भूमिका – यह भावत भावम सिद्धांत का दूसरा भाग है।
यदि आप सीधे इस लेख से शुरुआत कर रहे हैं, तो आपसे एक विनम्र अनुरोध है कि पहले “भावत भावम सिद्धांत – भाग 1” (Bhavat Bhavam Concept) अवश्य पढ़ें। क्योंकि इस सिद्धांत की जड़ें उसी पहले भाग में हैं, जहाँ हमने समझा था कि भाव से भाव का अर्थ क्या है, कैसे प्रत्येक भाव अपने समान क्रम वाले दूसरे भाव में प्रतिबिंबित होता है, और क्यों तीसरा व ग्यारहवाँ भाव “समभाव” कहलाते हैं।
पहले भाग में हमने मूल गणना, भावों के संबंध, और भाषा, शिक्षा तथा संपत्ति जैसे व्यावहारिक उदाहरणों से यह जाना कि ज्योतिष में हर भाव अकेला नहीं होता — बल्कि वह दूसरे भाव से मिलकर जीवन का पूरा चित्र बनाता है।
अब इस दूसरे भाग में हम उस सिद्धांत की और गहराई में उतरेंगे — जहाँ भाव केवल घटनाएँ नहीं, बल्कि रिश्ते, कर्म और आत्मिक अनुभव बन जाते हैं। यहाँ हम देखेंगे कि कैसे एक भाव से निकलकर दूसरे में पूरा पारिवारिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जाल बुना हुआ है। हर रिश्ता, हर कर्म और हर फल — सब एक-दूसरे के प्रतिबिंब हैं।
🌟 भाग 1 ने नींव रखी थी, अब भाग 2 उस नींव पर जीवन के रिश्तों और कर्म का भवन खड़ा करेगा।
तो आइए, इस अद्भुत यात्रा को आगे बढ़ाते हैं —
और समझते हैं कि “भाव से भाव” कैसे “रिश्ते से रिश्ता” बन जाता है।
तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
रिश्तों की ज्योतिषीय कड़ी – जब हर संबंध भाव से भाव में प्रकट होता है।
ज्योतिष केवल ग्रहों का विज्ञान नहीं, यह संबंधों का सूत्र भी है। हर संबंध, चाहे वह माता-पिता का हो, भाई-बहन का, संतान या जीवनसाथी का — कुंडली में किसी-न-किसी भाव से जुड़ा होता है। लेकिन जब हम इन संबंधों की गहराई में जाते हैं, तो पता चलता है कि एक ही भाव से अनेक रिश्तों की शाखाएँ निकलती हैं — और यह संभव होता है भावत भावम सिद्धांत के माध्यम से।
हर भाव, अपने समान क्रम वाले भाव से एक नया रिश्ता प्रकट करता है।
उदाहरण के लिए —
- स्वयं (1H) से सातवाँ (7H) = जीवनसाथी
- पाँचवें (5H) से सातवाँ (11H) = संतान का जीवनसाथी
- चौथे (4H) से तीसरा (6H) = माँ का छोटा भाई (छोटे मामा)
- चौथे से ग्यारहवाँ (2H) = माँ का बड़ा भाई (बड़े मामा)
इस प्रकार, “भाव से भाव” का यह नियम केवल गणना नहीं, बल्कि परिवारिक रिश्तों की जड़ तक पहुँचने का एक ज्योतिषीय मानचित्र है।
स्वयं और जीवनसाथी की श्रृंखला
लग्न (1H) स्वयं का प्रतीक है, और 7H जीवनसाथी का। अब जब हम 7वें से 7वाँ देखते हैं, तो फिर पहला भाव (1H) ही मिलता है। इसका अर्थ है कि आपका जीवनसाथी आपके व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही आपके जीवनसाथी का व्यवहार आपके साथ होता है। यही कारण है कि अच्छे वैवाहिक संबंध के लिए 1H और 7H दोनों का सामंजस्य होना आवश्यक है। यह केवल “Compatibility” नहीं, बल्कि “Karmic Reflection” है — जैसा कर्म आप करते हैं, वैसा ही व्यवहार जीवनसाथी के माध्यम से लौटता है।
संतान और उसका जीवनसाथी
संतान का भाव पाँचवाँ है। अब यदि हम “पाँचवें से सातवाँ” देखें, तो वह ग्यारहवाँ भाव (11H) बनता है। यानी संतान का जीवनसाथी 11H से देखा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी व्यक्ति के 11H में शुभ ग्रह हैं, तो उसकी संतान का वैवाहिक जीवन सौहार्दपूर्ण और स्थिर रहेगा। 11H न केवल “लाभ” का भाव है, बल्कि संतान-सुख की निरंतरता का भी भाव है।
अगर यह भाव अशुभ हो, तो संतान के विवाह में बाधाएँ, असहमति या दूरी जैसी स्थितियाँ आ सकती हैं। इस प्रकार, 11H व्यक्ति के परिवार के भविष्य की नींव बन जाता है — यानी “आपके आज के कर्म, आपकी संतान के दाम्पत्य में प्रतिध्वनित होते हैं।”
भाई-बहन और मामा का संबंध
तीसरा भाव (3H) छोटे भाई-बहनों का है, जबकि 11H बड़े भाई-बहनों का। अब माँ का भाव चौथा (4H) है, तो “माँ का तीसरा” अर्थात् 6H = छोटे मामा, और “माँ का ग्यारहवाँ” अर्थात् 2H = बड़े मामा। इस प्रकार, केवल एक सूत्र से हम रिश्तों की पूरी वंशावली देख सकते हैं। इसीलिए कहा जाता है —
“ज्योतिष पारिवारिक वृक्ष का सबसे सूक्ष्म ब्लूप्रिंट है।”
इन गणनाओं से यह सिद्ध होता है कि भावत भावम केवल भविष्यवाणी का उपकरण नहीं, बल्कि संबंधों की चेतना को मापने का माध्यम है।
क्यों ज़रूरी है रिश्तों को भावत भावम से देखना?
क्योंकि कोई भी रिश्ता एक भाव में सिमटा नहीं होता — वह दो भावों के बीच जीता और बदलता है। पिता केवल 9H नहीं हैं, बल्कि 5H से उनका प्रतिबिंब भी है (क्योंकि पिता के कर्म, पुत्र के जीवन में लौटते हैं)। इसी तरह, जीवनसाथी केवल 7H नहीं, बल्कि 1H से उसका प्रतिबिंब भी सक्रिय रहता है।
भावत भावम सिद्धांत यह दिखाता है कि हर रिश्ता एक दर्पण है, जिसमें हम स्वयं को ही देख रहे होते हैं। यही कारण है कि इस सिद्धांत को समझना सिर्फ़ कुंडली पढ़ने का नहीं, बल्कि मानव स्वभाव को समझने का विज्ञान है।
🌟 “रिश्ते भाग्य से नहीं, प्रतिबिंब से बनते हैं —
और हर प्रतिबिंब की जड़ भावत भावम में छिपी है।”
जैसे को तैसा – कर्म और फल का सिद्धांत
ज्योतिष में सबसे गूढ़ और साथ ही सबसे न्यायपूर्ण सिद्धांत है — कर्म और फल का सिद्धांत। यही सिद्धांत भावत भावम की आत्मा भी है। क्योंकि भावत भावम का अर्थ केवल “भाव से भाव” नहीं है, बल्कि यह कर्म से कर्म का परिणाम भी है। जो भाव हम किसी और के प्रति सक्रिय करते हैं, वही भाव दूसरे रूप में हमारे प्रति सक्रिय होकर लौटता है। यानी जैसा कर्म, वैसा ही फल — यही भावत भावम का नैतिक और आध्यात्मिक अर्थ है।
🌿 पहला सूत्र: 5वें और 9वें भाव का दर्पण संबंध – पिता और पुत्र का कर्मचक्र
कुंडली में 9वाँ भाव पिता का और 5वाँ भाव संतान का होता है। जब हम “भाव से भाव” देखते हैं, तो 9वें से 9वाँ भाव पाँचवाँ ही बनता है। यानी पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता केवल रक्त का नहीं, बल्कि कर्म का प्रतिबिंब भी है। जो गुण, संस्कार और आचरण हम अपने पिता से ग्रहण करते हैं, वही भाव आगे चलकर हमारी संतान के माध्यम से लौटता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपने पिता के प्रति सम्मान, सेवा और श्रद्धा का भाव रखता है, तो वही भाव आने वाले समय में उसकी संतान के व्यवहार में प्रकट होता है और यदि कोई पिता के साथ कठोर, उपेक्षापूर्ण या अहंकारी व्यवहार करता है, तो वही ऊर्जा समय के साथ उसके अपने बच्चों से लौटकर आती है — भले ही परिस्थितियाँ अलग हों, लेकिन भाव वही रहता है।
🌸 “पिता का स्थान नौवें भाव में है,
और उसका प्रतिबिंब पाँचवें में —
इसलिए पुत्र अपने पिता के कर्मों का जीवंत प्रतिबिंब होता है।”
यह सिद्धांत केवल संबंधों तक सीमित नहीं; यह एक जीवन-दर्शन है। यह हमें याद दिलाता है कि कर्म किसी पर किया गया कार्य नहीं, बल्कि स्वयं पर लौटने वाली ऊर्जा है।
🔥 दूसरा सूत्र: वर्तमान का कर्म, भविष्य का प्रतिबिंब
कभी-कभी हम सोचते हैं कि क्यों हमारे साथ कुछ अप्रत्याशित या अनुचित घटता है, जबकि हमने किसी के साथ वैसा नहीं किया। यहाँ भावत भावम सिद्धांत यह बताता है कि कभी-कभी जो परिणाम हमें अभी मिल रहा है, वह किसी पिछले जीवन या किसी अनजाने कर्म का प्रतिबिंब है।
12वाँ भाव पिछले कर्मों और मुक्ति का प्रतिनिधि है, और “12वें से 12वाँ” अर्थात् 11वाँ भाव उसके परिणामों का। इसलिए 11H केवल लाभ का भाव नहीं, बल्कि कर्मफल की उपलब्धि का भी भाव है। यदि किसी की कुंडली में 11H शुभ हो, तो समझिए कि उसके पिछले कर्म शुभ रहे हैं, और अब वही फल उसकी वर्तमान उपलब्धियों में बदल रहे हैं। परंतु यदि 11H अशुभ या पीड़ित है, तो व्यक्ति को अपने कर्मों की दिशा को सुधारने की आवश्यकता होती है, क्योंकि फल अब भी आने वाले समय में बदले जा सकते हैं।
🌿 कर्म पत्थर नहीं, मिट्टी की तरह है —
अगर समय रहते गढ़ लिया जाए, तो भाग्य भी बदला जा सकता है।
🌞 तीसरा सूत्र: जीवनसाथी – आपका कर्म का आईना
7वाँ भाव जीवनसाथी का है, और “7वें से 7वाँ” फिर से पहला भाव होता है। इसका अर्थ यह है कि जीवनसाथी वही दिखाता है जो हम भीतर से हैं। यदि कोई व्यक्ति दूसरों के प्रति ईमानदार, संवेदनशील और स्नेहशील है, तो उसका जीवनसाथी भी उसी रूप में उसके जीवन में आता है। लेकिन यदि व्यक्ति स्वार्थी, असंवेदनशील या अहंकारी है, तो उसका जीवनसाथी उसी स्वभाव का प्रतिबिंब बनकर उसके कर्मों का फल दिखाता है।
यह सिद्धांत विवाह संबंधों में कर्म की परिपक्वता को दर्शाता है। जीवनसाथी हमारे कर्मों का दर्पण होता है — जो हमने कभी किसी के साथ किया, वही व्यवहार जीवन हमें उसके रूप में लौटा देता है। इसीलिए कहा गया है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के कर्मफल का दर्पण हैं।
🌸 “यदि तुम अपने जीवनसाथी को बदलना चाहते हो,
तो पहले स्वयं को परिवर्तित करो, क्योंकि वही उसका प्रतिबिंब है।”
🌼 चौथा सूत्र: दान, सेवा और त्याग – आत्मा का शुद्ध प्रतिबिंब
भावत भावम सिद्धांत केवल भौतिक परिणामों तक सीमित नहीं है; यह आत्मिक विकास की दिशा भी बताता है। बारहवाँ भाव व्यय, त्याग और मोक्ष का है, और “12वें से 12वाँ” यानी 11वाँ भाव दान के फल को दिखाता है। यदि व्यक्ति ईमानदारी से दान, सेवा या परमार्थ करता है, तो उसका फल उसे केवल समाज से नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और प्रतिष्ठा के रूप में लौटता है। और यदि वह दान केवल दिखावे या स्वार्थ के लिए करता है,
तो परिणाम भी केवल बाहरी ही रहता है — भीतर शून्यता बनी रहती है।
🌿 “त्याग का वास्तविक फल तभी मिलता है जब त्याग हृदय से किया जाए,
क्योंकि भाव ही फल का बीज है।”
🌺 जीवन-दर्शन का निष्कर्ष
भावत भावम सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि हर कर्म का प्रतिबिंब किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में लौटता है — कभी रिश्ते बनकर, कभी अवसर बनकर, और कभी परीक्षा बनकर। यह सिद्धांत ज्योतिष से आगे जाकर हमें नैतिकता, आत्म-जागरूकता और कर्म-संतुलन का पाठ पढ़ाता है।
जब हम यह समझ जाते हैं कि “जैसे को तैसा” कोई भय का सिद्धांत नहीं, बल्कि न्याय का सूत्र है, तब जीवन के हर सुख-दुख को स्वीकार करना आसान हो जाता है। यही वह बिंदु है जहाँ ज्योतिष गणना से दर्शन में बदल जाता है — और व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि उसका हर कर्म एक तरंग की तरह ब्रह्मांड में घूमकर उसी तक लौटता है।
🌟 “भावत भावम हमें यह नहीं सिखाता कि क्या होने वाला है —
यह सिखाता है कि जो भी होगा, वह न्यायपूर्ण होगा।”
शोधात्मक दृष्टि से विश्लेषण – जब ज्योतिष गणना से विज्ञान बन जाता है।
भावत भावम सिद्धांत केवल शास्त्रीय नियम नहीं है; यह एक “रिसर्च टूल” है जो किसी भी कुंडली को गहराई से समझने का दृष्टिकोण देता है। इस दृष्टि से देखने पर कुंडली संख्या या चार्ट भर नहीं रहती, बल्कि एक जीवंत जीवन-मानचित्र बन जाती है जहाँ हर भाव किसी दूसरे भाव से प्रेरित होता है। शोधात्मक अर्थ में यह सिद्धांत तीन स्तरों पर काम करता है — Primary House, Its Bhavat Bhavam, और Karaka (कारक ग्रह)।
🌿 पहला स्तर — Primary House (मूल भाव)
हर विषय का एक मुख्य भाव होता है — जैसे संतान के लिए 5वाँ भाव, धन के लिए 2H, शिक्षा के लिए 5H आदि। लेकिन यदि हम सिर्फ़ इन्हीं भावों तक सीमित रहें तो कई बार चित्र अधूरा रह जाता है। उदाहरण के लिए, किसी के 5वें भाव में गुरु हों तो हम मान लेंगे कि संतान शुभ होगी; परंतु यदि गुरु दुर्बल है या 5H का भावेश अशुभ नक्षत्र में है, तो निष्कर्ष गलत हो सकता है। इसलिए शोधात्मक रूप में पहला कदम है — भाव का अंतरंग स्वभाव और उसके स्वामी की स्थिति देखना।
🌿 दूसरा स्तर — Bhavat Bhavam (भाव से भाव)
अब हम मूल भाव से उतने ही क्रम पर स्थित भाव देखते हैं — यानी भाव का प्रतिबिंब। उदाहरण के लिए, संतान (5H) का भावत भावम है 9H। यदि 9H शुभ है, तो संतान केवल जन्म नहीं लेगी बल्कि भाग्यशाली भी सिद्ध होगी। परंतु यदि 9H अशुभ है तो 5H की सारी शुभता कम हो सकती है। इसी प्रकार 2H का भावत भावम 3H है, जिससे वाणी की कौशलता का अंदाज़ लगाया जाता है; 4H का भावत भावम 7H है, जिससे संपत्ति और आय का तालमेल देखा जाता है।
यह स्तर हमें यह समझाता है कि हर भाव का फल उसके प्रतिबिंब भाव की मजबूती पर निर्भर करता है। यही वह बिंदु है जहाँ ज्योतिष सामान्य अध्ययन से रिसर्च में परिवर्तित हो जाता है।
🌿 तीसरा स्तर — Karaka (कारक ग्रह)
भाव और उसका भावत भावम समझने के बाद तीसरा महत्वपूर्ण स्तर है उसका कारक ग्रह। जैसे 5H का कारक गुरु है, 4H का चंद्र है, 7H का शुक्र आदि। कई बार भाव और भावत भावम दोनों शुभ होते हैं, परंतु कारक ग्रह दुर्बल हो तो परिणाम अधूरा हो जाता है। इसी प्रकार अगर कारक ग्रह बलवान हो तो अशुभ भावों के दोष भी कम हो जाते हैं। इसलिए किसी भी विषय का निष्कर्ष तभी सटीक हो सकता है जब ये तीनों स्तर संतुलित रूप से देखे जाएँ।
सूत्र: भाव + भावत भावम + कारक ग्रह = लगभग पूर्ण सत्य।
🕊️ शोधात्मक दृष्टिकोण की महत्ता
भावत भावम सिद्धांत को रिसर्च के रूप में अपनाने का मतलब है — कुंडली को केवल “predict” नहीं करना, बल्कि “decode” करना। हर भाव में छिपे प्रश्न का उत्तर उसके प्रतिबिंब में मिलता है। जैसे किसी रिश्ते की समस्या 7H से नहीं बल्कि 1H और 7H के द्वंद्व से समझ में आती है; स्वास्थ्य की समस्या 6H से नहीं बल्कि 6H-11H के तालमेल से स्पष्ट होती है। यही वह “समग्र दृष्टि” है जो एक शोधकर्ता को एक सामान्य ज्योतिषी से अलग बनाती है।
🌸 “कुंडली को पढ़ो नहीं, उससे संवाद करो — भावत भावम उसी संवाद की भाषा है।”
जब भाव, उसका प्रतिबिंब और उसका कारक तीनों एक संगीत की तरह मेल खाते हैं, तो व्यक्ति का जीवन भी तालमेल में आ जाता है। यही भावत भावम सिद्धांत का वैज्ञानिक रूप है — जहाँ हर फल का कारण तर्क के साथ जुड़ा हुआ होता है। यह सिद्धांत सिखाता है कि ज्योतिष कभी भी अंधविश्वास नहीं रहा; वह एक psychological geometry है — मानव अनुभवों का गणित, जिसे केवल अनुभव और अध्ययन से समझा जा सकता है।
अगले भाग की झलक – जब भाव से भाव आत्मा की यात्रा बन जाता है।
अब तक हमने “भावत भावम सिद्धांत” के माध्यम से यह समझा कि कैसे हर रिश्ता, हर कर्म और हर अनुभव — किसी न किसी भाव का प्रतिबिंब है। हमने देखा कि 5H और 9H के बीच पिता-पुत्र का कर्मचक्र कैसे चलता है, 7H और 1H के माध्यम से जीवनसाथी हमारे कर्मों का दर्पण कैसे बनता है, और भाव, उसका प्रतिबिंब तथा उसका कारक — तीनों मिलकर कुंडली को एक जीवंत विज्ञान बना देते हैं।
परंतु यह केवल यात्रा का आधा हिस्सा है। अब असली गहराई वहाँ से शुरू होती है, जहाँ भावत भावम मानव जीवन से उठकर आत्मा की ओर बढ़ता है। अगले भाग में हम जानेंगे कि यह सिद्धांत हमें मोक्ष, आध्यात्मिकता और आत्म-विकास के रहस्यों तक कैसे ले जाता है। साथ ही यह भी समझेंगे कि इस सिद्धांत का प्रयोग करते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ आवश्यक हैं — क्योंकि जहाँ ज्ञान गहरा होता है, वहाँ एक छोटी भूल भी परिणाम बदल सकती है।
🌸 तो तैयार रहिए — अगले भाग में हम उतरेंगे भावत भावम के सबसे सूक्ष्म अध्याय में,
जहाँ हर भाव केवल भविष्य नहीं बताता, बल्कि आत्मा के मार्ग को प्रकाशित करता है।
अंतिम संदेश
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