Astrology and science — ये दो शब्द जब एक साथ आते हैं, तो अक्सर बहस छिड़ जाती है। एक पक्ष इसे हजारों साल पुरानी दिव्य विद्या मानता है, तो दूसरा इसे तर्क और प्रमाणहीन मानकर नकार देता है। लेकिन क्या सचमुच ये दोनों एक-दूसरे के विरोध में हैं? या फिर हमारे समझने का नजरिया ही अधूरा है? इससे पहले हम “ज्योतिष क्या है?“ पर गहराई से चर्चा कर चुके हैं, और अब समय है इस शाश्वत प्रश्न को टटोलने का — क्या ज्योतिष और विज्ञान एक साथ चल सकते हैं, या इनमें से एक भ्रम है?
आइए इस रहस्यमयी विद्या की परतों को खोलते हैं और जानते हैं कि असल में ज्योतिष और विज्ञान — सच है या भ्रम? नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Laalit Baghel, आपका दिल से स्वागत करता हूँ 🟢🙏🏻🟢
ज्योतिष और विज्ञान
“एक आदिकालीन बहस”
क्या आपका जन्म समय आपके जीवन की दिशा तय करता है? क्या ग्रहों की चाल आपके मन और विचार पर प्रभाव डाल सकती है? जब हम विज्ञान के युग में जी रहें हैं, तो ज्योतिष का क्या सार्थक स्थान है? यह सब समझने से पहले हम ज्योतिष के विषय में अल्बर्ट आइंस्टीन के विचार को देखते हुए आरंभ करते हैं :-
“Astrology is a Science in itself and contains an illuminating body of knowledge. It taught me many things and I am greatly indebted to it.”
Albert Einstein
क्या आपके जीवन की दिशा आपकी जन्मतिथि और समय से तय होती है? यह प्रश्न जितना रहस्यमयी लगता है, उतना ही पुरातन भी है। इंसान आदिकाल से अपने भाग्य, भविष्य और अस्तित्व को समझने की चेष्टा करता आ रहा है — और इसी जिज्ञासा ने दो महान धारणाओं को जन्म दिया: ज्योतिष और विज्ञान।
एक ओर जहाँ विज्ञान अनुभव, तर्क और प्रमाणों की कसौटी पर हर तथ्य को कसता है, वहीं दूसरी ओर ज्योतिष उन सूक्ष्म ब्रह्मांडीय शक्तियों की बात करता है जो मानव जीवन को ग्रहों, नक्षत्रों और खगोलीय गतियों से जोड़ती हैं। यह बहस केवल आधुनिक वैज्ञानिकों या ज्योतिषाचार्यों की नहीं रही, बल्कि वेदों से लेकर गैलीलियो तक, ऋषियों से लेकर भौतिकविदों तक — यह द्वंद्व विचारों की गहराई में सदियों से बहस का विषय बना रहा है। क्या दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं या फिर मानव चेतना के दो अलग-अलग दृष्टिकोण?
ज्योतिष का इतिहास और विकास
ज्योतिष का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। भारत में इसका मूल वैदिक काल से जुड़ा है, जहाँ ऋषियों ने खगोलीय घटनाओं को ध्यान में रखते हुए जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। मिस्त्र और ग्रीक सभ्यताओं में भी ज्योतिष का विकास हुआ। यूनान के खगोलशास्त्री क्लॉडियस टालेमी और भारत के वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने इसे विज्ञान की तरह विकसित किया। यहाँ तक कि गैलीलियो, न्यूटन जैसे वैज्ञानिक भी खगोलशास्त्र और ज्योतिष दोनों में रुचि रखते थे।
ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति
ज्योतिष का विकास मानव जीवन के विकास के साथ ही हुआ। मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु होता है। इस जिज्ञासा के कारण ही वह प्रत्येक बात की गहरायी में जाना चाहता है कि कब? क्यों? और कैसे? संसार का समस्त ज्ञान इसी जिज्ञासा का परिणाम है। इसी क्यों और कैसे की वज़ह से मानव ने सोचा होगा कि यह जो लाल दिखाई देता है जिसकी ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती है जिसको वर्तमान में हम सूर्य के नाम से जानते हैं ये आखिरकार है क्या? ये हमेशा पूर्व दिशा की और से ही क्यों उदित होता है।
पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, दक्षिण दिशा इन सभी दिशाओं का आंकलन कैसे किया होगा? वर्षा ऋतु या कोई भी ऋतु एक निश्चित समय पर ही क्यों आती है तिथियों का आंकलन कैसे किया होगा? दिन रात की अवधि कैसे ज्ञात की होगी?
इस प्रकार की कई बातें हैं जो मानव की जिज्ञासा के कारण आज स्पष्ट रूप से उभर कर आयी हैं। यहीं सब घटनाएँ मानव को प्राचीन समय से अपनी और आकर्षित करती रहीं है, जिनका कार्य मानव वर्तमान में भी किसी-न-किसी विषय पर खोज करके करता रहता है। ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति इसी आकर्षण का परिणाम है। आप लोगों को ज्योतिष शास्त्र के प्रति आकर्षण एवं जिज्ञासा का भाव होने के कारण ही आप इस शास्त्र के अध्ययन में रुचि दिखाते हैं और ज्योतिष को अच्छी तरह समझना चाहते हैं।
वेदांग और काल शास्त्र
भारतीय वैदिक सनातन परम्परा में ज्योतिष शास्त्र को वेद का अंग होने के कारण ‘वेदांग’ कहा गया है। इन्हीं वेदांगों को ‘शास्त्र’ भी कहा जाता है, यह शास्त्र हमारे प्राचीन ऋषियों की देन हैं। काल की गणना होने के कारण इसे कालशास्त्र भी कहा जाता है।
प्रसिद्ध ग्रंथों के आधार पर ज्योतिष शास्त्र का समय
औरायन नामक ग्रंथ में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महोदय ने ऋग्वेद का काल ईसा के जन्म के 4500 साल पुराना माना है, जबकि ‘वैदिक सम्पत्ति’ नामक ग्रंथ में पं रघुनन्दन शर्मा ने ऋग्वेद का रचना काल ईसा के जन्म के 22000 साल पहले का माना है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र का कालखंड भी इसी के समान माना जा सकता है।
कई इतिहासकार एवं प्राचीन साहित्य के रचयिता भी यह कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति सृष्टि के आरंभ काल से ही हुई है। उस काल में मानव वन के जीव-जंतुओं के साथ सूर्योदय एवं सूर्यास्त की स्थिति को देखकर उसे समझने का प्रयास करता रहा होगा और वहीं से काल गणना का आरंभ (Calculation of Time) हुआ। समय के साथ धीरे-धीरे ज्योतिष शास्त्र का उपयोग दैनिक जीवन में भी होने लगा होगा।
ज्योतिष शास्त्र का इतिहास
अब यहाँ तक इतना तो समझ आता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का इतिहास शुरू होता है। अनंत आकाश में मौजूद अनंत ज्योतिष पिंडो का ज्ञान करना कठिन ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल भी है। लेकिन मानव ने प्रयास लगातार जारी रखा है, जिसके कारण मनुष्य ने अंतरिक्ष के अनेक रहस्यों को सुलझाने में सफलता प्राप्त की है और आगे भी वह लगातार प्रयास कर रहा है।
ब्रह्माण्ड और अंतरिक्ष से जुड़े हुए अनेक ऐसे प्रश्न अभी भी मौजूद है जो रहस्य के कटघरे में खडे हुए हैं जिनका फैसला करने वाले ना अभी जज आये और ना ही गुत्थी को सुलझाने वाले वकील उपलब्ध है किन्तु मानव प्रयत्नशील है जो वकील बनने की तैयारी में लगातार आगे बढ़ रहें हैं।
किन्तु ब्रह्माण्ड भी इतना छोटा और सरल नहीं है, जो इतनी आसानी से सुलझ जाये, एक गुत्थी सुलझती है तो उससे जुड़ी हुयी दूसरी कड़ी सुलझने के लिए उलझेपन में उपलब्ध हो जाती है। खैर! इतिहास की दृष्टि से सम्पूर्ण ज्ञान परम्परा का मूल आधार वेद है। सभी विद्याओं का उद्भव वेदों से ही माना जाता है। वेदों में भी ऋग्वेद को सबसे प्राचीन माना गया है। यद्यपि इस वैदिक कालखंड में ज्योतिष शास्त्र का कोई भी स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता है, परंतु ज्योतिष शास्त्र के अनेक मूलभूत विषय वेदों के मंत्र भाग एवं संहिता भाग में प्राप्त होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के आचार्य
आचार्य कमलाकर भट्ट ने अपनी पुस्तक ‘सिद्धांततत्वविवेक’ में ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान का उपदेश अपने शब्दों में कुछ इस प्रकार बतलाया है – “सबसे पहले ब्रह्मा जी ही ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान को जानते हैं। ब्रह्मा जी ने ही नारद मुनि को ज्योतिष का ज्ञान प्रदान किया था। इसी प्रकार क्रमशः चंद्रमा ने शौनक ऋषि को, नारायण ने वशिष्ठ एवं रोमक को, वशिष्ठ ने माण्डव्य को तथा सूर्य ने मय को ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान उपदेश दिया”।
आचार्य कश्यप के अनुसार ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रवर्तक हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पाराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश (कहीं कहीं पुलिस भी लिखा मिलता है), च्यवन, यवन, भृगु तथा शौनक ये ज्योतिष शास्त्र के 18 आचार्य हैं।
ज्योतिष और विज्ञान
“तुलनात्मक विश्लेषण”
विज्ञान की कसौटी पर किसी भी प्रणाली को परखने के लिए दो बातें जरूरी होती हैं:
- पुनरावृत्तता (Repeatability)
- पूर्वानुमान की सटीकता (Predictability)
विज्ञान का आधार प्रयोग, गणना और प्रमाण होता है। ज्योतिष भविष्यवाणी करता है, लेकिन कई बार यह अनुभव और अंतर्ज्ञान पर आधारित होता है। इसलिए वैज्ञानिक इसे pseudoscience यानी छद्म विज्ञान कहते हैं, क्योंकि इसके कई सिद्धांत नियंत्रित परीक्षणों में खरे नहीं उतरते।
क्या ज्योतिष एक विज्ञान है?
यह सबसे बड़ा सवाल है। यदि हम ज्योतिष को विज्ञान मानें, तो क्या इसके सिद्धांत परीक्षण योग्य (testable) हैं?
- कुछ विद्वानों का मानना है कि ज्योतिष “Soft Science” की श्रेणी में आता है, जैसे मनोविज्ञान।
- जबकि अन्य इसे पूरी तरह संकेतात्मक और सांस्कृतिक ज्ञान प्रणाली मानते हैं।
इसके कई पहलू ऐसे हैं जो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं होते, परंतु हजारों वर्षों से इसका उपयोग हो रहा है और कई लोगों को इससे दिशा भी मिली है।
ज्योतिष के पीछे छिपा गणित और खगोलशास्त्र
बहुत से लोगों के मन में यह भ्रम होता है कि ज्योतिष केवल अंधविश्वास या धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा है, जबकि सच्चाई यह है कि ज्योतिष की नींव खगोलशास्त्र और गणित पर गहराई से टिकी हुई है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषाचार्य आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, और वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने पंचांग निर्माण, ग्रहों की गति और नक्षत्रों की स्थिति को मापने के लिए गणितीय सूत्रों और खगोलीय यंत्रों का प्रयोग किया। ग्रहों की कक्षाएँ, उनकी युति और वक्री गति – यह सब सिर्फ दर्शन या अनुमान नहीं, बल्कि गहन गणना का परिणाम होता है। सूर्य सिद्धांत, जो भारतीय खगोलशास्त्र की आधारशिला है, आज भी कई पंचांगों की गणना का मूल स्रोत है।
इसी खगोलीय और गणितीय परंपरा का प्रयोग कुंडली निर्माण, दशा प्रणाली, और गोचर की गणना में किया जाता है। जन्म के समय व्यक्ति के स्थान विशेष पर ग्रह-नक्षत्रों की सटीक स्थिति को जानने के लिए ‘लघु गणित’, त्रिकोणमिति, और समय गणना का उपयोग होता है।
उदाहरण के लिए, एक कुंडली बनाने के लिए उस व्यक्ति के जन्म का समय, स्थान और तारीख लेकर सौर तथा चंद्र कालगणना की जाती है, जो पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होती है। इसका अर्थ यह है कि ज्योतिष शास्त्र केवल भविष्य बताने की कोशिश नहीं करता, बल्कि ब्रह्मांडीय गणनाओं के आधार पर जीवन की दिशा और प्रवृत्ति को समझने का प्रयास करता है – और यही इसे विज्ञान के निकट लाता है, अंधविश्वास से नहीं जोड़ता।
मनोविज्ञान और ज्योतिष का संबंध
ज्योतिष और मनोविज्ञान के बीच का संबंध केवल विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गहरे मानसिक प्रभावों और आत्म-सजगता से जुड़ा है। विज्ञान में Placebo Effect एक प्रसिद्ध सिद्धांत है, जिसके अनुसार यदि व्यक्ति किसी उपाय या बात को पूरी निष्ठा से मान ले, तो उसका असर शारीरिक और मानसिक स्तर पर वास्तविक हो सकता है – भले ही वह उपाय वैज्ञानिक रूप से सिद्ध न हो। इसी तरह, जब कोई व्यक्ति अपनी कुंडली या राशिफल में दिए गए संकेतों को पढ़ता है, तो वह मानसिक रूप से स्वयं को एक दिशा में व्यवस्थित करता है। यह मानसिक दिशा उसे जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण, आत्मबल और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करती है।
मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रसिद्ध मनोविश्लेषक Carl Jung ने भी ज्योतिष को ‘Collective Unconscious’ यानी सामूहिक अचेतन से जोड़ा है। उनका मानना था कि ज्योतिषीय प्रतीक, जैसे ग्रह, नक्षत्र या राशियाँ, मानव अवचेतन पर गहरा प्रभाव डालते हैं और ये प्रतीक हमारी गहराई में छिपी भावनाओं, आशंकाओं और इच्छाओं को परिभाषित करते हैं। ऐसे प्रतीकों की सहायता से व्यक्ति अपने भीतरी संघर्षों को समझ सकता है, जिससे उसकी मानसिक स्थिति अधिक संतुलित और स्पष्ट होती है। इस तरह ज्योतिष केवल भविष्यवाणी का माध्यम नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक guidance system बन जाता है, जो जीवन की उलझनों में मानसिक स्पष्टता और आत्म-साक्षात्कार की दिशा दिखाता है।
विज्ञान का विरोध
ज्योतिष के आलोचक क्या कहते हैं?
ज्योतिष को लेकर विज्ञान जगत में हमेशा से संदेह और आलोचना का स्वर मुखर रहा है। वैज्ञानिकों का प्रमुख तर्क यह है कि ज्योतिष एक ऐसी प्रणाली है जो “repeatable results” नहीं देती — यानी यदि एक ही ज्योतिषीय स्थिति के आधार पर दो अलग-अलग समय या स्थान पर भविष्यवाणी की जाए, तो उसके परिणाम बार-बार वही नहीं आते। वैज्ञानिक विधि में किसी भी सिद्धांत को सत्य मानने से पहले controlled experiments और परीक्षणों में उसके परिणामों की स्थिरता और सटीकता अनिवार्य होती है। किंतु कई प्रयोगों में देखा गया कि ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ अपेक्षाकृत असंगत और कई बार गलत सिद्ध हुई हैं, जिससे इसे विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं माना जा सकता।
ज्योतिष के विरोध में कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने इसे “गैर-वैज्ञानिक विश्वास” यानी non-scientific belief करार दिया है। जैसे Richard Dawkins और Stephen Hawking जैसे वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मानव जीवन की दिशा ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर होती है, तो फिर एक ही समय और स्थान पर जन्मे दो लोगों का जीवन एक समान क्यों नहीं होता?
उनका मानना है कि मानव व्यक्तित्व, सोच और निर्णय-क्षमता जैविक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों पर आधारित होती है, न कि आकाशीय पिंडों की गति पर। इन वैज्ञानिक आलोचनाओं ने ज्योतिष की सार्वभौमिक वैधता को चुनौती दी है और इसे अधिकतर लोगों की आस्था या सांस्कृतिक परंपरा के रूप में ही स्वीकार किया है, न कि एक वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में।
अनुभवजन्य प्रमाण
लोगों के अनुभव क्या कहते हैं?
जहाँ विज्ञान तार्किक प्रमाणों की मांग करता है, वहीं ज्योतिष को लेकर करोड़ों लोगों के व्यक्तिगत अनुभव इसकी प्रामाणिकता की ओर इशारा करते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अनेक लोगों ने ज्योतिषीय मार्गदर्शन से अपने जीवन की उलझनों को सुलझाया है — फिर चाहे वह करियर से जुड़ी दुविधा हो, वैवाहिक समस्याएँ हों या स्वास्थ्य संबंधी निर्णय। जब कोई व्यक्ति ग्रह दशा और कुंडली विश्लेषण के आधार पर समय रहते निर्णय लेता है, तो कई बार परिणाम आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक मिलते हैं। ये अनुभव व्यक्तिगत होते हैं लेकिन इतने व्यापक हैं कि उन्हें केवल ‘संयोग’ मान लेना तर्कसंगत नहीं लगता।
ज्योतिष के पक्षधर मानते हैं कि कुंडली विश्लेषण, ग्रहों का गोचर और भाव-स्थान की गहन व्याख्या किसी व्यक्ति के जीवन की जटिलताओं को समझने का एक अद्भुत साधन बनते हैं। कई बार व्यक्ति की स्थिति, उसकी मानसिक अवस्था और भविष्य की चुनौतियाँ इतनी सटीकता से बताई जाती हैं कि वह चौंक जाता है। यह अनुभवजगत सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्वभर में ऐसे अनेक लोग हैं जो ज्योतिष को एक “personalized guidance system” के रूप में अपनाते हैं। जबकि इन अनुभवों का वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया जाना कठिन है, फिर भी उन्हें पूरी तरह नकार देना उतना ही असंगत है, जितना उन्हें बिना विवेक के पूर्ण सत्य मान लेना।
विज्ञान और ज्योतिष का संभावित मेल
- Quantum Physics मानता है कि ब्रह्मांड में हर वस्तु ऊर्जा है — यह सिद्धांत ज्योतिष के ग्रह-ऊर्जा सिद्धांत से मेल खाता है।
- String Theory बताता है कि हम जो कुछ भी महसूस करते हैं, वह अदृश्य कम्पनों से जुड़ा है — ज्योतिष भी अदृश्य ग्रहीय प्रभावों की बात करता है।
- Consciousness Studies अब चेतना को महज़ मस्तिष्क की गतिविधि न मानकर एक सार्वभौमिक ऊर्जा का रूप मानते हैं, जैसा कि वैदिक ज्योतिष कहता है।
- ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति केवल खगोलीय नहीं, बल्कि उनके सूक्ष्म ऊर्जा प्रभावों पर आधारित होती है — इसे अब “subtle energy field” के रूप में देखा जा रहा है।
- आधुनिक मनोविज्ञान (Psychology) और ज्योतिष दोनों व्यक्ति की आंतरिक प्रवृत्तियों, निर्णय क्षमताओं और व्यवहार का विश्लेषण करते हैं।
- कई वैज्ञानिक अब इसे Alternative Science या “Indic Epistemology” के रूप में देखने लगे हैं — पारंपरिक विज्ञान के पूरक रूप में।
- ज्योतिषीय डेटा एनालिसिस जैसे “Statistical Astrology” प्रयासों ने इसे वैज्ञानिक नजरिए से जांचने की शुरुआत की है।
- AI और डेटा मॉडलिंग के ज़रिए कुंडली और ग्रह स्थिति के patterns को समझने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं।
- खगोलशास्त्र (Astronomy) और ज्योतिष (Astrology) की जड़ें एक ही थीं — आज फिर उन्हें जोड़ने का विचार बल पकड़ रहा है।
- पश्चिमी देशों में Modern Astrology को Self-help और Personal Development टूल की तरह देखा जा रहा है — जिससे विज्ञान और ज्योतिष का मेल स्वाभाविक लगता है।
निष्कर्ष
Myth या Reality?
Astrology and science सच यही है कि ज्योतिष न पूरी तरह विज्ञान है, न पूरी तरह मिथक। यह एक प्राचीन ज्ञान प्रणाली है, जो अनुभव, प्रतीकात्मकता, और खगोल विज्ञान का अद्भुत मिश्रण है। हो सकता है यह आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा न उतरे, लेकिन यह लाखों लोगों के जीवन में मार्गदर्शन करता है। इसलिए ज्योतिष को अंधविश्वास कहकर खारिज करना उतना ही अनुचित है, जितना इसे विज्ञान कहकर आँख मूँद लेना। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ विज्ञान और अध्यात्म का मेल संभव है – बस दृष्टिकोण बदलने की ज़रूरत है।
अंतिम शब्द
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