अस्त ग्रह कैसे पहचानें? सूर्य के तेज़ में छिपे ग्रहों का रहस्य।

अस्त ग्रह का सही अर्थ क्या है?

Ast Grah Kya Hota Hai? अस्त ग्रह को समझने से पहले एक बात दिल में उतार लो— ग्रह भी ठीक उसी तरह अस्त होते हैं जैसे सूर्य होता है। जब सूर्य क्षितिज के नीचे चला जाता है, उसे सूर्यास्त कहते हैं और चारों ओर प्रकाश की जगह अंधकार छा जाता है। बिल्कुल यही प्रक्रिया ग्रहों के साथ भी घटती है, लेकिन यहाँ सूर्य छिपता नहीं… सूर्य ही दूसरे ग्रहों को अपने तेज में छिपा देता है।

जब कोई ग्रह सूर्य के बहुत नज़दीक चला जाता है, तो वह अपने स्वभाव का प्रकाश खो देता है। ठीक वैसे ही जैसे तेज रोशनी में छोटी लौ दिखाई नहीं देती — ग्रह सूर्य के अत्यधिक प्रकाश में “दिखाई देना बंद” कर देता है। और यही अवस्था अस्त ग्रह कहलाती है।

👉 साधारण भाषा में:
जिस ग्रह का तेज सूर्य अपने अंदर खींच लेता है, वह ग्रह अस्त कहलाता है।

शब्दों में छोटा है, पर प्रभाव में बहुत गहरा है—
क्योंकि अस्त ग्रह वह है जो मौजूद तो है, लेकिन सक्रिय नहीं है।
वह ना अपना शुभ फल दे पाता है, ना ही अशुभ — क्योंकि उसका तत्व सूर्य के तेज में दब चुका होता है।

लेकिन अभी इसे उलझा मत समझो।
जैसे-जैसे आगे पढ़ते जाओगे, ये “अस्त अवस्था” काँच की तरह साफ़ दिखाई देने लगेगी।

तो चलिए इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

अस्त ग्रह और अस्त होने की प्रक्रिया

अब जब इतना समझ आया कि सूर्य अपने तेज़ से ग्रहों को ढँक देता है, तो अगला सवाल उठता है— कौन-कौन से ग्रह अस्त होते हैं और यह प्रक्रिया आखिर चलती कैसे है? यही असली खेल है। सबसे पहले एक बात साफ़ कर लो— कुल 9 ग्रह माने जाते हैं, पर अस्त अवस्था में सिर्फ 7 ही आते हैं। लेकिन इन 7 में भी केवल 6 ग्रह अस्त होते हैं, और एक ग्रह ही ऐसा है जो बाकी सभी को अस्त करता है — वह है सूर्य।

राहु और केतु इस प्रणाली में नहीं आते क्योंकि ये छाया ग्रह हैं। इनका अपना कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता, इसलिए ये सूर्य से अस्त भी नहीं हो सकते। बल्कि उल्टा— इनके कारण ग्रहण दोष बनता है, जो अस्त होने से बिल्कुल अलग घटना है। अब ज़रूरी बात —

बाकी सभी ग्रह (चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) अपनी ऊर्जा सूर्य से ही प्राप्त करते हैं। जब ये ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी के भीतर आ जाते हैं (जिसे अस्त की डिग्री कहा जाता है), तो सूर्य का प्रकाश इनके स्वयं के तेज को ढँक देता है। इस अवस्था में ग्रह का स्वभाव, उसका कारकत्व, उसका शुभ-अशुभ फल — सब दब जाता है। आप इसे ऐसे समझ सकते हो:

जैसे कोई छोटा तारा एक बहुत बड़े तारे के बिल्कुल पास चला जाए, तो उसका प्रकाश दिखना बंद हो जाता है — पर वो तारा फिर भी मौजूद होता है। ठीक यही स्थिति अस्त ग्रह की है। ग्रह है, उसकी शक्ति भी है, उसकी भूमिका भी है… लेकिन सूर्य के अत्यधिक तेज में वह बाहर दिखाई नहीं देता, यानी अपनी भूमिका नहीं निभा पाता।

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे खास बात है — हर ग्रह के लिए सूर्य से अस्त होने की अलग दूरी होती है। इसी दूरी को अस्त ग्रह की निश्चित मापन (Degrees of Combustion) कहते हैं। ये डिग्री क्या है और कैसे काम करती है — यही हम अगले हिस्से में बिल्कुल साफ़ करेंगे।

अस्त ग्रह फल क्यों नहीं देता?

अब असली सवाल यही है— अस्त ग्रह आखिर फल क्यों नहीं देता? क्योंकि ग्रह तो है, कुंडली में बैठा है, डिग्री भी है… पर परिणाम क्यों गायब? सीधी-सी बात है— अस्त अवस्था में ग्रह अपना तेज़ खो देता है। जब ग्रह सूर्य के बहुत नज़दीक आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश उस ग्रह की स्वयं की ऊर्जा को ढँक देता है। ग्रह की रश्मियाँ, उसका तत्व, उसकी कंपन्न— सब दब जाती हैं और जब ग्रह की ऊर्जा ही सक्रिय नहीं है, तो फल देने का “माध्यम” ही नहीं बचता।

जैसे:

  • चंद्रमा जब धुँधले बादलों में छिप जाता है तो रोशनी नहीं देता।
  • दीपक तेज़ धूप में जल रहा हो तो लौ दिखाई नहीं देती।
  • मोबाइल ऑन हो पर स्क्रीन ब्लैक हो— तो आप कुछ भी नहीं कर पाओगे।

यही अस्त ग्रह की अवस्था है—
वह मौजूद है, लेकिन दिखाई नहीं देता, काम नहीं करता, प्रतिक्रिया नहीं देता। अस्त ग्रह शुभ और अशुभ — दोनों ही फल देने में असमर्थ हो जाता है। यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि अस्त होना ग्रह का ‘समाप्त’ होना नहीं है। वह कुंडली में है, पर निष्क्रिय है।

कोई भी ग्रह जब तक अपनी ऊर्जा बाहर प्रेषित नहीं कर पाता, अपने कारकत्वों को सक्रिय नहीं कर पाता, तब तक वह किसी प्रकार का फल नहीं दे सकता — न शुभ, न अशुभ और यही कारण है कि: बिना उपाय किए अस्त ग्रह फल देने की अवस्था में ही नहीं आता।

  • उसको जगाना पड़ता है,
  • उसकी ऊर्जा को पुनः सक्रिय करना पड़ता है,
  • उसके तत्व को शरीर में पुनः प्रज्वलित करना पड़ता है।

यही कारण है कि अस्त ग्रह का उपाय किए बिना, वह जीवन में कोई वास्तविक प्रभाव नहीं दिखाता। लेकिन… उपाय कब करना चाहिए और कब नहीं? मारक ग्रह होने पर क्या करें? योगकारक ग्रह के अस्त होने पर क्या खतरा?

अस्त ग्रह की डिग्री

अब हम पहुँच चुके हैं उस हिस्से पर जहाँ “अस्त ग्रह” का गणित असली रूप में खुलता है। सूर्य किसी ग्रह को कब अस्त करेगा— यह कोई अंदाज़े की बात नहीं है। इसके लिए हर ग्रह की एक निश्चित दूरी, एक निश्चित मापन, यानी एक डिग्री-सीमा तय है। यदि ग्रह सूर्य के इस तय दायरे में आ जाए, तो वह अस्त घोषित हो जाता है।

इसे ऐसे समझो— जैसे आग के बहुत पास हाथ ले जाओ तो हाथ अपना ताप खो देता है और सिर्फ जलन महसूस होती है। इसी तरह, सूर्य के अत्यधिक तेज़ के पास पहुँचते ही ग्रह अपना स्वभाव खो देता है।

हर ग्रह की सूर्य से अस्त होने की सीमा अलग होती है:

ग्रहसूर्य से अस्त होने की डिग्री
चंद्रमा12°
मंगल17°
बुध13°
गुरु11°
शुक्र09°
शनि15°

👉बुध और शुक्र सबसे जल्दी अस्त होते हैं। क्योंकि ये दोनों ग्रह सूर्य के बिल्कुल नज़दीक रहते हैं। बुध तो सूर्य से आगे-पीछे एक ही घर में घूमते हुए मिलता है। इसलिए ज्यादातर कुंडलियों में बुध या शुक्र के अस्त होने की संभावना ज्यादा रहती है।

कुंडली में अस्त ग्रह कैसे देखें?

गुरु की अस्त दूरी:

👉 गुरु यदि सूर्य से 11° तक पास आ जाएँ, तो गुरु अस्त माने जाते हैं।

स्टेप-1: ग्रहों की पोज़िशन समझना

कुंडली का हर भाव 30° का होता है।
तो…

  • सूर्य: 1st house में 28° → बस 2° बाद अगले घर में प्रवेश कर जाएगा।
  • गुरु: 1st house में 10° → अभी 20° और इसी घर में रहना है।

इसका मतलब दोनों एक ही घर में हैं लेकिन डिग्री-distance काफी अलग है।

स्टेप-2: सूर्य–गुरु का वास्तविक अन्तर निकालना

सूर्य की डिग्री − गुरु की डिग्री
28° − 10° = 18°

अब compare करो:

  • गुरु के अस्त होने की सीमा = 11°
  • वास्तविक दूरी = 18°

👉 दूरी 11° से ज़्यादा है, इसलिए गुरु अस्त नहीं है।

अगर गुरु की डिग्री 17°, 18° या उससे ज़्यादा होती, तो सूर्य से अंतर 11° या कम आता और गुरु अस्त माने जाते।

क्या सूर्य सिर्फ उसी ग्रह को अस्त करते हैं जो उनके साथ बैठे हों?

बिल्कुल नहीं!
ये सबसे बड़ी गलतफहमी है।

सूर्य अपनी उपस्थिति से अगले घर के ग्रह को भी अस्त कर सकते हैं, और अपने से पिछले घर के ग्रह को भी।

कैसे? अब इसे simple तरीके से समझो 👇

(A) सूर्य अगले घर के ग्रह को कैसे अस्त करते हैं?

ऊपर दिए गए चार्ट में एक उदाहरण देखो:

  • सूर्य बैठे हैं 6th house – 25°
  • शुक्र बैठे हैं 7th house – 3°

अब फर्क देखो:

  • सूर्य को 7th house तक पहुँचने में → की जरूरत
  • 7th house में शुक्र की पोज़िशन →

तो कुल दूरी = 5° + 3° =

👉 और शुक्र सूर्य से तक पास आए तो अस्त हो जाते हैं।
यहाँ दूरी है → यानी अस्त!

नतीजा:
7th भाव में बैठा हुआ शुक्र भी सूर्य से अस्त हो गया

(B) सूर्य पिछले घर के ग्रह को कैसे अस्त करते हैं?

अब दूसरा case:

  • सूर्य: 9th house – 5°
  • मंगल: 8th house – 20°

अब मंगल को सूर्य तक पहुँचने के लिए:

  1. 8th house खत्म करने को → 10°
  2. सूर्य के 5° तक आने को → 5°

कुल दूरी: 10° + 5° = 15°

👉 नियम:
सूर्य–मंगल की दूरी यदि 17° या कम हो → मंगल अस्त।

और यहाँ दूरी 15° है → यानी मंगल अस्त!

अब अस्त ग्रह देखने का पूरा आसान फ़ॉर्मूला

हर बार ये 3 चीज़ें देख लो:

(1) सूर्य के साथ कौन-सा ग्रह है?

→ सीधा डिग्री का अंतर निकालो।

(2) सूर्य के अगले भाव में कौन-सा ग्रह है?

→ सूर्य को अगले घर तक पहुँचने वाली डिग्री + उस ग्रह की डिग्री जोड़ो।

(3) सूर्य के पिछले भाव में कौन-सा ग्रह है?

→ पिछले घर में ग्रह को उस घर के अंत तक जाने वाली डिग्री + सूर्य की डिग्री जोड़ो।

(4) अब इस अंतर को ग्रह-विशिष्ट अस्त-सीमा से compare करो:

  • गुरु → 11°
  • शुक्र → 9°
  • मंगल → 17°
  • बुध → 13°
  • चन्द्रमा → 12°
  • शनि → 15°

अगर अंतर कम है → ग्रह अस्त।
अगर अंतर ज़्यादा है → ग्रह अस्त नहीं।

अस्त ग्रह की कुंडली

उदारहण – 1

ये हमारे प्रिय पाठक की कुंडली है। उन्होंने अपना जन्म-विवरण भेजकर इस लेख को और भी उपयोगी बना दिया और इसके लिए उनका दिल से धन्यवाद। आप भी अपना विवरण भेज सकते हैं—संभव है कि आगामी लेखों में आपकी कुंडली भी पाठकों के लिए उदाहरण बन जाए।

अब उपर्युक्त कुंडली में तीन ग्रह—मंगल, गुरु और शुक्र—सूर्य से जितनी दूरी पर हैं, वह उनकी अस्त सीमा से अधिक है। इसलिए ये तीनों ग्रह अस्त नहीं हैं। लेकिन बुध सूर्य से निश्चित मापन के भीतर है, इसलिए यहाँ बुध स्पष्ट रूप से अस्त ग्रह देखा जाता है।

सूर्य 11वें भाव में 19° पर स्थित हैं और बुध उसी भाव में 27° पर।
इसलिए दोनों के मध्य की दूरी:

27° – 19° = 8°

अब बुध की अस्त सीमा है 13°
क्योंकि बुध सूर्य से की दूरी पर है—जो कि 13° से कम है—इसलिए इस कुंडली में बुध अस्त हुआ है।

🌟 अब इसका फल समझिए:

इस कुंडली में बुध योगकारक ग्रह है और सूर्य के साथ मिलकर बुधादित्य राजयोग बना रहा था, वह भी लाभ स्थान (11वें भाव) में। लेकिन बुध के अस्त होने के कारण यह राजयोग निष्क्रिय हो गया—अर्थात् फल नहीं दे सका। ऐसी स्थिति में अस्त ग्रह का उपाय करना आवश्यक हो जाता है।

🔧 अस्त बुध के उपाय

  1. पन्ना (Emerald) धारण करें
  2. बुध के वैदिक बीज मंत्र का जप प्रतिदिन करना अत्यंत लाभकारी है।
  3. गणेश जी के सौम्य रूप की साधना करना और यदि सामर्थ्य और परिस्थिति अनुमति दें तो उच्छिष्ट गणपति की साधना भी कर सकते हैं।
  4. सरल उपाय: यदि कुछ भी न करना चाहें, तो केवल गणेश जी का एकाक्षर बीज मंत्र भी बुध को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त है। तथा व्यवहार, आचरण और दान के माध्यम से भी बुध को जाग्रत किया जा सकता है—जिसकी जानकारी हमने “ग्रहों का दान कैसे करें?” वाले लेख में दी है।

उदाहरण – 2

ये आपके लिए छोड़ा है। अब आप कमेंट करके मुझे बताएं कि इस कुंडली में बुध अस्त हैं अथवा नहीं क्योंकि जभी तो मुझे पता चलेगा कि आपको मेरा बताया हुआ समझ में आ रहा है या नहीं।

अस्त ग्रह का उपाय कैसे करें?

अस्त ग्रह का उपाय करने से पहले सबसे महत्वपूर्ण बात यह समझना है कि वह ग्रह योगकारक है या मारक। क्योंकि अस्त ग्रह अपनी ऊर्जा सूर्य को दे देता है और निष्क्रिय हो जाता है—इसलिए वह न शुभ फल दे सकता है, न अशुभ। ऐसे में यदि योगकारक ग्रह अस्त हो जाए, तो उसके फल को पाने के लिए उपाय आवश्यक हो जाता है, क्योंकि वह शुभ फल देने आया था लेकिन सूर्य के प्रकाश में दबकर उसकी ऊर्जा काम नहीं कर पा रही है।

दूसरी ओर, यदि कोई मारक या अशुभ ग्रह अस्त हो जाए, तो यह व्यक्ति के लिए शुभ स्थिति है, क्योंकि वह ग्रह अब अपना अशुभ प्रभाव नहीं दे पाएगा। इसलिए अस्त ग्रह की पहचान के बाद सबसे पहले यही जाँच ज़रूरी है कि ग्रह की प्रकृति क्या है, अन्यथा गलत ग्रह का उपाय व्यक्ति को लाभ के बजाय हानि भी पहुँचा सकता है।

योगकारक अस्त ग्रह को सक्रिय करने के मुख्य उपायों में उसका वैदिक बीज मंत्र सबसे प्रभावी माना गया है, क्योंकि मंत्र ग्रह की अप्रकट ऊर्जा को पुनः संचालित करता है। इसके अतिरिक्त ग्रह के रत्न—जैसे बुध के लिए पन्ना या शुक्र के लिए हीरा/ओपल—उसकी रश्मियों को सीधे शरीर तक पहुँचाते हैं और निष्क्रिय तत्व को सक्रिय करते हैं। व्यवहार और आचरण से भी ग्रह को जाग्रत किया जा सकता है, जैसे बुध के लिए स्वच्छ संवाद, अध्ययन, लेखन और विनम्रता; शुक्र के लिए सौंदर्य, सुगंध, सफ़ाई और प्रेम। मारक हुए अस्त ग्रह के भी शुभ फल प्राप्त करने के लिए अमुक ग्रह के आराध्य की उपासना या फिर ग्रह की ही आराधना भी की जा सकती है।

अस्त ग्रह और इंद्रधनुष का तत्व-तत्व संबंध

इंद्रधनुष के सात रंग सिर्फ़ सुंदर दृश्य नहीं हैं—ये प्रकृति के सात मूलभूत तत्वों और ज्योतिष के सात ग्रहों के सूक्ष्म कंपन का प्रतीक हैं। जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है, उस क्षण सूर्य के पास जो भी ग्रह निश्चित मापन के भीतर आ जाए, वह अपनी ऊर्जा सूर्य को समर्पित कर देता है।

इसका अर्थ यह है कि उस ग्रह का स्वाभाविक तत्व—रंग, रश्मि, कंपन और गुण—जन्म लेने वाले व्यक्ति के शरीर में सक्रिय रूप से उपस्थित नहीं हो पाता। ग्रह अस्त हो जाता है और उसका तत्व जन्मजात संरचना में निष्क्रिय बना रहता है। इसलिए अस्त ग्रह का व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव “अनुपस्थित तत्व” की तरह होता है—ग्रह है, लेकिन उसकी शक्ति शरीर और मन तक नहीं पहुँच पाती।

रत्न, बीज मंत्र और साधना का उद्देश्य इसी निष्क्रिय तत्व को पुनः सक्रिय करना है। जब आप संबंधित ग्रह का रत्न धारण करते हैं, तो वह रत्न उस ग्रह की रश्मियों को अवरोधित होने से बचाकर सीधे शरीर तक पहुँचाता है। उसी क्षण से शरीर में उस ग्रह का सूक्ष्म तत्व जागना शुरू होता है—बुध का तेज़ ज्ञान-दर्शन, शुक्र का सौंदर्य-विवेक, गुरु का धर्म-ज्ञान, मंगल का साहस, शनि का धैर्य… जिस ग्रह का तत्व दबा हुआ था, वह फिर से जीवन में अपने गुण दिखाने लगता है।

यही कारण है कि अस्त ग्रह का असली मतलब यह है कि ग्रह अपनी ऊर्जा सूर्य को दे देता है, और सूर्य के तेज में उसकी रश्मियाँ विलीन हो जाती हैं, इसलिए वह शरीर पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाता। उपाय सिर्फ़ उस ऊर्जा को पुनः लौटाने का माध्यम है—यही अस्त ग्रह का वास्तविक रहस्य है।

निष्कर्ष — अस्त ग्रह को समझने का सही तरीका

अस्त ग्रह की अवधारणा पहली नज़र में जितनी जटिल लगती है, असल में उतनी ही सरल और गहन है। सूर्य के तीव्र प्रकाश से जब कोई ग्रह अपने स्वभाव का तेज़ खो देता है, तो वह जीवन में किसी भी प्रकार का फल—शुभ हो या अशुभ—देने की क्षमता खो बैठता है। इसलिए अस्त ग्रह को पहचानने का पहला नियम है: ग्रह और सूर्य की डिग्री दूरी को देखना, न कि केवल यह देखना कि दोनों एक ही भाव में हैं या नहीं।

डिग्री के इस विज्ञान को समझ लेने के बाद कुंडली में कौन-सा ग्रह सक्रिय है, कौन-सा निष्क्रिय, कौन फल देगा और कौन नहीं—ये सब कुछ काँच की तरह साफ़ दिखाई देने लगता है। अस्त ग्रह कोई डर का विषय नहीं है; वह बस यह बताता है कि आपके जीवन में कोई तत्व जन्म से दबी अवस्था में है और अपने स्वाभाविक प्रभाव को नहीं दिखा पा रहा।

लेकिन यहाँ बड़ी सावधानी की ज़रूरत है। किसी भी अस्त ग्रह का उपाय करने से पहले यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि वह ग्रह आपकी कुंडली में योगकारक है या मारक। योगकारक ग्रह अस्त हो जाए तो उपाय उसके शुभ फल वापस दिलाते हैं; लेकिन मारक ग्रह अस्त हो जाए तो यह आपके लिए अच्छा होता है और उसका उपाय बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

यही कारण है कि अस्त ग्रह को समझने का असली तरीका है—पहले उसकी प्रकृति को पहचानना, फिर उसकी दूरी को मापना और अंत में यह तय करना कि उसे सक्रिय करना है या निष्क्रिय ही रहने देना है। जब इस क्रम को सही ढंग से समझ लिया जाता है, तब अस्त ग्रह जीवन में भ्रम नहीं पैदा करता; बल्कि वह स्वयं ही मार्ग दिखाने लगता है कि किस दिशा में कदम बढ़ाना है। ज्योतिष का सार भी यही है—ग्रहों की ऊर्जा को समझना और उन्हें जीवन के सही स्थान पर स्थापित करना।

अंतिम संदेश

यदि आपको यह लेख ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक लगा हो, तो कृपया इसे अपने मित्रों और परिजनों के साथ साझा करें। आपकी छोटी-सी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुत मूल्यवान है — नीचे कमेंट करके जरूर बताएं………………..

👇 आप किस विषय पर सबसे पहले पढ़ना चाहेंगे?
कमेंट करें और हमें बताएं — आपकी पसंद हमारे अगले लेख की दिशा तय करेगी।

शेयर करें, प्रतिक्रिया दें, और ज्ञान की इस यात्रा में हमारे साथ बने रहें।

📚 हमारे अन्य लोकप्रिय लेख
अगर ज्योतिष में आपकी रुचि है, तो आपको ये लेख भी ज़रूर पसंद आएंगे:

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
WhatsApp Chat
जीवन की समस्याओं का समाधान चाहते हैं? हमसे पूछें!