भूमिका: जब भाव से भाव देखने की आवश्यकता पड़ती है!
ज्योतिष केवल ग्रहों और भावों की एक यांत्रिक गणना नहीं है, बल्कि यह चेतना और जीवन के बीच छिपे संबंधों को समझने की कला है। हममें से अधिकतर लोग कुंडली में किसी एक भाव को देखकर तुरंत निर्णय ले लेते हैं — जैसे पाँचवाँ भाव संतान का है, चौथा भाव सुख का है, सातवाँ जीवनसाथी का है। परंतु गहराई से विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि हर भाव अपने आप में पूर्ण नहीं होता, वह किसी दूसरे भाव से जुड़ा होता है, और उसी जुड़ाव को समझने के लिए “भावत भावम सिद्धांत (Bhavat Bhavam Theory)” की आवश्यकता पड़ती है।
जब कोई ज्योतिषी किसी विषय की सटीक जड़ तक पहुँचना चाहता है — चाहे वह संबंधों की हो, धन की, या भाग्य की — तब केवल एक भाव को देखना पर्याप्त नहीं होता। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी की वाणी देखना चाहें, तो केवल दूसरे भाव को देखना अधूरा होगा; हमें “दूसरे से दूसरा” यानि तीसरा भाव भी देखना होगा। यही खोज और तुलना का दृष्टिकोण भाव से भाव यानी “भावत भावम” कहलाता है।
इस सिद्धांत का सौंदर्य यह है कि यह केवल गणना नहीं सिखाता, बल्कि सोचने का नया तरीका देता है। जब आप इसे आत्मसात कर लेते हैं, तो ज्योतिष आपके लिए केवल भविष्य बताने का साधन नहीं रहता — वह एक रिसर्च का विषय बन जाता है। हर भाव, अपने प्रतिबिंब भाव में जाकर, अपने रहस्यों को उजागर करता है। यही वह बिंदु है जहाँ से एक साधारण विद्यार्थी, एक शोधकर्ता बनना शुरू करता है।
“भावत भावम सिद्धांत” इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि यह जीवन के उस नियम को ज्योतिष में रूपांतरित करता है —
“जैसे को तैसा” — जैसा कारण, वैसा परिणाम; जैसा भाव, वैसा उसका प्रतिबिंब।
इस सिद्धांत को समझना केवल तकनीक नहीं है, बल्कि यह संबंधों, कर्मों और जीवन के गूढ़ सूत्रों को पहचानने की कला है। जब आप किसी एक भाव को दूसरे से जोड़कर देखने की क्षमता विकसित कर लेते हैं, तब कुंडली बोलने लगती है — और यही वह क्षण है जहाँ से आपकी ज्योतिष यात्रा “शास्त्र” से “अनुभव” की ओर बढ़ती है।
तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
भावत भावम सिद्धांत की परिभाषा
ज्योतिष में जब हम कहते हैं “भाव से भाव”, तो यह वाक्य अपने भीतर एक सम्पूर्ण गणित और एक गहरी आध्यात्मिक सोच समेटे होता है। “भावत भावम” का शाब्दिक अर्थ है — जिस भाव को देखना हो, उसी भाव से उतने ही क्रम पर स्थित भाव को देखना। अर्थात, यदि किसी विषय को समझने के लिए हम किसी भाव का अध्ययन कर रहे हैं, तो उसके वास्तविक या गूढ़ परिणाम को जानने के लिए उसी से समान संख्या पर स्थित अगले भाव का अध्ययन करना चाहिए। यही भाव का “प्रतिबिंब” या “mirror-house” कहलाता है।
उदाहरण के रूप में —
- पहले से पहला भाव (1H→1H) स्वयं का प्रतीक है, अतः आत्म और देह को दर्शाता है।
- दूसरे से दूसरा (2H→3H) व्यक्ति की वाणी का गहरापन और बोलने की क्षमता बताता है।
- तीसरे से तीसरा (3H→5H) व्यक्ति के कौशल का, उसकी शिक्षा और ज्ञान के साथ कैसे मेल खाता है, यह दिखाता है।
इस प्रकार हर भाव अपने समान क्रम वाले दूसरे भाव में जाकर एक नई तस्वीर बनाता है। यह ऐसा ही है जैसे किसी दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखना — चेहरा वही रहता है, लेकिन दृष्टिकोण बदल जाता है।
ज्योतिष में यही प्रतिबिंब आपको बताता है कि सतही स्थिति क्या है और उसके पीछे छिपा सत्य क्या है।
भविष्यवाणी करते समय कई बार हम देखते हैं कि एक भाव से संकेत शुभ है, लेकिन घटना वैसी घटित नहीं होती — ऐसे में भावत भावम सिद्धांत वह अदृश्य कड़ी उजागर करता है जो दो भावों को जोड़ रही होती है। यह बताता है कि किसी एक परिणाम को देखने के लिए सिर्फ “मूल भाव” नहीं बल्कि उसका “भाव से भाव” भी सक्रिय होना चाहिए।
यह सिद्धांत हमें यह भी सिखाता है कि —
“हर भाव अकेला नहीं होता; वह किसी दूसरे भाव के माध्यम से ही पूर्णता प्राप्त करता है।”
इसीलिए जब आप किसी कुंडली को भावत भावम के दृष्टिकोण से देखने लगते हैं,
तो वह केवल ग्रहों का चार्ट नहीं रह जाती, बल्कि जीवन के अनुभवों का मानचित्र बन जाती है।
यहीं से एक सामान्य विश्लेषक, एक अनुभवी ज्योतिष शोधकर्ता बनना शुरू करता है।
भावत भावम सिद्धांत की गणना विधि
भावत भावम सिद्धांत को समझने का सबसे आसान तरीका है —
👉 “जिस भाव को देखना हो, उस भाव से उतने ही क्रम पर स्थित भाव को देखो।”
यही इस सिद्धांत का गणितीय और तर्कपूर्ण सार है।
उदाहरण के लिए,
यदि हम “दूसरे भाव” को आधार मानते हैं, तो उससे दूसरा भाव कौन-सा होगा?
तीसरा भाव।
इसलिए दूसरा भाव (वाणी, धन, परिवार) और तीसरा भाव (कौशल, संचार, प्रयास) —
दोनों एक-दूसरे से अंतःसंबंधित हो जाते हैं।
अब इसे क्रमवार समझते हैं —
| आधार भाव | भाव से भाव | प्रतिबिंब भाव | विश्लेषणार्थ संबंध |
|---|---|---|---|
| 1H | पहले से पहला | 1H | आत्म, शरीर, स्वयं |
| 2H | दूसरे से दूसरा | 3H | वाणी से उत्पन्न कौशल |
| 3H | तीसरे से तीसरा | 5H | प्रयास से जन्मी प्रतिभा |
| 4H | चौथे से चौथा | 7H | गृह से जुड़ी आजीविका |
| 5H | पाँचवें से पाँचवाँ | 9H | ज्ञान से उत्पन्न भाग्य |
| 6H | छठे से छठा | 11H | रोग से जुड़ी पुनःप्राप्ति |
| 7H | सातवें से सातवाँ | 1H | संबंधों से आत्म-परिचय |
| 8H | आठवें से आठवाँ | 3H | रहस्य से उपजा प्रयास |
| 9H | नवें से नवाँ | 5H | भाग्य और बुद्धि का दर्पण |
| 10H | दसवें से दसवाँ | 7H | कर्म और साझेदारी का योग |
| 11H | ग्यारहवें से ग्यारहवाँ | 9H | लाभ से उत्पन्न भाग्य |
| 12H | बारहवें से बारहवाँ | 11H | व्यय से जुड़ा मुक्ति मार्ग |
इन गणनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि हर भाव किसी न किसी अन्य भाव में परिलक्षित होता है। यही कारण है कि एक भाव का अकेले विश्लेषण अधूरा होता है। किसी भी विषय की पुष्टि के लिए उसके “भावत भावम” को देखना अनिवार्य है।
इस विधि का एक व्यावहारिक उदाहरण लें — यदि किसी व्यक्ति के पाँचवें भाव से संतान के संकेत मिलते हैं, तो हमें “पाँचवें से पाँचवाँ” यानी नवम भाव भी देखना होगा। यदि दोनों शुभ हैं, तभी यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति को विद्या, संतान और भाग्य — तीनों का वरदान मिलेगा। अगर इनमें से कोई एक भाव कमजोर हो, तो परिणाम भी अधूरा होगा।
इसी तरह यदि 6H में रोग का संकेत है, तो 6वें से छठा यानी 11वाँ भाव उस रोग की प्रकृति और सुधार की क्षमता दिखाएगा।
यानी रोग है भी तो क्या उससे मुक्ति मिलेगी या नहीं — इसका उत्तर “भाव से भाव” में छिपा है।
इस प्रकार,
भावत भावम सिद्धांत एक गणित नहीं, बल्कि अनुभवजन्य सत्य है।
यह ग्रहों के प्रभाव को दूसरे कोण से देखने की एक वैज्ञानिक दृष्टि देता है।
इस गणना की सहायता से हम यह कह सकते हैं कि —
“ज्योतिष केवल ग्रहों का अध्याय नहीं, बल्कि संबंधों की ज्यामिति है।”
तीसरा और ग्यारहवाँ समभाव क्यों कहलाते हैं
भावत भावम सिद्धांत में जब हम “भाव से भाव” की गणना करते हैं, तो एक अत्यंत रोचक परिणाम सामने आता है — तीसरा और ग्यारहवाँ भाव एक-दूसरे के समान (समभाव) माने जाते हैं।
यह समानता कोई संयोग नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ा हुआ ज्योतिषीय गणित है, जो मानव जीवन के व्यवहार और परिणामों को सूक्ष्म रूप से प्रतिबिंबित करता है।
आइए इसे क्रमवार समझते हैं —
छठे भाव का प्रतिबिंब — ग्यारहवाँ भाव
छठा भाव रोग, शत्रु और ऋण का प्रतिनिधि है। जब हम छठे से छठा भाव देखते हैं, तो गणना के अनुसार वह ग्यारहवाँ भाव आता है। अब यदि छठा “रोग का” भाव है, तो उसका प्रतिबिंब — ग्यारहवाँ — स्वास्थ्य की पुनःप्राप्ति या रोग मुक्ति का भाव बन जाता है। इसीलिए ग्यारहवाँ भाव केवल लाभ या कमाई का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह “recovery” यानी कठिनाइयों से बाहर निकलने की क्षमता का भी प्रतीक है। यही कारण है कि ज्योतिष में कहा गया है —
“छठे से छठा भाव व्यक्ति को रोग से मुक्ति दिलाता है।”
अर्थात्, रोग 6H से दिखेगा, और उसका उपचार या सुधार 11H से।
बारहवें भाव का प्रतिबिंब — ग्यारहवाँ भाव
अब बारहवें भाव की बात करें — यह व्यय, नींद, परदेश, हानि और मोक्ष से संबंधित होता है। जब हम बारहवें से बारहवाँ देखते हैं, तो फिर ग्यारहवाँ भाव ही प्राप्त होता है। यानी व्यय का भाव (12H) और उसका “भाव से भाव” लाभ का भाव (11H) निकलता है। यहाँ एक रहस्य छिपा है — जहाँ व्यय होता है, वहीं से लाभ भी जन्म लेता है। क्योंकि यदि खर्चा सही दिशा में हो (दान, सेवा, साधना), तो वही व्यक्ति को आत्मिक और भौतिक लाभ देता है। यह प्रकृति का संतुलन है — त्याग से ही प्राप्ति का जन्म होता है।
आठवें भाव का प्रतिबिंब — तीसरा भाव
आठवाँ भाव रहस्य, मृत्यु, परिवर्तन और गुप्त घटनाओं का भाव माना जाता है।
जब हम आठवें से आठवाँ देखते हैं, तो तीसरा भाव निकलता है।
तीसरा भाव पराक्रम, साहस और प्रयास का प्रतीक है।
इसका अर्थ हुआ —
“जहाँ रहस्य और संकट हैं, वहीं प्रयास और साहस का जन्म होता है।”
अर्थात्, जो व्यक्ति जीवन के गहरे रहस्यों को झेलता है, वही अंदर से मजबूत बनता है।
यही कारण है कि 8H और 3H को भी एक प्रकार से “परिवर्तन के सहभाव” कहा जाता है।
इसलिए तीसरा और ग्यारहवाँ — समभाव
अब यदि देखें तो 6H और 12H — दोनों का प्रतिबिंब 11H पर है, और 8H का प्रतिबिंब 3H पर। इसलिए 3H और 11H को “समभाव” कहा जाता है, क्योंकि ये दोनों जीवन के संघर्षों को अवसरों में बदलने की क्षमता दर्शाते हैं। तीसरा भाव “प्रयास” का, और ग्यारहवाँ भाव “प्राप्ति” का प्रतीक है — और यही जीवन का नियम भी है:
“प्रयास और प्राप्ति — दोनों एक ही सूत्र के दो छोर हैं।”
जब कोई ज्योतिषी इस गूढ़ गणित को समझ लेता है, तो उसे पता चल जाता है कि कुंडली के तीसरे और ग्यारहवें भाव में छिपे संकेत केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि कर्म, परिणाम और पुनर्जन्म के सिद्धांतों से जुड़े हैं। इसीलिए ये दोनों भाव — ज्योतिष में “समभाव” (equal house) — कहे गए हैं।
भाव से भाव का संबंध – भाषा, शिक्षा और संपत्ति के उदाहरण
ज्योतिष केवल यह नहीं बताता कि कौन-सा भाव किस विषय से जुड़ा है, बल्कि यह भी बताता है कि एक भाव का फल दूसरे भाव से कैसे पुष्ट होता है।
यही भावत-भावम सिद्धांत का व्यावहारिक उपयोग है — जहाँ हम देखते हैं कि कोई विषय केवल एक भाव से नहीं, बल्कि उससे समान क्रम पर स्थित दूसरे भाव से भी पुष्टि पाता है।
इस अनुभाग में हम तीन जीवन क्षेत्रों से उदाहरण लेकर इस गूढ़ सिद्धांत को सरल रूप में समझेंगे —
(1) भाषा और संवाद कौशल, (2) शिक्षा और प्रतिभा, तथा (3) संपत्ति और आमदनी।
भाषा और संवाद – दूसरा और तीसरा भाव
दूसरा भाव (2H) व्यक्ति की वाणी, शब्द-भंडार और अभिव्यक्ति का द्योतक होता है। लेकिन किसी की भाषा केवल आवाज़ तक सीमित नहीं होती — उसमें सोचने का ढंग, तर्क की परिपक्वता और प्रस्तुति की शक्ति भी झलकती है। यह सब तीसरे भाव (3H) से जुड़ता है, जो कम्युनिकेशन स्किल्स, लेखन, अभिव्यक्ति और आत्मविश्वास का भाव है। अब यदि हम “भाव से भाव” देखें — तो दूसरे से दूसरा ही तीसरा भाव होता है। इसलिए वाणी (2H) की वास्तविक गुणवत्ता तभी प्रकट होती है, जब 3H भी मजबूत और शुभ स्थिति में हो।
उदाहरण के तौर पर —
यदि किसी व्यक्ति के दूसरे भाव का स्वामी शुभ हो, और तीसरे भाव का स्वामी उससे मित्रता रखता हो, तो वह व्यक्ति अपनी भाषा से किसी का भी दिल जीत सकता है। वाणी का सौंदर्य तभी निखरता है जब उसके पीछे विचारों की स्पष्टता हो — और यही विचार-शक्ति 3H प्रदान करता है।
निष्कर्ष: वाणी और संवाद, शब्द और विचार — दोनों का संयोग ही “प्रभावी अभिव्यक्ति” कहलाता है।
इसलिए किसी लेखक, वक्ता, या शिक्षक की कुंडली में 2H और 3H दोनों का अध्ययन अनिवार्य है।
शिक्षा और प्रतिभा – तीसरा और पाँचवाँ भाव
तीसरा भाव पराक्रम और प्रयास का भाव है। यह व्यक्ति की “कर्म-सिद्धि” की दिशा दिखाता है — यानी वह अपनी मेहनत को किस रूप में प्रस्तुत करता है। अब यदि हम “तीसरे से तीसरा” देखें, तो वह पाँचवाँ भाव बनता है, जो शिक्षा, बुद्धि, कौशल, ज्ञान और रचनात्मकता का द्योतक है। इस प्रकार, प्रयास (3H) और प्रतिभा (5H) का रिश्ता सीधा है। किसी व्यक्ति की शिक्षा केवल विद्यालय की चारदीवारों में नहीं बनती; वह उसके प्रयासों, लगन और आत्म-प्रेरणा से जन्म लेती है — और यह सब तीसरे भाव से संबंधित है।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में 3H और 5H दोनों मजबूत हों, तो वह न केवल ज्ञानी होता है, बल्कि अपनी शिक्षा का व्यावहारिक उपयोग भी जानता है। वहीं यदि 3H कमजोर हो, तो व्यक्ति को ज्ञान तो मिलता है, परंतु वह उसे प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत नहीं कर पाता।
इसलिए कहा गया है: “बुद्धि तभी फल देती है जब प्रयास उसकी नींव बनता है।”
5H ज्ञान देता है, पर 3H उसे कर्म में बदलता है।
संपत्ति और आमदनी – चौथा और सातवाँ भाव
चौथा भाव (4H) सुख, गृह, वाहन और स्थायी संपत्ति का भाव है। यह व्यक्ति की “जड़” यानी स्थिरता को दिखाता है। जब हम “चौथे से चौथा” देखें, तो वह सातवाँ भाव (7H) बनता है, जो साझेदारी, व्यवसाय और दैनिक आमदनी से संबंधित है।
अब यहाँ एक गहरा संकेत है — जब व्यक्ति की रोज़मर्रा की आमदनी (7H) स्थिर और शुभ होती है, तभी वह अपने गृह, वाहन, और संपत्ति (4H) का सपना पूरा कर पाता है। इसलिए कहा गया है कि सातवाँ भाव केवल दाम्पत्य का नहीं, बल्कि “जीवन-निर्वाह” का भी मुख्य भाव है।
यदि किसी की कुंडली में 4H और 7H दोनों शुभ हों, तो उसे आर्थिक स्थिरता शीघ्र प्राप्त होती है, और वह घर-परिवार के सुखों का आस्वादन करता है। परंतु यदि सातवाँ भाव दुर्बल हो, तो चाहे चौथा भाव बलवान क्यों न हो, संपत्ति की प्राप्ति में देरी या अवरोध होता है।
निष्कर्ष: चौथा भाव “सपना” दिखाता है,
सातवाँ भाव “वास्तविक साधन” देता है।
दोनों में सामंजस्य ही भौतिक सुख का आधार है।
सारांश
भाव से भाव का संबंध हमें यह सिखाता है कि कोई भी परिणाम अकेले एक भाव का नहीं होता। हर भाव किसी अन्य भाव में जाकर अपनी गूँज छोड़ता है — जैसे ध्वनि तरंग किसी दीवार से टकराकर वापस लौटती है। इसी प्रकार, 2H-3H में वाणी की गूँज, 3H-5H में बुद्धि की गूँज, और 4H-7H में स्थिरता की गूँज सुनाई देती है। यही “भावत भावम” का जादू है — जहाँ एक भाव दूसरे में प्रतिबिंबित होकर जीवन के हर क्षेत्र का पूर्ण चित्र बनाता है।
अगले भाग की भूमिका – अभी तो यह शुरुआत है…
जो कुछ आपने अभी तक पढ़ा, वह “भावत भावम सिद्धांत” की केवल झलक है — इसका मूल नहीं। यह तो जैसे किसी विशाल सागर के तट पर खड़े होकर केवल एक लहर को छू लेना है। ज्योतिष में हर भाव का एक नहीं, अनेक प्रतिबिंब होते हैं, और हर प्रतिबिंब के भीतर छिपा है एक नया जीवन-सूत्र। अब तक हमने समझा कि कैसे भाव अपने समान क्रम वाले भाव से जुड़ता है, लेकिन इन संबंधों से रिश्ते कैसे बनते हैं, कर्म और फल का गूढ़ चक्र कैसे चलता है, और मोक्ष या पुनर्जन्म जैसी घटनाएँ इसी सिद्धांत में कैसे छिपी हैं — ये सब रहस्य अभी बाकी हैं।
भाग 2 में हम इस सिद्धांत को जीवन, परिवार और कर्म के स्तर पर खोलेंगे — जहाँ हर रिश्ता, हर अनुभव, और हर कर्म एक-दूसरे से जुड़कर आपको यह महसूस कराएगा कि “ज्योतिष केवल भविष्य नहीं बताता, वह वर्तमान की जड़ें भी दिखाता है।”
🌟 तो अब तैयार रहिए — अगले भाग में हम उतरेंगे भावत भावम के गहनतम रहस्यों में,
जहाँ हर भाव अपने प्रतिबिंब में बोलता है, और हर प्रतिबिंब जीवन का अर्थ बदल देता है।
अंतिम संदेश
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