Kanya Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को अत्यंत विश्लेषणात्मक और तार्किक सोच वाली बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि कन्या लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
कन्या लग्न का महत्व
कन्या लग्न (Kanya Lagna) पृथ्वी तत्व और द्विस्वभाव का प्रतीक है। यह लग्न बुद्धिमत्ता, विश्लेषणात्मक सोच, अनुशासन और सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है। इस लग्न के जातक तार्किक, मेहनती और व्यवहारिक होते हैं। वे कार्य में पूर्णता (perfection) और विवरण पर ध्यान देने के लिए प्रसिद्ध रहते हैं।
लग्नेश बुध यहाँ प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यह ग्रह जातक को तीक्ष्ण बुद्धि, वाकपटुता और व्यापारिक समझ प्रदान करता है। कन्या लग्न वाले लोग योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने में दक्ष होते हैं और अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर पाते हैं।
हालाँकि, इस लग्न का छाया-पक्ष अत्यधिक आलोचनात्मक स्वभाव और छोटी-छोटी बातों पर चिंता करना हो सकता है। इसलिए ग्रहों का संतुलन—कौन सहयोगी है और कौन अवरोधक—समझना कन्या लग्न जातकों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
कन्या लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण
कन्या लग्न में ग्रहों का स्वभाव अन्य लग्नों से भिन्न होता है। यहाँ ग्रहों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है—योगकारक (सकारात्मक) और मारक (नकारात्मक/अवरोधक)। यह वर्गीकरण कुंडली में उनके स्वामित्व वाले भाव और उनके प्रभाव पर आधारित है।
- योगकारक ग्रह (Positive): बुध, शुक्र, गुरु और शनि
ये ग्रह जातक के जीवन में शिक्षा, धन, भाग्य, करियर और स्थिरता प्रदान करते हैं। - मारक ग्रह (Negative): मंगल, चंद्र और सूर्य
मंगल संघर्ष और दुर्घटना का कारण बन सकता है। चंद्र मानसिक अस्थिरता और व्यय बढ़ा सकता है। सूर्य अहंकार और स्वास्थ्य संबंधी तनाव ला सकता है।
कन्या लग्न में ग्रहों का विस्तृत वर्गीकरण
ग्रह | श्रेणी | कारण / भूमिका |
---|---|---|
बुध (लग्नेश) | योगकारक | बुद्धि, वाणी, व्यापार और योजना बनाने का कारक। |
शुक्र | योगकारक | द्वितीय और नवम भाव का स्वामी, धन, भाग्य और विलासिता देता है। |
गुरु (बृहस्पति) | योगकारक | चतुर्थ और सप्तम भाव का स्वामी, सुख, परिवार और साझेदारी में सहायक। |
शनि | योगकारक | पंचम और षष्ठ भाव का स्वामी, शिक्षा, संतुलन और परिश्रम का दाता। |
मंगल | मारक | तृतीय और अष्टम भाव का स्वामी, दुर्घटना, विवाद और मानसिक तनाव ला सकता है। |
चंद्र | मारक | ग्यारहवें भाव का स्वामी, इच्छाओं की पूर्ति और लाभ में अस्थिरता पैदा करता है। |
सूर्य | मारक | बारहवें भाव का स्वामी, व्यय, हानि और मानसिक अशांति का कारण। |
राहु-केतु | स्थिति अनुसार | जिन भावों में स्थित हों, उसी के अनुसार शुभ-अशुभ फल देते हैं। |
योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?
कन्या लग्न के लिए योगकारक ग्रह वे हैं जो जातक के जीवन को स्थिरता, प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाते हैं। ये ग्रह शिक्षा, करियर, धन, परिवार और भाग्य के क्षेत्रों में सहयोगी होते हैं।
1. बुध (Mercury) – लग्नेश और प्रमुख योगकारक
- कन्या लग्न का स्वामी बुध है।
- यह बुद्धि, वाणी, विश्लेषणात्मक सोच और व्यापार में सफलता प्रदान करता है।
- बलवान बुध जातक को तर्कशील, योजनाबद्ध और संवाद-कुशल बनाता है।
2. शुक्र (Venus) – धन और भाग्य का दाता
- शुक्र द्वितीय (धन) और नवम (भाग्य) भाव का स्वामी है।
- यह ग्रह धन, सुख-सुविधा, सौंदर्य और धार्मिक आस्था में वृद्धि करता है।
- मजबूत शुक्र जातक को आर्थिक स्थिरता और विलासिता प्रदान करता है।
3. गुरु (Jupiter) – परिवार और साझेदारी का सहायक
- गुरु चतुर्थ (घर, माता) और सप्तम (विवाह, साझेदारी) भाव का स्वामी है।
- इसकी शुभ स्थिति से जातक को पारिवारिक सुख, स्थायी संपत्ति और वैवाहिक सामंजस्य मिलता है।
- गुरु का प्रभाव आध्यात्मिक दृष्टि और सामाजिक आदर भी देता है।
4. शनि (Saturn) – शिक्षा और परिश्रम का कारक
- शनि पंचम (शिक्षा, संतान) और षष्ठ (सेवा, परिश्रम) भाव का स्वामी है।
- यह अनुशासन, स्थिरता और मेहनत से सफलता प्रदान करता है।
- शनि की मजबूत स्थिति जातक को शिक्षा, नौकरी और समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है।
कन्या लग्न के लिए मुख्य शुभ योग
कन्या लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह—बुध, शुक्र, गुरु और शनि—बलवान स्थिति में होते हैं या परस्पर शुभ संबंध बनाते हैं, तो कई अद्भुत राजयोग निर्मित होते हैं। ये योग जातक को धन, विद्या, करियर और समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। आइए मुख्य शुभ योगों को क्रमवार देखें:
1. भद्र योग (पंच महापुरुष योग)
- निर्माण: बुध के द्वारा।
- स्थिति: जब बुध प्रथम भाव (लग्न) में उच्च स्थिति में हो तो यह प्रबल भद्र योग बनाता है।
- फल: यह जातक को तीक्ष्ण बुद्धि, असाधारण वाणी कौशल, प्रशासनिक क्षमता और व्यापार में विलक्षण सफलता प्रदान करता है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक, विवेकपूर्ण और नेतृत्व क्षमता से युक्त होता है।
2. हंस राजयोग (पंच महापुरुष योग)
- निर्माण: गुरु के द्वारा।
- स्थिति 1: सप्तम भाव में गुरु अपनी ही राशि मीन में हों तो यह राजयोग बनता है।
- स्थिति 2: यदि गुरु चतुर्थ भाव में हों तो भी यह योग सक्रिय होता है।
- विशेष संयोग: यदि सप्तम भाव में गुरु के साथ बुध भी उपस्थित हों तो नीचभंग राजयोग का निर्माण होता है, क्योंकि यहाँ नीच राशि में स्थित बुध का नीचत्व गुरु द्वारा भंग हो जाता है।
- फल: यह योग जातक को आध्यात्मिक दृष्टि, नैतिकता, सामाजिक आदर, वैवाहिक सुख और दीर्घकालिक समृद्धि देता है।
3. शुक्र–बुध युति से त्रिविध राजयोग
जब शुक्र और बुध दशम भाव (कर्म भाव) में साथ हों और दोनों ग्रह बलवान हों, तब यह संयोजन एक साथ तीन प्रकार के राजयोगों का निर्माण करता है:
- (क) धर्म-कर्माधिपति राजयोग: दशम भाव में यह युति करियर और धर्म का मेल कराकर जातक को प्रशासनिक सफलता और उच्च पद प्रदान करती है।
- (ख) लक्ष्मी-नारायण राजयोग: शुक्र और बुध का यह शुभ मेल जातक को धन, वैभव और भौतिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण करता है।
- (ग) भद्र योग का पुनरावृत्ति: दशम भाव में बुध के मजबूत होने से भद्र योग का प्रभाव और प्रबल हो जाता है, जिससे बुद्धि, वाणी और व्यापार में अद्भुत सफलता मिलती है।
मारक ग्रह कौन होते हैं?
ज्योतिष में मारक ग्रह वे होते हैं जो जातक की प्रगति में बाधा डालते हैं और जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संघर्ष या नकारात्मकता बढ़ाते हैं। यहाँ “मारक” का अर्थ मृत्यु नहीं, बल्कि ऐसे ग्रहों से है जो शुभ फलों को कम करते हैं, मानसिक तनाव या रुकावटें उत्पन्न करते हैं। कन्या लग्न कुंडली में मुख्य मारक ग्रह मंगल, चंद्र और सूर्य हैं।
1. मंगल (Mars) – संघर्ष और अचानक संकट का कारक
- मंगल तृतीय (पराक्रम, मेहनत, प्रतिस्पर्धा) और अष्टम (अचानक घटनाएँ, गोपनीयता) भाव का स्वामी है।
- इसके अशुभ प्रभाव से जातक को अनावश्यक झगड़े, मानसिक तनाव, दुर्घटना और जोखिमपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
- दशा-अंतर्दशा में मंगल आर्थिक अस्थिरता और रिश्तों में विवाद उत्पन्न कर सकता है।
2. चंद्र (Moon) – लाभ और मानसिक शांति में बाधा
- चंद्र ग्यारहवें भाव (लाभ और इच्छाओं की पूर्ति) का स्वामी है।
- अशुभ स्थिति में यह इच्छाओं की पूर्ति में देरी और लाभ में उतार-चढ़ाव लाता है।
- चंद्र की अशांति जातक के मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है, जिससे बेचैनी और निर्णयहीनता बढ़ सकती है।
3. सूर्य (Sun) – व्यय और आत्मविश्वास में अस्थिरता
- सूर्य बारहवें भाव (व्यय, हानि, विदेश, मानसिक तनाव) का स्वामी है।
- इसके अशुभ प्रभाव से अनावश्यक खर्च, आर्थिक हानि और आत्मविश्वास में कमी हो सकती है।
- बारहवें भाव में सूर्य की दशा में जातक को नींद की समस्या और विदेश संबंधी परेशानियाँ झेलनी पड़ सकती हैं।
4. राहु–केतु – परिस्थितिजन्य अवरोधक
- राहु और केतु अपनी स्थिति और दृष्टि के आधार पर फल देते हैं।
- यदि ये मंगल, चंद्र या सूर्य के साथ जुड़कर महत्वपूर्ण भावों को प्रभावित करें तो समस्याएँ और बढ़ सकती हैं।
शुभ-अशुभ ग्रहों का जीवन पर प्रभाव
कन्या लग्न कुंडली में योगकारक (बुध, शुक्र, गुरु, शनि) जातक को स्थिरता और प्रगति की ओर ले जाते हैं, जबकि मारक (मंगल, चंद्र, सूर्य) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अवरोध और अस्थिरता लाते हैं। इनका असर अलग-अलग पहलुओं पर इस प्रकार देखा जा सकता है:
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: बुध मानसिक संतुलन और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है। गुरु और शनि दीर्घायु और मजबूत प्रतिरक्षा शक्ति प्रदान करते हैं।
- अशुभ ग्रह: मंगल दुर्घटनाएँ और चोटों का कारण बन सकता है। चंद्र मानसिक अस्थिरता और तनाव बढ़ाता है। सूर्य बारहवें भाव के स्वामी होने से अनिद्रा, थकान और अनावश्यक व्यय से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ ला सकता है।
2. करियर और धन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: बुध और शुक्र व्यापार, वाणी और रचनात्मकता में सफलता देते हैं। गुरु स्थायी आय और करियर में उन्नति कराता है। शनि अनुशासन और निरंतरता से उच्च पद दिलाता है।
- अशुभ ग्रह: मंगल करियर में विवाद या प्रतिस्पर्धा से तनाव उत्पन्न करता है। चंद्र लाभ के क्षेत्रों में अस्थिरता लाता है। सूर्य व्यय बढ़ाकर बचत में कमी कर सकता है।
3. विवाह और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: गुरु और शुक्र वैवाहिक जीवन में प्रेम, सम्मान और स्थिरता प्रदान करते हैं। शनि का संतुलित प्रभाव परिवारिक अनुशासन बनाए रखता है।
- अशुभ ग्रह: मंगल गुस्सा और मतभेद से वैवाहिक कलह उत्पन्न कर सकता है। चंद्र भावनात्मक अस्थिरता लाता है। सूर्य पारिवारिक खर्च बढ़ा सकता है और विदेश संबंधी उलझनें ला सकता है।
4. मानसिक और सामाजिक जीवन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: बुध जातक को स्पष्ट विचार और संवाद-कौशल देता है। गुरु सामाजिक आदर और नैतिक दृष्टि विकसित करता है।
- अशुभ ग्रह: चंद्र मानसिक उलझन और असुरक्षा लाता है। मंगल क्रोध और आक्रामकता को बढ़ा सकता है। सूर्य आत्मविश्वास को कभी-कभी अहंकार में बदल सकता है।
कन्या लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?
Kanya Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1
- ये कन्या लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 6(कन्या राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
- 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 6 लिखा है यानि छठी राशि और हमको पता है कि छठी राशि कन्या होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और कन्या राशि के स्वामी बुध होते हैं तो लग्नेश हुए बुध।
- लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 10H मिला है जोकि व्यक्तित्व और कर्म का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
- अब बात करते हैं 2H की जहाँ 7 नंबर लिखा है अर्थात तुला राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
- यहाँ 2H के स्वामी शुक्र है जोकि लग्नेश बुध के अतिमित्र हैं इसलिए शुक्र अति योगकारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
- 3H जिसमें लिखा है 8 नंबर जोकि होती है वृश्चिक राशि – जिसके स्वामी होते हैं मंगल देव जोकि प्रक्रामेश बने हैं और लग्नेश के शत्रु है और मंगल देव को यहाँ 8H भी मिला जोकि त्रिक भाव है; इसलिए मंगल देव शत्रु ग्रह की श्रेणी में आयेंगे।
- 4H जिसमें लिखा है 9 नंबर यानि धनु राशि जोकि बृहस्पति देव की है और इनकी मीन राशि 7H में है और ये लग्नेश के मित्र है इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
- 5H जिसमें लिखा है 10 नंबर यानि मकर राशि जिसके स्वामी हैं शनि देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; शनि देव को 6H भी मिला है जोकि जॉब और ऋण का भाव है पर वो ईष्टदेव हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
- 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
- अब बात करते हैं 11H की जिसमें लिखा है 4 नंबर यानि कर्क राशि जिसके स्वामी हैं चंद्र; तो चंद्र देव मंगल के बाद दूसरे अति मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं क्योंकि ये लग्नेश के शत्रु भी है।
- 12H में सिंह राशि है जोकि सूर्य देव की है, सूर्य देव लग्नेश हैं तो मित्र लेकिन सूर्य देव को घर अच्छा नहीं मिला; इसी कारण से वो मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारक | मारक |
बुध | चंद्र |
शुक्र | मंगल |
गुरु | सूर्य |
शनि |
चित्र – 2
हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपना विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।
👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।
तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है।; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-
योगकारक | मारक |
मंगल | बुध |
गुरु | शुक्र |
चंद्र | शनि |
राहु | सूर्य |
केतु | |
- लग्नेश बुध से बात शुरू करते हैं; बुध लग्नेश थे और त्रिक भाव में जाने के कारण उनको दोष लग गया और लग्न दोष बन गया और बुध का यहाँ केन्द्राधिपति दोष भी बन गया है।
- शुक्र भी त्रिक भाव में जाने के कारण ही मारक हुए हैं।
- मंगल अति मारक ग्रह होते हैं लेकिन वो पंचम भाव में मकर राशि में उच्च के होने के कारण योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ जाते हैं।
- गुरु लग्नेश के मित्र हैं और वो धन भाव में हैं; कोई भी विषम स्थिति नहीं बन रही है इसलिए वो योगकारक ग्रह की श्रेणी में ही रहेंगे।
- शनि भी मारक होंगे, हाँ वो अपनी राशि में हैं लेकिन त्रिक भाव में हैं; त्रिक भाव में जाने से शनि देव विपरीत राजयोग बना सकते थे लेकिन जब — तब लग्नेश बुध योगकारक होते लेकिन ऐसा नहीं हुआ इसलिए मारक हैं,,,,, हाँ हम ये ज़रूर कह सकते हैं कि शनि देव 6H के अच्छे परिणाम देंगे लेकिन अगर सूर्य से अस्त हो गए होंगे तो उसके भी अच्छे परिणाम नहीं दे पाएंगे।
- चंद्र दूसरे अति मारक ग्रह होते हैं लेकिन वो नवम भाव में वृषभ राशि में होने के कारण उच्च के हुए और योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
- सूर्य तो मारक ही होते हैं और यहाँ भी कोई विशेष परिस्थिति तो बनी नहीं इसलिए मारक ही रहेंगे लेकिन उपाय से बुध को सकारात्मक किया जाए तब सूर्य जरूर विपरीत राजयोग का फल दे सकते हैं।
- केतु मारक होंगे क्योंकि हैं ज़रूर वो मित्र की राशि में पर वृषभ राशि में केतु नीच के होते हैं और भले ही चंद्र वहाँ उच्च के हैं लेकिन छाया ग्रह का नीच भंग नहीं होता है उल्टा ये ग्रह सूर्य-चंद्र के साथ होने पर ग्रहण का निर्माण कर देते हैं जैसे यहाँ चंद्र के साथ युति होने पर चंद्र ग्रहण दोष का निर्माण किया है।
- अब प्रश्न राहु का है कि वो भी तो नीच के हैं फिर वो क्यों योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ गए और इसका जबाव मैं आपसे लेना चाहूँगा इसलिए पहले आप लेख को पूरा पढ़ो और जो मेष लग्न से पढ़ के आ रहें हैं या फिर शुरू से मेरे साथ बने हुए हैं वो ज़रूर आसानी से बता पाएंगे हालाँकि ये लेख भी पूरा पढ़ के इसका जबाव मिल जाएगा; तो मुझे कमेंट करके बतायो कि ऐसा क्यों हुआ?
राहु-केतु की गणना
- राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
- लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
- केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
- केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है;
- राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
- राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
- राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
- राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
- कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।
निष्कर्ष: कन्या लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन
कन्या लग्न कुंडली जातक को बुद्धिमत्ता, विश्लेषणात्मक सोच और अनुशासन का वरदान देती है। लग्नेश बुध यहाँ केंद्र में रहकर वाणी, तर्कशक्ति और योजनाबद्ध कार्यशैली को मजबूत करता है। जीवन की प्रगति का आधार इस बात पर निर्भर करता है कि योगकारक ग्रह कितने सशक्त हैं और मारक ग्रहों का प्रभाव किस हद तक नियंत्रित है।
योगकारक ग्रह – बुध, शुक्र, गुरु और शनि जातक को शिक्षा, धन, करियर, परिवारिक सुख और समाज में प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। इन ग्रहों को बलवान करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास, आर्थिक स्थिरता और दीर्घकालिक सफलता आती है।
दूसरी ओर, मंगल, चंद्र और सूर्य मारक ग्रह बनकर जीवन में संघर्ष, व्यय और मानसिक अस्थिरता ला सकते हैं। मंगल विवाद और अचानक संकट, चंद्र लाभ की अस्थिरता और मानसिक उतार-चढ़ाव, जबकि सूर्य अनावश्यक खर्च और आत्मविश्वास में कमी का कारण बन सकता है।
अंतिम संदेश
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