कोर्ट-कचहरी,
  • अचानक नुकसान,
  • शत्रु बढ़ना,
  • संबंधों में भ्रम,
  • और दिशा भ्रम पैदा करती है।

👉 यहाँ दोनों ग्रह मारक फल देते हैं, इसलिए यह संयोजन शुद्ध सूर्य ग्रहण दोष कहलाता है।

7th और 10th भाव — मिश्रित या conditional परिणाम

7th House

  • राहु यहाँ मित्र राशि में होने से शुभ भी हो सकता है।
  • पर सूर्य 7H में नीच के हो जाते हैं।
  • यदि नीचभंग राजयोग बन जाए — परिणाम अत्यंत शुभ।
  • यदि नीच भंग न हो — अहंकार + भ्रम संबंधों को नुकसान दे सकते हैं।

10th House

  • सूर्य यहाँ बलवान और योगकारक — करियर में authority बढ़ाते हैं।
  • राहु यहाँ मित्र की राशि में होते हैं और यदि शनि योगकारक हों तो यह युति कई बार करियर में असाधारण उछाल देती है।

👉 इसलिए 7H और 10H की युति conditional है — योग बने तो बहुत ऊँचा उठाती है, मारक स्थिति बने तो बहुत गिराती है।

सूर्य–राहु/केतु अस्त नहीं होते: एक महत्वपूर्ण नियम

वैदिक ज्योतिष में यह नियम स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सूर्य के साथ युति में आने पर राहु और केतु कभी भी अस्त (combust) नहीं होते। अस्त होना केवल उन ग्रहों के लिए माना जाता है जो भौतिक रूप से सूर्य के अत्यधिक निकट आने पर अपने तेज या शक्ति खो देते हैं। लेकिन राहु और केतु भौतिक ग्रह नहीं, बल्कि छाया ग्रह हैं—ये आकाशीय छाया-बिंदुओं के रूप में कार्य करते हैं, जिनका अस्त, उदय, या तेज घटने-बढ़ने की प्रक्रिया अन्य ग्रहों जैसी नहीं होती।

सूर्य के बिल्कुल समीप होने पर भी इन ग्रहों की शक्ति कम नहीं होती, बल्कि उल्टा—ये सूर्य की रोशनी को प्रभावित करते हैं और उस पर अपना छाया-प्रभाव डालते हैं। इसी कारण सूर्य–राहु या सूर्य–केतु की युति को ही “ग्रहण” कहा जाता है, क्योंकि राहु और केतु सूर्य के प्रकाश को ढकने की क्षमता रखते हैं और यही असर जन्मकुंडली में भी प्रतिबिंबित होता है।

यह सिद्धांत समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई लोग मान लेते हैं कि किसी भी ग्रह की सूर्य के साथ युति अस्त की स्थिति बना देती है, पर राहु और केतु इसका अपवाद हैं। ये दोनों ग्रह सूर्य के तेज को अपने ऊपर नहीं लेते, बल्कि सूर्य की चमक पर छाया डालते हैं। इसीलिए जब कुंडली में सूर्य भी मारक भूमिका में हों और राहु/केतु का प्रभाव भी नकारात्मक हो, तो यह युति और अधिक घातक हो जाती है।

सूर्य आत्मा, प्रकाश, प्रतिष्ठा और सत्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि राहु छल, भ्रम, अनिश्चितता और छाया का। जब सूर्य का तेज ख़त्म नहीं होता बल्कि राहु/केतु द्वारा ढँक जाता है, तब जीवन में भ्रम, गलत निर्णय, अहंकार की ग़लत दिशा, प्रतिष्ठा में उतार-चढ़ाव या मानसिक बोझ प्रकट होने लगते हैं। यही कारण है कि इन छाया ग्रहों के साथ सूर्य की युति को “ग्रहण” माना जाता है, परन्तु “अस्त” नहीं।

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सूर्य ग्रहण दोष का प्रभाव कब मिलता है? – महादशा और अंतर्दशा का वास्तविक रहस्य

सूर्य ग्रहण दोष के प्रभाव हर समय सक्रिय नहीं रहते। युति चाहे किसी भी भाव में हो—इसके नकारात्मक या सकारात्मक परिणाम तभी प्रकट होते हैं, जब सूर्य या राहु/केतु की महादशा या अंतर्दशा सक्रिय हो जाती है। यही समय ग्रहों की वास्तविक ऊर्जा को जीवन में उभरने का अवसर देता है।

जब सूर्य की दशा चलती है तो व्यक्ति की आत्मा, प्रतिष्ठा, निर्णय, करियर और मान–सम्मान सक्रिय हो जाते हैं, और यदि इसी समय राहु की अंतर्दशा आ जाए, तो सूर्य के प्रकाश पर राहु की छाया अपना प्रभाव दिखाने लगती है। यही स्थिति भ्रम, गलत निर्णय, अहंकार का बढ़ना या प्रतिष्ठा को लेकर अनिश्चितता पैदा कर सकती है। इसी प्रकार राहु या केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा आने पर ग्रहण-दोष का प्रभाव फिर से उभरता है और व्यक्ति मानसिक, सामाजिक या भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है।

  • अशुभ परिणाम = जब सूर्य/राहु/केतु की दशाएँ आएँ
  • उपाय का सर्वोत्तम समय = जब ग्रह की दशा सक्रिय हो
  • समाधान का सही तरीका = नकारात्मक ग्रह का दान + सकारात्मक ग्रह का बीज मंत्र करना

दशाएँ ग्रहों को केवल सक्रिय नहीं करतीं, वे व्यक्ति के जीवन का “छिपा हुआ अध्याय” भी खोलती हैं। इसलिए महादशा–अंतर्दशा सूर्य ग्रहण दोष के प्रभाव का केवल ट्रिगर नहीं हैं—वे उसके वास्तविक द्वार हैं।

सूर्य ग्रहण दोष का मनोवैज्ञानिक प्रभाव – आत्मा बनाम भ्रम

सूर्य ग्रहण दोष का सबसे गहरा प्रभाव केवल घटनाओं, करियर या संबंधों पर नहीं पड़ता—इसका असली आघात अंतर-चेतना पर होता है। क्योंकि सूर्य आत्मा, सत्य, विवेक और मान–सम्मान का प्रतिनिधि है, जबकि राहु भ्रम, छल, लालसा और मानसिक धुंध का। जब सूर्य पर राहु की छाया पड़ती है, तो यह केवल एक ग्रहण नहीं होता, बल्कि आत्मा और भ्रम के बीच एक मौन संघर्ष आरम्भ हो जाता है।

इस युति में सूर्य का अहंकार और राहु का मोह साथ आकर व्यक्ति के भीतर एक द्वंद्व पैदा करते हैं। आत्मा प्रकाश की ओर बढ़ना चाहती है, पर राहु उसे धुंध में घुमाता है। व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह सही निर्णय ले रहा है, लेकिन राहु उसकी समझ पर परदा डाल देता है। यही कारण है कि ग्रहण दोष वाले जातकों में कई बार self-doubt, overconfidence, गलत आकलन, गलत लोगों पर भरोसा, और प्रतिष्ठा को लेकर अनिश्चितता देखने को मिलती है। यह संघर्ष बाहरी नहीं—भीतर का है।

इसी बात की गहराई को हमने अपने आध्यात्मिक लेख क्षणभंगुर यश, क्षणभंगुर जीवन — और जीवन का असली प्रश्न↗” में जिस सत्य की चर्चा की है, वह यहाँ पूरी तरह लागू होता है। हमने इस लेख में समझा था कि जीवन के सारे भ्रम, उपलब्धियाँ और मान–सम्मान अंततः क्षणभंगुर हैं — पर सूर्य ग्रहण दोष में राहु इन क्षणभंगुर चीज़ों को ही जीवन का स्थाई सत्य बनाकर प्रस्तुत करता है। यही भ्रम व्यक्ति को उसके वास्तविक उद्देश्य से दूर ले जाता है। जब अहंकार में छल मिल जाए, और सम्मान की लालसा में मोह जुड़ जाए, तो आत्मा अपनी दिशा खोने लगती है। यही राहु का वास्तविक असर है — यह भौतिक के साथ-साथ चेतना पर भी ग्रहण लगाता है।

इस मनोवैज्ञानिक स्तर पर सूर्य–राहु की युति व्यक्ति को दो दुनियाओं के बीच खड़ा कर देती है: एक ओर सत्य, प्रकाश और आत्म-चेतना का सूर्य और दूसरी ओर भ्रम, लालसा और आकांक्षाओं का राहु।

यही कारण है कि ग्रहण दोष के जातक कई बार अत्यधिक ambitious, अत्यधिक emotional या अत्यधिक ego-driven दिखाई देते हैं — क्योंकि उनकी आत्मा और मन के बीच संतुलन टूट जाता है। यह दोष घटनाओं से पहले विचारों को प्रभावित करता है, और विचारों से पहले दृष्टिकोण को। इसलिए इसका समाधान केवल बाहर नहीं, अंदर भी खोजा जाता है — स्वयं की चेतना को साफ रखना, विवेक को जाग्रत रखना और मन के भ्रमों को पहचानना।

अंत में, ग्रहण दोष का मनोवैज्ञानिक सार यही है कि यह व्यक्ति के भीतर प्रकाश और छाया का युद्ध है। सूर्य जो आत्मा को दिशा देता है, और राहु जो दिशा को धुंधला करता है—इन दोनों की ऊर्जा तभी संतुलित होती है जब जातक अपने भीतर के भ्रमों को पहचानता है। यही “आत्म-बोध” सूर्य की वास्तविक शक्ति है—और यही इस दोष का अंतिम समाधान।

सूर्य ग्रहण दोष के उपाय — दान, मंत्र और ग्रह बल का वास्तविक रहस्य

सूर्य ग्रहण दोष का समाधान किसी एक उपाय से नहीं होता—यह हमेशा समझ और समय दोनों पर निर्भर करता है। क्योंकि इस दोष में दो बिल्कुल विपरीत ऊर्जाएँ साथ काम कर रही होती हैं: सूर्य का प्रकाश और राहु/केतु की छाया। इसलिए उपाय भी दो स्तरों पर किए जाते हैं — एक, नकारात्मक ग्रह को शांत करना; दो, सकारात्मक ग्रह को बल देना। यही वैदिक नियम है।

जब सूर्य या राहु/केतु की दशा सक्रिय होती है, तब यह दोष अपने वास्तविक रूप में जाग जाता है। ऐसे में वही उपाय प्रभावकारी होते हैं जो ग्रह उस समय आपसे “मांग” रहा होता है। हमने अपने लेख दान और ग्रह — एक गहरी समझ: क्या दान करें, कब करें और क्यों करें?↗ में जिस मूल सिद्धांत को समझाया है, वह यहाँ पूर्ण रूप से लागू होता है—उपाय तभी फलित होता है जब ग्रह सक्रिय हो।

इसलिए यदि राहु परेशानी दे रहा है, तो राहु से संबंधित दान—विशेषकर उड़ने वाले पक्षियों की सेवा—सबसे तेज़ और सटीक परिणाम देती है। राहु जिन चीज़ों में अति कराता है, उन्हीं चीज़ों को दान करके हम उसकी ऊर्जा को संतुलित कर सकते हैं। पक्षियों को भोजन देना, पानी उपलब्ध कराना और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना राहु को स्वाभाविक रूप से शांत करता है।

दूसरी ओर, यदि सूर्य कमजोर हो गए हों—या राहु का प्रभाव सूर्य के तेज़ पर ग्रहण डाल रहा हो—तो सूर्य को बल देना आवश्यक हो जाता है और ग्रह को बल देने का सर्वोत्तम तरीका मंत्र है। हमने अपने लेख 9 ग्रहों के वैदिक बीज मंत्र: रहस्य, विधान और प्रभाव↗ में यह बात सुंदर तरीके से स्पष्ट की है कि बीज मंत्र किसी ग्रह की मूल ऊर्जा को सीधे जागृत करते हैं

सूर्य के लिए “ॐ घृणिः सूर्याय नमः” का जप न केवल सूर्य के तेज को बढ़ाता है, बल्कि राहु द्वारा डाली गई मानसिक धुंध को भी साफ करने लगता है। यह वह उपाय है जो व्यक्ति के भीतर प्रकाश को पुनः सक्रिय करता है। उपाय का वास्तविक सार यही है:

नकारात्मक ग्रह का दान → उसकी छाया को शांत करता है
सकारात्मक ग्रह का मंत्र → उसके प्रकाश को बढ़ाता है

जब यह दोनों प्रयास एक साथ किए जाएँ, तभी सूर्य ग्रहण दोष का प्रभाव वास्तव में कम होता है। उपाय कर्मकांड नहीं है; यह ऊर्जा का पुनर्संतुलन है। राहु भ्रम देता है, इसलिए उसके लिए दान; सूर्य दिशा देता है, इसलिए उसके लिए मंत्र। उपाय का यही द्वि-स्तरीय सिद्धांत ग्रहण दोष को धीरे-धीरे हल्का करता है और व्यक्ति के भीतर clarity, आत्मविश्वास और स्थिरता लौटने लगती है।

अंततः उपाय तभी सार्थक होते हैं जब उन्हें सही समय और सही ग्रह की दशा में किया जाए—और यह वही चीज़ है जिसे समझने के लिए लोग व्यक्तिगत मार्गदर्शन लेते हैं, क्योंकि हर कुंडली में दोष की तीव्रता, ग्रहों की शक्ति और दशाओं की दिशा अलग होती है।

निष्कर्ष – सूर्य ग्रहण दोष का वास्तविक रहस्य

सूर्य ग्रहण दोष को समझने का सार केवल इतना नहीं है कि सूर्य के साथ राहु या केतु की युति कहाँ बन रही है और वह कितनी अशुभ या शुभ है। इसका वास्तविक रहस्य इससे कहीं अधिक गहरा है — यह उन दो शक्तियों का मिलन है जो जीवन को अलग-अलग दिशाओं में खींचती हैं। सूर्य आत्मा, सत्य, प्रकाश, पहचान और दिशाबोध है, जबकि राहु/केतु छाया, भ्रम, अनियंत्रित इच्छा और अनिश्चितता का प्रतीक हैं। जब ये दोनों एक साथ आते हैं, तो जीवन में प्रकाश और छाया का एक अद्भुत संयोजन बनता है, जो कभी मार्ग दिखाता है और कभी मार्ग से भटका देता है।

इस पूरे लेख में हमने देखा कि यह युति कुछ भावों में अत्यंत शुभ हो सकती है और कुछ में बेहद अशुभ — यह दोष सार्वभौमिक नहीं है, बल्कि संदर्भ-निर्भर है। यदि ग्रह योगकारक हों तो यह युति अवसर, उपलब्धि और सफलता का कारण बन जाती है; यदि ग्रह मारक हों, तो यह वही तेज़ मनुष्य को भ्रम और संघर्ष की ओर धकेल देता है। यह विरोधाभास ही सूर्य ग्रहण दोष का वास्तविक चरित्र है।

इसके अलावा, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि दोष हर समय सक्रिय नहीं होता। यह तब जागता है जब सूर्य या राहु/केतु की दशाएँ प्रबल हों — ठीक उसी क्षण जब व्यक्ति के जीवन में एक नया अध्याय खुल रहा होता है। इसी समय उपाय भी सबसे अधिक प्रभावी होते हैं: राहु से मुक्ति दान द्वारा और सूर्य की शक्ति मंत्र द्वारा। दान और मंत्र—छाया और प्रकाश—यही संतुलन इस दोष को सरल करता है।

अंततः सूर्य ग्रहण दोष का वास्तविक अर्थ किसी व्यक्ति के जीवन में एक चेतावनी नहीं बल्कि एक आमंत्रण है — स्वयं को गहराई से देखने का, अपने भ्रमों को पहचानने का, अपने उद्देश्य को जानने का, और जीवन के प्रकाश को पुनः सक्रिय करने का। ग्रहण केवल सूर्य का नहीं होता; कई बार यह मन का भी होता है और जब मन प्रकाश को पहचान लेता है, तो कोई भी छाया स्थाई नहीं रह सकती।

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