कर्क लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Kark Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को अत्यंत भावुक, संवेदनशील और दयालु स्वभाव का बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि कर्क लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

कर्क लग्न का महत्व

कर्क लग्न (Kark Lagna) जल तत्व और चर स्वभाव का प्रतीक है—भावुकता, करुणा, संरक्षण, घर-परिवार और पोषण इसकी मूल पहचान हैं। लग्नेश चंद्र मन, स्मृति और संवेदनशीलता को संचालित करता है, इसलिए कर्क लग्न जातक सहज रूप से सहृदय, रक्षक और परिवार-केन्द्रित होते हैं। इनकी अंतर्दृष्टि (intuition) प्रबल रहती है; वे संबंधों, सुरक्षा और भावनात्मक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं।

यह लग्न सहानुभूति और पोषण से खिलता है; पर छाया-पक्ष में मूड-स्विंग, अधिक संवेदनशीलता और कभी-कभी overprotective प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है। इसलिए ग्रह-संतुलन—कौन मददगार है और कौन अवरोधक—समझना यहाँ निर्णायक हो जाता है।

कर्क लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

कर्क लग्न में ग्रहों का स्वभाव अन्य लग्नों से अलग होता है। यहाँ ग्रहों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है – योगकारक (सकारात्मक), मारक (अवरोधक/नकारात्मक) और सम ग्रह (तटस्थ/मिश्रित फल देने वाले)

  • योगकारक ग्रह (Positive): चंद्र, सूर्य, मंगल और गुरु।
    ये ग्रह जातक के जीवन में आत्मविश्वास, ऊर्जा, करियर, परिवार, ज्ञान और धर्म से जुड़े शुभ परिणाम देते हैं।
  • मारक ग्रह (Negative): बुध और शनि।
    बुध तृतीय (मेहनत) और द्वादश (व्यय) भाव का स्वामी होने के कारण संघर्ष और खर्च को बढ़ाता है। शनि सप्तम (विवाह) और अष्टम (गोपनीयता/संकट) भाव का स्वामी होकर वैवाहिक जीवन और स्थिरता में बाधा डालता है।
  • सम ग्रह (Neutral): शुक्र।
    शुक्र यहाँ चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है, इसलिए इसकी स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ फल दे सकता है।

कर्क लग्न में ग्रहों का वर्गीकरण

ग्रहश्रेणीकारण / भूमिका
चंद्र (लग्नेश)योगकारकमन, परिवार और भावनात्मक संतुलन का कारक।
सूर्ययोगकारकद्वितीय भाव का स्वामी, धन और वाणी में सहयोगी।
मंगल (ईष्टदेव)योगकारकपंचम और दशम भाव का स्वामी, शिक्षा, करियर और शक्ति का दाता।
गुरु (बृहस्पति)योगकारकषष्ठ और नवम भाव का स्वामी, भाग्य और धार्मिकता का कारक।
बुधमारकतृतीय और द्वादश भाव का स्वामी, अधिक परिश्रम और व्यय का कारण।
शनिमारकसप्तम और अष्टम भाव का स्वामी, विवाह और स्थिरता में बाधा।
शुक्रसम ग्रहचतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी, शुभ या अशुभ परिणाम दे सकता है।
राहु-केतुपरिस्थितिजन्यजिन भावों से संबंधित हों, उसी के अनुसार फल देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

कर्क लग्न के लिए योगकारक ग्रह वे हैं जो जातक के जीवन में सहयोगी बनकर प्रगति, स्थिरता और सफलता प्रदान करते हैं। ये ग्रह शिक्षा, करियर, परिवार, धन और भाग्य के क्षेत्रों में शुभ परिणाम देते हैं।

1. चंद्र (Moon) – लग्नेश और प्रमुख योगकारक

  • कर्क लग्न का स्वामी चंद्र है।
  • यह मन, भावनाओं, आकर्षण और परिवार का दाता है।
  • यदि चंद्र बलवान हो तो जातक भावनात्मक रूप से स्थिर, लोकप्रिय और समाज में सम्मानित होता है।

2. सूर्य (Sun) – धन और आत्मविश्वास का कारक

  • सूर्य द्वितीय भाव का स्वामी है।
  • यह धन, वाणी और आत्मविश्वास को बल देता है।
  • बलवान सूर्य जातक को वित्तीय स्थिरता और निर्णय क्षमता प्रदान करता है।

3. मंगल (Mars) – शक्ति और करियर का दाता

  • मंगल पंचम और दशम भाव का स्वामी है।
  • पंचम भाव से शिक्षा, बुद्धि और संतान सुख, तथा दशम भाव से करियर और कर्मभूमि पर मंगल का सीधा प्रभाव होता है।
  • मंगल की मज़बूत स्थिति जातक को प्रशासनिक पद, व्यवसायिक सफलता और पराक्रम देती है।

4. गुरु (Jupiter) – भाग्य और धर्म का सहायक

  • गुरु नवम भाव का स्वामी होकर भाग्य, धर्म और उच्च ज्ञान का कारक है।
  • यदि गुरु शुभ स्थिति में हो तो जातक को धार्मिक दृष्टिकोण, सामाजिक आदर और स्थायी प्रगति प्राप्त होती है।
  • गुरु का प्रभाव जीवन में सकारात्मक दिशा और संतुलन देता है।

कर्क लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

कर्क लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह (चंद्र, सूर्य, मंगल, गुरु) आपस में शुभ संबंध बनाते हैं या बलवान स्थिति में होते हैं, तो जातक के जीवन में अनेक प्रकार के शुभ योग निर्मित होते हैं। ये योग शिक्षा, करियर, धन, संतान सुख, भाग्य और सामाजिक प्रतिष्ठा में सफलता प्रदान करते हैं।

1. धर्म-कर्माधिपति योग

  • नवम भाव का स्वामी गुरु और दशम भाव का स्वामी मंगल हैं।
  • जब गुरु और मंगल शुभ स्थिति में हों या आपस में दृष्टि संबंध बनाएं, तो जातक को उच्च पद, करियर में सफलता और समाज में आदर प्राप्त होता है।

2. चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग

  • यदि लग्नेश चंद्र और पंचम भाव का स्वामी मंगल की युति हो या दृष्टि संबंध बनायें, तो लक्ष्मी योग बनता है।
  • यह योग जातक को भौतिक सुख-सुविधाएँ, धन और विलासिता प्रदान करता है।

3. बुद्धादित्य योग

  • जब सूर्य और बुध की युति तृतीय भाव में हो, तो बुद्धादित्य योग बनता है।
  • कर्क लग्न में यह योग वाणी, बुद्धिमत्ता और व्यापारिक सफलता देता है।
  • यदि बुध कमजोर न हो तो यह योग आर्थिक और सामाजिक प्रगति का आधार बनता है और व्यक्ति संघर्ष से सबकुछ पा लेता है।

4. गजकेसरी योग

  • यदि गुरु और चंद्र केंद्र भावों में हों और एक-दूसरे से दृष्टि संबंध रखें और उनकी शुभ स्थिति हो, तो गजकेसरी योग बनता है।
  • यह योग जातक को विद्वत्ता, लोकप्रियता, सामाजिक सम्मान और स्थिरता प्रदान करता है।

5. रुचक राजयोग

  • जब मंगल (पंचम और दशम भाव का स्वामी) दशम भाव में बलवान हो, तो यह राजयोग बनता है।
  • इस योग से जातक को नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक सफलता और करियर में उच्च स्थान प्राप्त होता है।

मारक ग्रह कौन होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र में हर लग्न के लिए कुछ ग्रह ऐसे होते हैं जो जातक की प्रगति में अवरोध डालते हैं। इन्हें ही मारक ग्रह कहा जाता है।

  • यहाँ “मारक” का अर्थ मृत्यु से नहीं, बल्कि रुकावट, संघर्ष और नकारात्मक परिणाम देने से है।
  • ये ग्रह जातक के शुभ योगों की शक्ति को कमजोर कर देते हैं और सफलता के मार्ग में कठिनाइयाँ बढ़ा देते हैं।

कर्क लग्न के लिए बुध और शनि प्रमुख मारक ग्रह माने जाते हैं।

  • बुध तृतीय भाव (अत्यधिक मेहनत, छोटे भाई-बहन, संघर्ष) और द्वादश भाव (व्यय, हानि, अशांति) का स्वामी है। इस कारण बुध यहाँ अवरोधक ग्रह बन जाता है, जो जातक को अधिक संघर्ष और अनावश्यक खर्चों में उलझा सकता है।
  • शनि सप्तम भाव (विवाह, साझेदारी) और अष्टम भाव (गोपनीयता, संकट) का स्वामी है। शनि का अशुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन में तनाव, साझेदारी में हानि और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है।

1. बुध (Mercury) – संघर्ष और व्यय का कारक

  • बुध तृतीय भाव (परिश्रम और संघर्ष) तथा द्वादश भाव (व्यय, हानि, मानसिक अशांति) का स्वामी है।
  • इस कारण बुध कर्क लग्न में अवरोधक ग्रह बन जाता है।
  • इसकी दशा-अंतर्दशा में जातक को अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन फल अपेक्षा से कम मिल पाता है।
  • अनावश्यक खर्च, थकान और मानसिक चिंता बढ़ सकती है।

2. शनि (Saturn) – विवाह और स्थिरता में बाधा

  • शनि सप्तम भाव (विवाह और साझेदारी) और अष्टम भाव (गोपनीयता, संकट, दीर्घ रोग) का स्वामी है।
  • इस कारण शनि को कर्क लग्न में मारक ग्रह माना जाता है।
  • शनि के दुष्प्रभाव से वैवाहिक जीवन में अस्थिरता, साझेदारी में हानि और दीर्घकालिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
  • शनि यदि नीच राशि या पापग्रहों की दृष्टि में हो तो इसका प्रभाव और अधिक कठोर हो जाता है।

3. शुक्र – सम ग्रह

  • शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है।
  • यह ग्रह कर्क लग्न में सम ग्रह है, यानी इसकी स्थिति के आधार पर पता चलेगा कि ये ग्रह शुभ या अशुभ किस प्रकार का परिणाम देगा।
  • मजबूत और योगकारक शुक्र सुख-सुविधा और लाभ देता है, जबकि मारक शुक्र घर-परिवार और आय में अस्थिरता ला सकता है।

4. राहु-केतु – परिस्थितिजन्य अवरोधक

  • राहु और केतु जिस भाव और ग्रह से संबंधित होते हैं, उसी के अनुसार फल देते हैं।
  • यदि ये बुध या शनि के साथ जुड़कर तृतीय, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव को प्रभावित करें तो जातक के जीवन में और भी अधिक संघर्ष व अशांति ला सकते हैं।

शुभ-अशुभ ग्रहों का जीवन पर प्रभाव

कर्क लग्न कुंडली में योगकारक (सकारात्मक) ग्रह जातक के जीवन को स्थिरता और सफलता की ओर ले जाते हैं, जबकि मारक (नकारात्मक) ग्रह संघर्ष और रुकावटें उत्पन्न करते हैं। इनके प्रभाव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग ढंग से दिखाई देते हैं।

1. स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: चंद्र और गुरु मानसिक शांति, रोगों से उबरने की क्षमता और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देते हैं। मंगल जातक को शारीरिक बल और ऊर्जा देता है।
  • अशुभ ग्रह: बुध जातक को मानसिक तनाव, नींद की समस्या और अनावश्यक थकान दे सकता है। शनि दीर्घकालिक रोग, जोड़ों का दर्द और स्वास्थ्य संबंधी बाधाएँ पैदा करता है।
  • लग्नेश: किसी भी लग्न कुंडली में यदि लग्नेश बलशाली के साथ शुभ स्थिति में ना हो तो वैसे ही कुंडली आधी हो जाती है इसलिए लग्नेश का शुभ होने के साथ बलशाली होना बहुत जरूरी होता है।

2. करियर और धन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: मंगल और सूर्य जातक को करियर में प्रगति और नेतृत्व क्षमता प्रदान करते हैं। गुरु भाग्य और करियर में स्थिरता देता है।
  • अशुभ ग्रह: बुध के कारण अधिक मेहनत करने पर भी अपेक्षित फल नहीं मिलता और व्यय बढ़ता है। शनि साझेदारी और स्थायी करियर में रुकावट डाल सकता है। शुक्र की कमजोर और अशुभ स्थिति लाभ और संपत्ति में उतार-चढ़ाव ला सकती है।

3. विवाह और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: चंद्र और गुरु परिवारिक सुख, बच्चों का आशीर्वाद और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य लाते हैं। मंगल पंचम भाव से संतान सुख और प्रेम को सशक्त करता है।
  • अशुभ ग्रह: शनि सप्तम भाव का स्वामी होकर विवाह और साझेदारी में तनाव उत्पन्न करता है। बुध परिवारिक संबंधों मुख्यतः छोटे भाई-बहिन में असहमति और अनावश्यक विवाद पैदा कर सकता है।

4. मानसिक और सामाजिक जीवन पर प्रभाव

  • शुभ ग्रह: चंद्र जातक को भावुक लेकिन सहृदय बनाता है। गुरु और सूर्य समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाते हैं।
  • अशुभ ग्रह: बुध मानसिक अस्थिरता और अधिक चिंतन का कारण बनता है। शनि अवसाद, अकेलापन और सामाजिक दूरी ला सकता है। राहु-केतु भ्रम और असमंजस की स्थिति उत्पन्न करते हैं यदि मारक हों तो।

कर्क लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Kark Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये कर्क लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 4(कर्क राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 4 लिखा है यानि चौथी राशि और हमको पता है कि चौथी राशि कर्क होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और कर्क राशि के स्वामी चंद्र होते हैं तो लग्नेश हुए चंद्र।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H मिला है जोकि व्यक्तित्व का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 5 नंबर लिखा है अर्थात सिंह राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
  5. यहाँ 2H के स्वामी सूर्य है जोकि लग्नेश चंद्र के मित्र हैं इसलिए सूर्य योगकारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  6. 3H जिसमें लिखा है 6 नंबर जोकि होती है कन्या राशि – जिसके स्वामी होते हैं बुध देव और बुध देव को यहाँ 12H भी मिला है और दोनों ही घर अच्छे नहीं है और बुध लग्नेश के शत्रु भी है इसलिए बुध कर्क लग्न कुंडली में अति मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  7. 4H जिसमें लिखा है 7 नंबर यानि तुला राशि जोकि शुक्र देव की है और शुक्र देव को 11H भी मिला तो एक जगह ये सुखेश बने हैं तो एक जगह लाभेश; घर अच्छे हैं लेकिन लग्नेश के शत्रु हैं इसलिए ही सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं शुक्र देव।
  8. 5H जिसमें लिखा है 8 नंबर यानि वृश्चिक राशि जिसके स्वामी हैं मंगल देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; मंगल देव को 10H भी मिला है जोकि कर्म का भाव है और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए अति योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  9. अब बात करते हैं 6H की जिसमें लिखा है 9 नंबर यानि धनु राशि जिसके स्वामी हैं गुरु देव और इनको एक और घर मिला है 9H — तो भाग्य भाव और लग्नेश के मित्र होने के कारण गुरु देव योगकारक ग्रह की श्रेणी में आयेंगे।
  10. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  11. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  12. 7H में मकर राशि है और 8H में कुंभ राशि है जोकि दोनों ही शनि देव की राशियाँ हैं और शनि देव लग्नेश के मित्र नहीं हैं इसलिए शनि देव बुध के बाद दूसरे अति मारक ग्रह होते हैं।
  13. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकसममारक
चंद्र शुक्रबुध
सूर्य शनि
मंगल
गुरु

चित्र – 2

हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपनी विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।

👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।

तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है। तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
सूर्य चंद्र
शुक्र बुध
मंगल राहु
शनि
गुरु
केतु
  1. चंद्र लग्नेश हैं लेकिन वृश्चिक राशि में होने के कारण नीच के हुए हैं और अब मारक ग्रह हो गए; अब देखा कि कैसे लग्नेश विवशता के अधीन हुए और जब लग्नेश की किसी कारणवश अशुभ स्थिति होती है तो कुंडली का शुभ फल आधा हो जाता है इसलिए यहाँ लग्नेश का उपाय करना नितांत आवश्यक है।
  2. सूर्य लग्न में हैं उनकी अच्छी स्थिति है, वो योगकारक ही रहेंगे।
  3. बुध की कोई विशेष स्थिति तो बनी नहीं है इसलिए वो अति मारक ही रहेंगे।
  4. शुक्र की Placement अच्छी है इसलिए शुक्र योगकारक होंगे।
  5. मंगल तो ईष्टदेव हैं ही और केंद्र में भी हैं और दृष्टि संबंध से रुचक राजयोग और शनि देव का नीच भंग करके नीच भंग राजयोग का निर्माण भी कर रहे हैं तो यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चंद्र विवश हुए तो ईस्टदेव मंगल को गुस्सा आ गया और उन्होंने मोर्चा संभाल लिया इसलिए पहले अति विशिष्ट योगकारक ग्रह बने मंगल जैसे क्रिकेट में मैन ऑफ़ द मैच होता है ना कोई एक वैसे ही यहाँ मंगल हैं।
  6. गुरु योगकारक होते हैं क्योंकि उनकी Placement अच्छी है।
  7. अब सबसे बड़ा प्रश्न आपके मस्तिस्क में होगा कि शनि देव कैसे योगकारक हुए जबकि वो दूसरे अति विशिष्ट मारक ग्रह होते हैं और इसका जबाव कुछ देर पहले कुछ को समझ भी आ गया होगा लेकिन कोई ना अब सभी को समझ आएगा:-
    • शनि मारक थे और 10H मेष राशि में स्थित होने के कारण नीच के हुए और अति मारक ग्रह हो गए लेकिन मारक होते अगर इनका नीचत्व भंग ना होता तो पर यहाँ मंगल ने दृष्टि संबंध स्थापित करके शनि का नीच भंग किया है और नीच भंग राजयोग भी बनाया है।
    • इसलिए जैसे विवशता के अधीन होके लग्नेश मारक हुए, ठीक वैसे ही यहाँ शनि देव विवश होकर योगकारक हुए और नीच भंग राजयोग क्या होता है इसको हम विस्तार से जरूर समझेंगे,,, आप बस मेरे साथ बने रहिए।
  8. राहु 1H कर्क राशि, शत्रु राशि में है और शत्रु सूर्य के साथ हैं और एक मित्र बुध हैं भी तो वो भी मारक हैं इसलिए किसी भी तरह राहु मारक ही हो रहे हैं; हाँ अगर ये सांतना देना चाहें कि राहु शनि का छाया ग्रह है और शनि नीच भंग होके योगकारक हुए हैं तो इस नाते राहु भी योगकारक हुए तो ऐसा नहीं है क्योंकि सांतना बस सांतना होती है यथार्थ नहीं।
  9. केतु 7H मकर राशि में है जोकि केतु की मित्र राशि है और शनि देव योगकारक हैं और कुछ अन्य मत के अनुसार केतु को मंगल की छाया कहा जाता है और मंगल भी ईस्ट देव हैं और मंगल की चौथी दृष्टि भी 7H मकर राशि में उच्च की हो रही है और केतु पर भी तो हाँ केतु जरूर योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ रहें हैं।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: कर्क लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

कर्क लग्न कुंडली जातक को भावुकता, करुणा और पारिवारिकता का वरदान देती है। लग्नेश चंद्र के प्रभाव से ये लोग संवेदनशील, रक्षक और परिवार-केन्द्रित होते हैं। जीवन में सफलता और असफलता का संतुलन इस बात पर निर्भर करता है कि योगकारक ग्रह कितने मज़बूत हैं और मारक ग्रहों का प्रभाव किस हद तक नियंत्रित है।

योगकारक ग्रह — चंद्र, सूर्य, मंगल और गुरु — जातक के जीवन में धन, शिक्षा, करियर, भाग्य और सामाजिक सम्मान प्रदान करते हैं। इन ग्रहों को बलवान बनाने से व्यक्ति मानसिक रूप से स्थिर, आर्थिक रूप से मजबूत और जीवन में प्रगति करने वाला बनता है।

दूसरी ओर, बुध और शनि अवरोधक ग्रह बनकर संघर्ष, अधिक परिश्रम, व्यय, वैवाहिक तनाव और स्थिरता की कमी उत्पन्न करते हैं। बुध की दशा-अंतर्दशा में अनावश्यक खर्च और मानसिक चिंता बढ़ सकती है, जबकि शनि वैवाहिक जीवन, साझेदारी और करियर में रुकावटें पैदा कर सकता है। शुक्र सम ग्रह होने के कारण इसकी स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों प्रकार के परिणाम मिल सकते हैं।

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