Gandmool Dosh Kya Hota Hai? इस विस्तृत लेख के पहले भाग में हमने इसके मूल सिद्धांतों को समझा— क्यों केवल छह नक्षत्र गंडमूल माने जाते हैं, राशि–नक्षत्र की संधि स्थिति क्यों संवेदनशील होती है, गंड (अंत) और मूल (आरम्भ) का रहस्य क्या है, अग्नि–जल के ऊर्जा-टकराव का वास्तविक अर्थ क्या है, लोगों में फैली गलत मान्यताओं की सच्चाई क्या है, और क्यों गंडमूल शांति जन्म के 28वें दिन ही करनी चाहिए।
- 👉(पहले भाग को पढ़ने के लिए क्लिक करें —– गंडमूल दोष भाग-1)👈
हमने यह भी जाना कि यह दोष किसी भी प्रकार का “मृत्यु-दोष” नहीं है— जब तक कि लग्नेश, त्रिकभाव, बालारिष्ट और अनिष्टकारी चरण एक साथ प्रबल न हों। अब इस दूसरे और अंतिम भाग (Part–2) में हम इस विषय की सबसे महत्वपूर्ण और तकनीकी चर्चा शुरू करेंगे— यानी:
- सभी 6 गंडमूल नक्षत्रों का संपूर्ण विश्लेषण
- प्रत्येक नक्षत्र के अंश, चरण, नामाक्षर, और चरणों के फल
- क्यों कुछ चरण शुभ हैं और कुछ अत्यंत कष्टकारी
- राशि और नक्षत्र की शत्रुता का सिद्धांत
- रेवती की विशेष शुभता का वास्तविक कारण
- और अंत में — पूर्ण गंडमूल शांति विधि (मंत्र, नियम, सावधानियाँ)
इस भाग का उद्देश्य है कि पाठक को ऐसा ज्ञान मिले जिसे देखकर कोई भी जन्मपत्रिका में गंडमूल दोष की पहचान भी कर सके और उसके प्रभाव को समझ भी सके। तो चलिए इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
गंडमूल नक्षत्रों का सम्पूर्ण विश्लेषण
आश्लेषा नक्षत्र — (कर्क राशि, बुध)
राशि स्वामी: चंद्र | नक्षत्र स्वामी: बुध | संबंध: शत्रुता
कर्क एक जल तत्व की राशि है—भावनात्मक, संवेदनशील और चंद्रप्रधान। उसके भीतर आश्लेषा नक्षत्र बुध का है—विश्लेषणात्मक, चतुर, मानसिक रूप से तीव्र। चंद्र और बुध की यह शत्रुता आश्लेषा को एक अत्यंत जटिल और संवेदनशील ऊर्जा बनाती है। इसीलिए आश्लेषा में जन्म लेने वाला बालक:
- मानसिक रूप से तेज
- भावनाओं में गहरा
- गुस्से और प्रतिक्रिया में तीव्र
- बचपन में स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 16°40’ – 20°00’ | डी | धनहानि, आर्थिक तनाव, परिवार में खर्च बढ़ना |
| 2nd चरण | 20°00’ – 23°20’ | डू | पुनः धनहानि, बचत न टिकना, निर्णय कमजोर |
| 3rd चरण | 23°20’ – 26°40’ | डे | माता को कष्ट, स्वास्थ्य या मानसिक परेशानियाँ |
| 4th चरण | 26°40’ – 30°00’ | डो | पिता को कष्ट, पिता को स्वास्थ्य/वित्तीय बाधाएँ |
मघा नक्षत्र — (सिंह राशि, केतु)
राशि स्वामी: सूर्य | नक्षत्र स्वामी: केतु | संबंध: शत्रुता
मघा नक्षत्र सिंह राशि का आरम्भ है, और यही कारण है कि यह नक्षत्र जीवन में “गौरव”, “पितृ-ऊर्जा”, “राजसी गुण”, और “पौरुष” से जुड़ा हुआ है। सिंह राशि सूर्य का घर — सत्ता, नेतृत्व और अहं का स्थान। लेकिन नक्षत्र स्वामी केतु है — विरक्ति, काट, तपस्या, और पूर्वजों का कारक। इसलिए मघा में जन्मे व्यक्ति की ऊर्जा दो दिशाओं में चलती है:
- एक ओर राजसी तेज (सूर्य)
- दूसरी ओर आंतरिक विरक्ति और अनासक्ति (केतु)
यही टकराव इसे शक्तिशाली भी बनाता है और संवेदनशील भी।
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 00°00’ – 03°20’ | मा | माता को कष्ट, माता का स्वास्थ्य प्रभावित |
| 2nd चरण | 03°20’ – 06°40’ | मी | पिता को भय या बाधा, पिता के कार्यों में रुकावट |
| 3rd चरण | 06°40’ – 10°00’ | मू | धन, सम्मान, सुख, विद्या — अत्यंत शुभ चरण |
| 4th चरण | 10°00’ – 13°20’ | मे | सम्मान, वैभव, राजयोग स्तर के फल, उन्नति |
ज्येष्ठा नक्षत्र — (वृश्चिक राशि, बुध)
राशि स्वामी: मंगल | नक्षत्र स्वामी: बुध | संबंध: शत्रुता
ज्येष्ठा नक्षत्र वृश्चिक राशि का सबसे गूढ़ हिस्सा है — यहाँ पर मंगल की गहराई, रहस्य, तीक्ष्णता और साहस बुध की चंचल, विश्लेषणात्मक और तीव्र मानसिक शक्ति से टकराती है। इसीलिए ज्येष्ठा नक्षत्र के जातक:
- अत्यंत बुद्धिमान
- तेज-तर्रार
- गहरी समझ वाले
- लेकिन स्वभाव में तीक्ष्ण और प्रतिक्रियाशील होते हैं।
मंगल–बुध की शत्रुता इस नक्षत्र को ऊर्जा-संवेदनशील बना देती है, और इसलिए इसके चारों चरणों में प्रभाव बहुत अलग-अलग मिलता है।
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 16°40’ – 20°00’ | नो | बड़े भाई के लिए कष्ट, भाई की सेहत/कार्य में बाधा |
| 2nd चरण | 20°00’ – 23°20’ | या | छोटे भाई/बहन के लिए कष्ट या तनाव |
| 3rd चरण | 23°20’ – 26°40’ | यी | माता के लिए कष्ट, स्वास्थ्य बाधाएँ |
| 4th चरण | 26°40’ – 30°00’ | यू | स्वयं जातक के लिए कठिनाई, स्वास्थ्य या मानसिक चुनौतियाँ |
मूल नक्षत्र — (धनु राशि, केतु)
राशि स्वामी: बृहस्पति (गुरु) | नक्षत्र स्वामी: केतु | संबंध: शत्रुता
मूल नक्षत्र धनु राशि के बिलकुल आरम्भ में स्थित है—
- धनु = गुरूत्व, धर्म, ज्ञान, विस्तार, सत्य
- केतु = मूल, काट, पूर्वज, तपस्या, रहस्य
इसलिए मूल नक्षत्र का अर्थ ही “जड़”, “मूलाधार”, “बीज”, “स्रोत” होता है। इसी वजह से कहा गया कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक जीवन में अचानक परिवर्तन, विच्छेद, और आध्यात्मिक जागरण से गुज़रता है।
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 00°00’ – 03°20’ | ये | पितृ को कष्ट, पिता के लिए बाधाएँ |
| 2nd चरण | 03°20’ – 06°40’ | यो | माता को कष्ट, माता का स्वास्थ्य प्रभावित |
| 3rd चरण | 06°40’ – 10°00’ | भा | धन का नाश, आर्थिक अस्थिरता |
| 4th चरण | 10°00’ – 13°20’ | भी | पुनः धनहानि, खर्च बढ़ना, आर्थिक चुनौतियाँ |
रेवती नक्षत्र — (मीन राशि, बुध – मित्रता)
राशि स्वामी: बृहस्पति (गुरु) | नक्षत्र स्वामी: बुध | संबंध: मित्रता
यही वह कारण है कि रेवती नक्षत्र गंडमूल सूची में आने के बावजूद सबसे सौम्य और शुभ नक्षत्रों में से एक माना गया है। मीन राशि—जल तत्व, भावनाएँ, करुणा, दया, आध्यात्मिकता बुध—बुद्धि, चतुराई, कला, सूक्ष्म समझ दोनों में मित्रता होने के कारण रेवती जातक का स्वभाव:
- दयालु
- विवेकी
- कलात्मक
- मधुर भाषी
- और तेज बुद्धि वाला होता है।
रेवती नक्षत्र को “अंत का सितारा” भी कहा जाता है— यह 27 नक्षत्रों में सबसे अंतिम है, अर्थात् पूर्णता और सौम्यता का प्रतीक।
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 16°40’ – 20°00’ | दे | राज्य सम्मान, प्रतिष्ठा, समाज में आदर |
| 2nd चरण | 20°00’ – 23°20’ | दो | मंत्रित्व/उच्च पद, प्रशासनिक या नेतृत्व सफलता |
| 3rd चरण | 23°20’ – 26°40’ | चा | धन, सुख, ऐश्वर्य, परिवार में वृद्धि और प्रसन्नता |
| 4th चरण | 26°40’ – 30°00’ | ची | स्वयं जातक के लिए कष्ट, मानसिक/शारीरिक परेशानी |
अश्विनी नक्षत्र — (मेष राशि, केतु)
राशि स्वामी: मंगल | नक्षत्र स्वामी: केतु | संबंध: शत्रुता
अश्विनी नक्षत्र 27 नक्षत्रों का आरम्भ है— यानी जन्म, गति, ऊर्जा, साहस और शुरुआत का प्रतीक। यह अश्विनीकुमारों का नक्षत्र है— जो देवताओं के वैद्य, चिकित्सक, उपचारकर्ता और जीवनदाता हैं। इसलिए यह नक्षत्र जन्मजात रूप से:
- चिकित्सकीय प्रतिभा
- उपचार की शक्ति
- तेज निर्णय
- असाधारण ऊर्जा
- और अविश्वसनीय गति देता है।
लेकिन साथ ही यह गंडमूल नक्षत्र भी है, और मेष (मंगल) तथा केतु की शत्रुता इसे अत्यंत संवेदनशील बनाती है।
| चरण | अंशमान (डिग्री) | नामाक्षर | चरण का फल |
|---|---|---|---|
| 1st चरण | 00°00’ – 03°20’ | चू | पिता को भय, पिता की सेहत/कार्य में बाधा |
| 2nd चरण | 03°20’ – 06°40’ | चे | सुख, ऐश्वर्य, पारिवारिक उन्नति, समृद्धि |
| 3rd चरण | 06°40’ – 10°00’ | चो | मंत्री पद, प्रशासनिक कार्यों में सफलता |
| 4th चरण | 10°00’ – 13°20’ | ला | राज्य सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा, उच्च पद |
क्यों इन नक्षत्रों के फल इतने भिन्न होते हैं? — राशि बनाम नक्षत्र शत्रुता का सिद्धांत
गंडमूल नक्षत्रों का फल सिर्फ इसलिए नहीं बदलता कि नक्षत्र अलग हैं — असल कारण है राशि स्वामी और नक्षत्र स्वामी के बीच छिपी हुई मित्रता–शत्रुता, और यही संबंध जातक के जीवन में शुभ–अशुभ परिणामों का असली निर्धारक बनता है। ज्योतिष में राशि की ऊर्जा व्यक्ति के शरीर, स्वभाव और जन्म समय की स्थूल प्रकृति को दिशा देती है, जबकि नक्षत्र उसकी सूक्ष्म चेतना, मन, प्रवृत्ति और कर्मफल को नियंत्रित करता है। जब दोनों की ऊर्जा एक-दूसरे के अनुकूल होती है तो फल अत्यंत शुभ मिलता है; और जब दोनों विपरीत स्वभाव के हों तो जन्मकुंडली में संघर्ष की स्थिति बन जाती है।
कर्क राशि में आने वाला आश्लेषा नक्षत्र बुध का है, जबकि कर्क का स्वामी चंद्र है। चंद्र भावनाओं का कारक और जल तत्व प्रधान है, जबकि बुध विश्लेषण, तर्क और चंचल बुद्धि का प्रतिनिधि। चंद्र और बुध दोनों स्वभाव से विपरीत हैं — यहीं से आश्लेषा के फल चुनौतीपूर्ण बन जाते हैं। सिंह राशि में मघा नक्षत्र केतु का है, और यहाँ सूर्य के तेज का सामना केतु की सूक्ष्म, कटु और विरक्त ऊर्जा से होता है। यही शत्रुता मघा के शुरुआती चरणों में माता–पिता के लिए कष्ट का कारण बनती है। वृश्चिक में ज्येष्ठा भी इसी कारण संघर्ष देती है क्योंकि मंगल और बुध की ऊर्जा एक साथ आकर मनोवैज्ञानिक दबाव और तीक्ष्णता पैदा करती है।
धनु राशि में आने वाला मूल नक्षत्र भी केतु का है जबकि धनु का स्वामी गुरु है। गुरु विस्तार देता है और केतु संकुचन — इसलिए मूल नक्षत्र जन्मजात रूप से जीवन में परिवर्तनकारी घटनाएँ लाता है। मीन राशि में आने वाला रेवती नक्षत्र बुध का है, लेकिन यहाँ बुध और गुरु मित्र हैं, इसलिए रेवती के पहले तीन चरण अत्यंत शुभ होते हैं और यही कारण है कि यह नक्षत्र गंडमूल होते हुए भी जीवन में सौम्य और सकारात्मक प्रभाव देता है। मेष में अश्विनी नक्षत्र केतु का है, और मेष का स्वामी मंगल — ये दोनों अत्यंत तीक्ष्ण ग्रह हैं और एक-दूसरे के शत्रु भी, इसलिए अश्विनी जातक प्रारंभिक जीवन में बहुत तेज ऊर्जा और असंतुलन से गुज़रते हैं।
सार यही है कि गंडमूल नक्षत्रों का वास्तविक फल नक्षत्र के स्वभाव से नहीं, बल्कि राशि और नक्षत्र स्वामी की मित्रता या शत्रुता से निर्धारित होता है। जहाँ भी विरोध होता है, वहाँ कष्ट, उतार-चढ़ाव या स्वास्थ्य समस्याएँ सामने आती हैं। और जहाँ भी सहयोग होता है, वहाँ सम्मान, समृद्धि, उच्च पद और सुदृढ़ मानसिकता मिलती है। इसी सिद्धांत को समझकर ज्योतिषी सही निर्णय कर पाता है कि जातक के जीवन में कौन सा चरण चुनौतीपूर्ण होगा और कौन सा वरदान समान।
क्या गंडमूल दोष हमेशा अशुभ होता है? — मिथक, भ्रम और वास्तविक ज्योतिषीय सत्य
गंडमूल दोष का नाम सुनते ही कई लोग डर जाते हैं, मानो यह कोई घातक या अभिशाप जैसा दोष हो। जबकि वास्तविक ज्योतिष इससे बिल्कुल अलग कहानी कहता है। गंडमूल दोष का अर्थ सिर्फ इतना है कि जन्म संधि-ऊर्जा के बीच हुआ है—जहाँ एक नक्षत्र समाप्त और दूसरा प्रारम्भ हो रहा है। यह स्थिति संवेदनशील अवश्य है, लेकिन हमेशा अशुभ हो—ऐसा नहीं है। वास्तव में कई बार यही स्थिति जातक के भीतर असाधारण क्षमताएँ, दृढ़ इच्छाशक्ति, गहरा अंतर्ज्ञान और विशिष्ट प्रतिभा भी उत्पन्न कर देती है।
सच तो यह है कि गंडमूल दोष का प्रभाव प्रत्येक जातक में अलग होता है। इसका फल निर्भर करता है—जन्म किस चरण में हुआ है, राशि–नक्षत्र स्वामी में मित्रता है या शत्रुता, लग्नेश की शक्ति क्या है, बालारिष्ट योग बन रहा है या नहीं, और जन्म समय की संपूर्ण ग्रह स्थिति कैसी है। इसलिए यह कहना कि “गंडमूल जन्म = दुर्भाग्य” — आधा ज्ञान है, और आधा ज्ञान हमेशा डर पैदा करता है। उदाहरण के तौर पर रेवती नक्षत्र के तीन चरण अत्यंत शुभ फल देते हैं, अश्विनी और मघा के मध्य के चरण सम्मान और पद भी देते हैं, और ज्येष्ठा जातक अक्सर अत्यंत प्रखर बुद्धि वाले होते हैं।
समस्या तब बढ़ती है जब संयोग एक साथ प्रबल हो जाएँ—जैसे लग्नेश दुर्बल हो, त्रिकभाव में बैठा हो, बालारिष्ट योग बन रहा हो और उसी समय जन्म गंडमूल के किसी अनिष्टकारी चरण में हुआ हो। ऐसे दुर्लभ मामलों में प्रारम्भिक जीवन में कष्ट अधिक दिख सकता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि गंडमूल शांति—जो जन्म के 28वें दिन की जाती है—इस दोष को 70–90% तक शांत कर देती है और बच्चे का जीवन सामान्य ऊर्जा प्रवाह में आ जाता है।
अतः स्पष्ट है: गंडमूल दोष हमेशा अशुभ नहीं होता। यह सिर्फ एक संवेदनशील जन्म-स्थिति है, जिसका उद्देश्य डराना नहीं, बल्कि ऊर्जा को संतुलित करना है। ज्योतिष शास्त्र भय का विज्ञान नहीं—संतुलन और समझ का विज्ञान है। जहाँ असंतुलन है, वहाँ उपाय है; और जहाँ उपाय है, वहाँ चिंता की कोई आवश्यकता नहीं।
गंडमूल शांति विधि — सही नियम और प्रक्रिया
गंडमूल दोष किसी अभिशाप का संकेत नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि जन्म उस समय हुआ जब ब्रह्मांड में ऊर्जा का परिवर्तन चल रहा था। ऐसी स्थिति में बालक की जन्म-ऊर्जा थोड़ी असंतुलित रहती है, और उसी असंतुलन को संतुलित करने के लिए गंडमूल शांति का विधान बताया गया है। शांति विधि का मूल उद्देश्य बच्चे की प्रारम्भिक जीवन-ऊर्जा को स्थिर करना, ग्रहों का संतुलन पुनः स्थापित करना और जन्म के समय उत्पन्न संवेदनशीलता को शांत करना है। यही कारण है कि यह शांति केवल उसी नक्षत्र में की जाती है जिसमें जन्म हुआ था — क्योंकि उस क्षण ब्रह्मांड की स्थिति ठीक वैसी ही पुनः बन जाती है जैसी जन्मक्षण पर थी।
गंडमूल शांति का सही समय केवल 28वें दिन माना गया है, क्योंकि चंद्रमा 27 नक्षत्रों का एक पूरा चक्र पूरा कर उसी नक्षत्र पर लौटता है। यही वह क्षण होता है जब जन्मसमय की ऊर्जा फिर से सक्रिय होती है, और उसे मंत्र, होम, दान, और देवपूजन के माध्यम से शांत किया जा सकता है। कई परिवार भावनात्मक या व्यावहारिक कारणों से जल्दी शांति करा लेते हैं — जैसे कोई बड़ा त्योहार हो, पंडित जी उपलब्ध न हों, या घर में विचार अलग हों — लेकिन ऐसी जल्दी में की गई शांति ज्योतिषीय दृष्टि से पूर्ण फल नहीं देती। जन्मदोष का स्रोत तभी शांत होता है जब शांति उसी नक्षत्र में, उसी ऊर्जा-बिंदु पर की जाए।
गंडमूल शांति में मुख्य रूप से जन्म नक्षत्र की विधिवत पूजा, नक्षत्र देवता को संकल्प, जन्मकर्ता ग्रह का शमन, महामृत्युंजय मंत्र का जप, हवन, और बालक के लिए आयु, आरोग्य तथा सौभाग्य का आशीर्वाद शामिल होता है। कुछ परंपराओं में “नक्षत्र ग्रह-शांति”, “पितरों का तर्पण” और “बालक के नाम का संस्कार” भी इसी दिन किया जाता है। नामकरण भी इसी दिन इसलिए होता है क्योंकि जब तक जन्म-दोष शांत न हो जाए, तब तक नाम का कंपन पूरी तरह शुभ प्रभाव नहीं देता।
शांति विधि करने के बाद अधिकांश नकारात्मक प्रभाव पूरी तरह शांत हो जाते हैं। बालक का स्वास्थ्य स्थिर होता है, माता–पिता पर संभावित कष्ट कम हो जाते हैं, और जीवन में आने वाली प्रारम्भिक बाधाएँ काफी हद तक समाप्त हो जाती हैं। यह केवल परंपरा नहीं — बल्कि ऊर्जा-विज्ञान है। और यही कारण है कि हजारों वर्षों से हर गंडमूल जन्मे शिशु के लिए यह विधि अनिवार्य मानी जाती है।
सार यही है: गंडमूल शांति कोई डर खत्म करने का उपाय नहीं है, बल्कि जन्म-ऊर्जा को सही दिशा में ले जाने का एक सुंदर और प्रभावशाली संस्कार है। जब यह शांति सही समय पर की जाती है, तो नक्षत्र की तीक्ष्णता समाप्त होकर बालक के जीवन में स्थिरता, सौभाग्य और संतुलन आ जाता है।
निष्कर्ष — गंडमूल दोष डर नहीं, समझ और संतुलन का विषय है।
गंडमूल दोष को लेकर समाज में जितनी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं, वास्तविक ज्योतिष उससे बिल्कुल भिन्न है। शास्त्रों ने कभी इसे अभिशाप नहीं कहा—बल्कि इसे एक संवेदनशील जन्म-स्थिति माना है, जहाँ नक्षत्र और राशि की ऊर्जा एक-दूसरे से टकरा रही होती है। इस ऊर्जा-संघर्ष का प्रभाव कभी माता पर आता है, कभी पिता पर, कभी जातक के स्वास्थ्य पर—और कभी जीवन के किसी विशेष चरण पर। लेकिन यह प्रभाव हमेशा स्थायी या घातक हो—ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।
ज्योतिष का उद्देश्य डराना नहीं, समझाना है। जहाँ ऊर्जा असंतुलित होती है, वहाँ उसे शांत करने का विधान भी होता है। यही संतुलन गंडमूल शांति से प्राप्त होता है, जो जन्म के 28वें दिन इसलिए की जाती है क्योंकि उसी दिन ब्रह्मांड में वही ऊर्जा दोबारा निर्मित होती है जो जन्म समय थी। यह शांति केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं—यह जन्म-दोष की जड़ को शांत करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
मेरे प्रिय पाठकों इस लेख में हमने देखा कि सभी गंडमूल नक्षत्र एक जैसे नहीं होते—किसी में शत्रुता अधिक, किसी में सौम्यता अधिक, तो किसी में चरण विशेष अत्यंत शुभ। यही कारण है कि वास्तविक फल व्यक्ति-व्यक्ति पर बदल जाता है। यदि लग्नेश बली हो, ग्रहों की स्थिति उचित हो और चरण शुभ हो, तो गंडमूल दोष केवल एक सामान्य ऊर्जा-संवेदनशीलता होकर रह जाता है। लेकिन यदि लग्नेश त्रिकभाव में बैठा हो, बालारिष्ट योग बन रहा हो और जन्म किसी अनिष्टकारी चरण में हुआ हो, तब यह दोष गंभीर रूप ले सकता है और विशेष सावधानी आवश्यक हो जाती है।
इसलिए Gandmool Dosh Kya Hota Hai? का निष्कर्ष यही है कि गंडमूल दोष भाग्य का भय नहीं, बल्कि जन्म-ऊर्जा का संकेत है। ज्योतिष में किसी भी दोष का उद्देश्य डर पैदा करना नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित करने का मार्ग दिखाना है। जहाँ दोष है, वहाँ उपाय है; जहाँ असंतुलन है, वहाँ शांति है; और जहाँ शांति है, वहाँ सौभाग्य स्वयं रास्ता बनाता है।
अंतिम संदेश
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