धनु लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Dhanu Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को अत्यंत आशावादी, उत्साही और उदार बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि धनु लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

धनु लग्न का महत्व

धनु लग्न (Dhanu Lagna Kundali) अग्नि तत्व और द्विस्वभाव का प्रतीक है। यह लग्न स्वतंत्रता, आध्यात्मिकता, न्यायप्रियता और ज्ञान की खोज का प्रतीक माना जाता है। धनु लग्न के जातक स्पष्ट विचारों वाले, आशावादी और सच्चाई के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। वे सत्य, धर्म और जीवन के उच्च उद्देश्यों को समझने की इच्छा रखते हैं।

इस लग्न का स्वामी गुरु है, जो ज्ञान, धर्म, बुद्धि और विस्तार का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु का प्रभाव धनु लग्न जातकों को विद्वान, नैतिक, और आदर्शवादी बनाता है। वे जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से देखने वाले होते हैं और दूसरों को प्रेरणा देने की क्षमता रखते हैं।

हालाँकि, धनु लग्न का छाया-पक्ष यह है कि जातक कभी-कभी अधिक आदर्शवादी होकर व्यावहारिकता खो देते हैं या जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं। इसलिए इनके लिए यह जानना आवश्यक है कि कौन से ग्रह सहयोगी हैं और कौन जीवन में अवरोधक सिद्ध हो सकते हैं।

धनु लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

Dhanu Lagna Kundali में ग्रहों का स्वभाव और प्रभाव अन्य लग्नों से काफी भिन्न होता है। यहाँ ग्रहों का वर्गीकरण उनके भाव स्वामित्व और जीवन पर प्रभाव के आधार पर किया जाता है। कुछ ग्रह जातक को स्थिरता और सफलता की ओर ले जाते हैं, जबकि कुछ जीवन में बाधाएँ और अस्थिरता उत्पन्न करते हैं।

  • योगकारक ग्रह (Positive): गुरु, मंगल, बुध और सूर्य।
    ये ग्रह शिक्षा, करियर, भाग्य, धन और नेतृत्व क्षमता बढ़ाते हैं।
  • मारक ग्रह (Negative): शनि, शुक्र और चंद्र।
    ये ग्रह वैवाहिक जीवन, मानसिक स्थिरता और आर्थिक मामलों में अवरोध पैदा करते हैं।
  • राहु–केतु: परिस्थितिजन्य ग्रह हैं जो जिस भाव और ग्रह से युति करते हैं, उसी अनुसार शुभ या अशुभ फल देते हैं।

धनु लग्न में ग्रहों का विस्तृत वर्गीकरण

ग्रहश्रेणीकारण / भूमिका
गुरु (लग्नेश)योगकारकलग्नेश और चतुर्थ भाव का स्वामी; ज्ञान, धर्म, सुख और स्थिरता देता है।
मंगल (ईष्टदेव)योगकारकपंचम और बारहवें भाव का स्वामी; साहस, पराक्रम और संतान सुख देता है।
बुध (सप्तमेश व कर्मेश)योगकारकसप्तम और दशम भाव का स्वामी; करियर, व्यापार और विवेक का दाता।
सूर्य (भाग्येश)योगकारकनवम भाव का स्वामी; भाग्य, धर्म और उच्च शिक्षा में प्रगति देता है।
शनि (धनेश व पराक्रमेश)मारकद्वितीय और तृतीय भाव का स्वामी; वाणी, परिश्रम और पारिवारिक स्थिरता में बाधक।
शुक्र (आयेश व षष्ठेश)मारकछठे और ग्यारहवें भाव का स्वामी; शत्रु, ऋण, रोग और लाभ में अस्थिरता का कारक।
चंद्र (अष्टमेश)मारकअष्टम भाव का स्वामी; मानसिक तनाव और अचानक घटनाओं का कारण।
राहु–केतुपरिस्थितिजन्यअपनी स्थिति और युति के अनुसार शुभ या अशुभ परिणाम देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

Dhanu Lagna Kundali में योगकारक ग्रह वे होते हैं जो जातक के जीवन में उन्नति, स्थिरता और सौभाग्य लाते हैं। ये ग्रह शिक्षा, करियर, भाग्य, धन और सामाजिक प्रतिष्ठा के क्षेत्रों में विशेष रूप से सहायक होते हैं। धनु लग्न के प्रमुख योगकारक ग्रह गुरु, मंगल, बुध और सूर्य हैं।

1. गुरु – ज्ञान और स्थिरता का कारक

  • गुरु धनु लग्न का लग्नेश है और चतुर्थ भाव (सुख, माता, संपत्ति) का भी स्वामी है।
  • यह ग्रह जातक को बुद्धिमत्ता, धार्मिक दृष्टि और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।
  • इसकी शुभ स्थिति से व्यक्ति को स्थायी सुख, शिक्षा, वाहन-संपत्ति और समाज में प्रतिष्ठा मिलती है।

2. मंगल – साहस और पराक्रम का स्वामी

  • मंगल पंचम भाव (संतान, शिक्षा, रचनात्मकता) और बारहवें भाव (व्यय, विदेश) का स्वामी होता है।
  • यह जातक को साहसी, जुझारू और मेहनती बनाता है।
  • बलवान मंगल करियर में नेतृत्व, खेल-कूद या प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता देता है।
  • यदि गुरु के साथ शुभ युति करे तो यह एक बहुत अच्छा संयोग होता है।

3. बुध – व्यापार और बुद्धिमत्ता का ग्रह

  • बुध सप्तम भाव (विवाह, साझेदारी) और दशम भाव (कर्म, करियर) का स्वामी है।
  • इसका प्रभाव बुद्धि, तर्कशक्ति, व्यापारिक सूझबूझ और व्यावहारिक निर्णय क्षमता को बढ़ाता है।
  • बलवान बुध जातक को व्यवस्थित सोच, संवाद-कौशल और व्यावसायिक सफलता प्रदान करता है।

4. सूर्य – भाग्य और प्रतिष्ठा का दाता

  • सूर्य नवम भाव (भाग्य, धर्म, गुरु, उच्च शिक्षा) का स्वामी है।
  • यह जातक को आत्मविश्वास, नैतिकता और सामाजिक प्रतिष्ठा देता है।
  • शुभ स्थिति में सूर्य सरकारी क्षेत्र या नेतृत्व पदों पर उन्नति कराता है।

धनु लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

धनु लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह—गुरु, बुध, मंगल और सूर्य—बलवान स्थिति में हों या एक-दूसरे से शुभ संबंध बनाते हों, तब अनेक प्रकार के शक्तिशाली राजयोग और धनयोग निर्मित होते हैं। ये योग जातक को शिक्षा, करियर, भाग्य, प्रतिष्ठा और आर्थिक समृद्धि प्रदान करते हैं।

1. हंस राजयोग (पंचमहापुरुष योग)

  • निर्माण: जब गुरु लग्न (प्रथम भाव) या चतुर्थ भाव में स्थित हो।
  • फल: यह पंचमहापुरुष योगों में से एक है।
    • इस योग से जातक को ज्ञान, नैतिकता, धार्मिकता, सम्मान और आध्यात्मिक दृष्टि मिलती है।
    • व्यक्ति शिक्षित, प्रभावशाली और समाज में मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाला होता है।

2. भद्र राजयोग (पंचमहापुरुष योग)

  • निर्माण: जब बुध सप्तम या दशम भाव में स्थित हो।
  • फल: बुध का यह योग बुद्धिमत्ता, तर्कशक्ति, व्यापारिक सूझबूझ और करियर में स्थिरता प्रदान करता है।
    • जातक वक्तृत्व-कला और रणनीति में पारंगत होता है तथा शिक्षा या व्यापार के क्षेत्र में ख्याति अर्जित करता है।

3. नीच भंग राजयोग

  • निर्माण: जब बुध चतुर्थ भाव में हो और उसके साथ गुरु या शुक्र की युति हो।
  • फल:
    • यदि बुध का नीचत्व गुरु से भंग होता है, तो जातक को शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में अप्रत्याशित प्रगति मिलती है।
    • यदि बुध के साथ शुक्र हो तो यह स्थिति मालव्य राजयोग भी बना देती है, जिससे जातक को भौतिक सुख-सुविधा, सौंदर्य और वैभव प्राप्त होता है।

4. बुधादित्य राजयोग + भद्र योग + धर्म-कर्माधिपति योग (त्रिविध योग)

  • निर्माण: जब सूर्य और बुध दशम भाव में हों और बुध अस्त न हो।
  • फल:
    • यहाँ तीन योग एक साथ सक्रिय हो जाते हैं:
      • बुधादित्य योग: बुद्धि और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाता है।
      • भद्र योग: बुध की शक्ति से तर्कशक्ति और करियर में मजबूती देता है।
      • धर्म-कर्माधिपति योग: सूर्य (नवम भाव स्वामी) और बुध (दशम भाव स्वामी) के संयोग से धर्म और कर्म का मेल कराकर करियर में दिव्य उन्नति दिलाता है।

5. विपरीत राजयोग (चंद्र के माध्यम से)

  • निर्माण: जब चंद्र छठे या बारहवें भाव में हो और लग्नेश गुरु बलशाली स्थिति में हो।
  • फल:
    • यह योग संघर्षों से उभरकर सफलता प्रदान करता है।
    • प्रारंभिक जीवन में बाधाएँ आती हैं, परंतु बाद में जातक को अचानक प्रगति, प्रसिद्धि और आर्थिक स्थिरता मिलती है।

संक्षेप में – धनु लग्न के मुख्य शुभ योग:

योग का नामनिर्माण ग्रहभाव स्थितिविशेष परिणाम
हंस राजयोगगुरुप्रथम या चतुर्थज्ञान, धर्म और प्रतिष्ठा
भद्र राजयोगबुधसप्तम या दशमबुद्धि, व्यापार और करियर में सफलता
नीच भंग राजयोगबुध + गुरु/शुक्रचतुर्थशिक्षा, विलासिता और वैभव
बुधादित्य + धर्म-कर्माधिपति योगसूर्य + बुधदशमनेतृत्व, भाग्य और करियर में प्रगति
विपरीत राजयोगचंद्र + बलवान गुरुछठा या बारहवाँसंघर्ष के बाद सफलता और मान-सम्मान

मारक ग्रह कौन होते हैं?

ज्योतिष के शास्त्रीय सिद्धांतों के अनुसार, मारक ग्रह वे नहीं होते जो केवल मृत्यु का संकेत दें, बल्कि वे वे ग्रह हैं जो जीवन में अवरोध, मानसिक तनाव, देरी, संघर्ष और अस्थिरता उत्पन्न करते हैं। धनु लग्न कुंडली में मुख्य रूप से शनि, शुक्र और चंद्र ऐसे ग्रह हैं जो जीवन की गति को रोकने या उसे कठिन बनाकर जातक को परखते हैं।

🪐 1. शनि – शिक्षा, संतान और धन में देरी का कारण

धनु लग्न में शनि द्वितीय और तृतीय भाव का स्वामी होता है। यह ग्रह धैर्य और अनुशासन का प्रतीक तो है, लेकिन इसकी अशुभ स्थिति व्यक्ति के जीवन में ठहराव और रुकावट लाती है।

  • यदि शनि पंचम भाव में स्थित हो, तो यह शिक्षा में देरी, संतान प्राप्ति में विलंब, और प्रेम-संबंधों में अस्थिरता उत्पन्न करता है।
  • यह ग्रह जातक को आलसी, धीमी गति से कार्य करने वाला, और धन संचय में विलंब करने वाला बना सकता है।
  • यह स्थिति जातक को अनेक अपूर्ण संबंधों या कई प्रेम प्रसंगों में उलझा सकती है, जिनका परिणाम अक्सर मानसिक बोझ के रूप में सामने आता है।
  • किंतु यदि यहाँ सूर्य या मंगल की दृष्टि या युति हो जाए और शनि का नीचत्व भंग हो जाए, तो नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है — जिससे जातक संघर्षों के बाद असाधारण सफलता प्राप्त करता है।
  • परंतु यदि शनि अशुभ दशा में हो, तो व्यक्ति का जीवन संघर्ष, देरी और मानसिक भार से भरा रहता है।

🔹 संक्षेप में: शनि यहाँ “जीवन का विलंब कारक” है — लेकिन अगर नियंत्रण में आए तो वही व्यक्ति को सबसे अधिक ऊँचाई तक ले जा सकता है।

🌙 2. चंद्र – मानसिक पीड़ा और बालारिष्ट दोष का संकेत

चंद्र धनु लग्न में अष्टम भाव का स्वामी होता है, जो अचानक घटनाओं, भय, और मानसिक तनाव का भाव है। यह ग्रह यहाँ शुभ फल देने में कठिनाई महसूस करता है, विशेषकर यदि यह दुर्बल या अशुभ दृष्टि से पीड़ित हो।

  • यदि चंद्र बालारिष्ट दोष बना दे तो यह व्यक्ति के जीवन के प्रारंभिक 12 वर्षों तक मृत्यु या गंभीर स्वास्थ्य संकट का संकेत देता है।
  • ऐसे जातक के जीवन में बार-बार मृत्यु जैसे संकट आते हैं — जैसे गंभीर बीमारियाँ, दुर्घटनाएँ या शल्यचिकित्सा संबंधी परिस्थितियाँ।
  • यदि चंद्र की स्थिति सामान्य हो, फिर भी यह जातक को भावनात्मक उतार-चढ़ाव, अनिद्रा, और अत्यधिक संवेदनशील मन देता है।
  • अशुभ चंद्र मातृ पक्ष से मानसिक बोझ, अविश्वास या अस्थिरता का कारण बन सकता है।

🔹 संक्षेप में: चंद्र जातक को भीतर से अस्थिर कर सकता है, पर यदि यह बलवान हो तो गहरी अंतर्ज्ञान शक्ति और भावनात्मक समझ भी देता है।

💫 3. शुक्र – रोग, ऋण और नेत्र दोष का कारक

शुक्र धनु लग्न में षष्ठ (रोग, ऋण, शत्रु) और एकादश भाव (आय, लाभ) का स्वामी होता है। यह ग्रह विलासिता, सौंदर्य और भौतिक सुखों का प्रतीक है, लेकिन यहाँ इसका प्रभाव मिश्रित और कभी-कभी कष्टदायक बन जाता है।

  • शुक्र की अशुभ स्थिति जातक के जीवन में रोगों की पुनरावृत्ति, आर्थिक अस्थिरता, और आँखों से संबंधित दोष ला सकती है।
  • यदि शुक्र के साथ चंद्र और सूर्य भी अशुभ स्थिति में हों, तो व्यक्ति को नेत्र दोष, कमज़ोर दृष्टि, या प्रारंभिक आयु में ही चश्मे का प्रयोग करना पड़ सकता है।
  • शुक्र का प्रभाव जातक को आकर्षक बनाता है, परंतु भौतिक सुखों की लालसा बढ़ाकर मानसिक शांति को छीन सकता है।
  • यदि शुक्र शुभ दशा में हो और गुरु या बुध से दृष्ट या युत हो, तो यह राजसी जीवन और ऐश्वर्य भी देता है।

🔹 संक्षेप में: शुक्र जब अशुभ हो तो शरीर पर प्रभाव डालता है, और जब शुभ हो तो जीवन में आकर्षण और विलासिता का वरदान देता है।

🧭 टिप्पणी

धनु लग्न के लिए ये तीन ग्रह — शनि, चंद्र और शुक्र — मारक ग्रह हैं क्योंकि ये व्यक्ति के मार्ग में बाधाएँ रखकर उसे आत्मबल की परीक्षा देते हैं।

  • शनि देरी देता है, पर धैर्य सिखाता है।
  • चंद्र पीड़ा देता है, पर गहराई का अनुभव कराता है।
  • शुक्र भ्रम देता है, पर आकर्षण और सौंदर्य भी प्रदान करता है।
  • इसलिए यदि इन ग्रहों की स्थिति को सुधार लिया जाए, तो यही ग्रह व्यक्ति को ऊँचाई पर पहुँचा सकते हैं।
  • यदि बुध और सूर्य दशम भाव में हों, तो करियर में सफलता निश्चित है — लेकिन अशुभ शनि की दशा में स्थिरता पाने में समय लगता है।
  • जब गुरु या बुध मजबूत हों, तब आर्थिक स्थिति स्थिर रहती है; लेकिन शनि या शुक्र अशुभ दशा में आय से अधिक व्यय की प्रवृत्ति बढ़ाते हैं।
  • गुरु और बुध की दशा में विवाह सुखद रहता है, जबकि शनि और शुक्र की दशा में दूरी या मानसिक अलगाव बढ़ सकता है।
  • गुरु की शक्ति यहाँ सबसे आवश्यक है — क्योंकि वही मन और आत्मा के बीच संतुलन बनाता है।

धनु लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Dhanu Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये धनु लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 9(धनु राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 9 लिखा है यानि नौवीं राशि और हमको पता है कि नौवीं राशि धनु होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और धनु राशि के स्वामी गुरु होते हैं तो लग्नेश हुए गुरु।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 4H मिला है जोकि व्यक्तित्व और भौतिक सुख का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 10 नंबर लिखा है अर्थात मकर राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
  5. यहाँ 2H के स्वामी शनि है जोकि लग्नेश गुरु के शत्रु हैं इसलिए शनि मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  6. 3H जिसमें लिखा है 11 नंबर जोकि होती है कुंभ राशि – जिसके स्वामी होते हैं शनि देव जोकि प्रक्रामेश बने हैं और लग्नेश के शत्रु है और शनि तो पहले ही शत्रु हैं।
  7. 4H जिसमें लिखा है 12 नंबर यानि मीन राशि जोकि बृहस्पति देव की है और गुरु तो लग्नेश है जोकि हमेशा योगकारक ही होते हैं।
  8. 5H जिसमें लिखा है 1 नंबर यानि मेष राशि जिसके स्वामी हैं मंगल देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; मंगल देव को 12H भी मिला है जोकि व्यय, मोक्ष, अस्पताल, विदेश आदि का भाव है पर वो ईष्टदेव हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  9. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  10. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  11. अब बात करते हैं 7H की जिसमें लिखा है 3 नंबर यानि मिथुन राशि जिसके स्वामी हैं बुध; इनकी कन्या राशि दशम भाव में है; दोनों ही घर बुध को बहुत अच्छे मिले हैं और लग्नेश के शत्रु भी नहीं है इसलिए बुध योगकारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  12. 8H जो मिला है चंद्र देव को और ये घर मृत्यु और मृत्यु तुल्य कष्ट का है: जब गुरु + मंगल + सूर्य भी चंद्र के साथ अशुभ हों तो व्यक्ति अपनी मानसिक चेतना भी खो देता है।
  13. 9H में सिंह राशि है जोकि सूर्य की है और वो भाग्येश हैं तथा लग्नेश के मित्र भी है इसलिए सूर्य देव योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  14. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकमारक
गुरु शनि
मंगल शुक्र
बुध चंद्र
सूर्य

चित्र – 2

हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपना विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।

👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।

तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है।; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
मंगल गुरु
सूर्य शनि
शुक्र चंद्र
बुध राहु
केतु
  1. लग्नेश गुरु से बात शुरू करते हैं; गुरु लग्नेश हैं और त्रिक भाव में जाने के कारण उनको दोष लग गया और लग्न दोष बन गया और साथ में केन्द्राधिपति दोष भी इसलिए गुरु मारक हो गयें हैं। (लेकिन लग्नेश हैं तो कुछ अच्छा भी करेंगे पर शायद भौतिकता में नहीं)
  2. शुक्र स्वराशि होने के वजह से योगकारक हुए हैं: हाँ शुक्र की दृष्टि ख़राब हो सकती है लेकिन जहाँ वो हैं वहाँ बुध के साथ होने से उन्होंने लक्ष्मी नारायण राजयोग बना ही दिया; अब अगर व्यक्ति जीवन में संघर्ष से पीछे ना हटे तो प्रसिद्धि निश्चित है।
  3. चंद्र विपरीत राजयोग बना देते यदि लग्नेश योगकारक होते तो लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चंद्र मारक हैं।
  4. केतु मित्र की राशि में हैं और मित्र मारक हैं लेकिन केतु के साथ मंगल भी हैं और मंगल योगकारक हैं तो अब केतु भी मंगल की तरह परिणाम देंगे; या फिर यूँ कहो कि तलवार में धार लग गई।
  5. राहु तो शत्रु राशि में हैं और साथ में त्रिक भाव में भी है इसलिए राहु मारक ग्रह हुए।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: धनु लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

Dhanu Lagna Kundali जीवन में ज्ञान, धर्म और उद्देश्य की खोज का प्रतीक है। इस लग्न के जातक अपने सिद्धांतों, नैतिकता और आत्मबल के लिए जाने जाते हैं। वे सत्य और न्याय की राह पर चलना पसंद करते हैं, परंतु जब ग्रहों का संतुलन बिगड़ता है तो यह वही व्यक्ति भ्रम, विलंब और असंतोष में भी डूब सकता है।

इसलिए धनु लग्न वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपनी आध्यात्मिक दिशा बनाए रखें और अपने शुभ ग्रहों को बलवान करने का प्रयास करते रहें।

🌟 योगकारक ग्रहों की दिशा में बढ़ें

  • गुरु: आपका सबसे बड़ा संरक्षक है। धर्म, ज्ञान और शिक्षा से यह और बलवान होता है।
    • प्रतिदिन गायत्री मंत्र या गुरु स्तोत्र का जप करें।
    • पीले रंग का प्रयोग करें।
  • मंगल: साहस और आत्मविश्वास का आधार है।
    • नियमित व्यायाम और अनुशासित जीवन मंगल को संतुलित करता है।
    • मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ अत्यंत फलदायक रहेगा।
  • बुध: विवेक और संवाद का स्वामी है।
    • हरियाली, वाणी की मधुरता और स्पष्ट सोच से बुध को बल मिलता है।
    • बुधवार को तुलसी का पूजन करें।
  • सूर्य: आत्मबल और प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
    • प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठें और ध्यान लगाएँ।
    • पिता का सम्मान और सेवा सूर्य को शुभ बनाता है।

⚖️ मारक ग्रहों को संतुलित करें

  • शनि: कर्म और समय का शिक्षक है। परिश्रम और धैर्य से ही इसका प्रभाव शुभ बनता है।
    • शनिवार को शनि स्तोत्र का पाठ करें, तिल का तेल दान करें।
  • शुक्र: भोग और वैभव का ग्रह है। सादगी और संयम इसका उपचार है।
    • शुक्रवार को माता या बहनों को वस्त्र दान करें।
  • चंद्र: मन का स्वामी है। ध्यान और सात्त्विक आहार से यह स्थिर होता है।
    • सोमवार को शिव आराधना या जलाभिषेक करें।

🧭 समग्र मार्गदर्शन

  • सकारात्मक दृष्टि रखें: धनु लग्न का मूल धर्म है “सीखना और आगे बढ़ना”। हर चुनौती आपके विकास का माध्यम है।
  • गुरु के सिद्धांत अपनाएँ: ज्ञान, संयम, सेवा और धर्म – यही आपके जीवन का सच्चा आधार हैं।
  • अशुभ ग्रहों से न डरें: ये ग्रह रुकावटें नहीं, बल्कि आपकी आत्मशक्ति की परीक्षा हैं।
  • नकारात्मक दशाओं में धैर्य रखें: क्योंकि धनु लग्न के जातक का भाग्य देर से खुलता है, पर जब खुलता है, तो दीर्घकाल तक स्थिर रहता है।

“धनु लग्न जातक को जीवन में सबसे बड़ी शक्ति ‘विश्वास’ से मिलती है।
जब वे अपने धर्म, गुरु और सत्य के मार्ग पर अडिग रहते हैं —
तब वही ग्रह जो कभी बाधा बने थे, उनके उत्कर्ष का आधार बन जाते हैं।”

अंतिम संदेश

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