मकर लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Makar Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न जातक को अत्यंत गंभीर, परिश्रमी और महत्वाकांक्षी बनाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि मकर लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

मकर लग्न का महत्व

Makar Lagna Kundali पृथ्वी तत्व और चर (गतिशील) स्वभाव का प्रतीक है। इस लग्न के जातक गंभीर, व्यावहारिक, मेहनती और अनुशासित होते हैं। इनका दृष्टिकोण धरातलीय होता है — वे कल्पनाओं में नहीं, बल्कि वास्तविकता में जीना पसंद करते हैं। जीवन में धीरे-धीरे परंतु स्थायी सफलता प्राप्त करना ही मकर लग्न वालों का स्वभाविक मार्ग होता है।

इस लग्न का स्वामी शनि (Saturn) है, जो कर्म, समय और धैर्य का प्रतीक है। शनि का प्रभाव मकर लग्न जातक को जिम्मेदार, योजनाबद्ध और दूरदर्शी बनाता है। वे कठिन परिश्रम से ऊँचाइयाँ प्राप्त करते हैं, और अक्सर जीवन के उत्तरार्ध में सर्वाधिक स्थिरता और सम्मान प्राप्त करते हैं।

मकर लग्न की विशेषता यह है कि यहाँ धैर्य सफलता की कुंजी बन जाता है — जल्दबाज़ी से कार्य बिगड़ सकते हैं, जबकि समय और परिश्रम से हर चीज़ को सफलता में बदला जा सकता है।

मकर लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

Makar Lagna Kundali (Capricorn Ascendant) में प्रत्येक ग्रह का प्रभाव उसके भाव स्वामित्व (house lordship) और शनि प्रधान स्वभाव के अनुसार परिवर्तित हो जाता है। यह लग्न कर्मप्रधान है, इसलिए यहाँ ग्रहों की शुभता या अशुभता सीधे इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस भाव का स्वामी हैं और किन ग्रहों के साथ युति या दृष्टि में हैं।

मकर लग्न के अनुसार ग्रहों का वर्गीकरण

ग्रहश्रेणीभाव स्वामित्वप्रभाव / भूमिका
शनि (लग्नेश, धनेश)योगकारकलग्नेश (1st) और द्वितीय भाव (2nd) का स्वामीकर्म, धैर्य, स्थिरता और आत्मविश्वास देता है। जीवन के उत्तरार्ध में सफलता।
शुक्र (ईष्टदेव, कर्मेश)योगकारकपंचम (5th) और दशम (10th) भाव का स्वामीयह धर्म-कर्माधिपति योग का निर्माण करता है। करियर, प्रेम और प्रतिष्ठा देता है।
बुध (षष्ठेश, भाग्येश)योगकारकषष्ठ (6th) और नवम (9th) भाव का स्वामीबुद्धि, भाग्य, संवाद और विदेश यात्रा का कारक। शुभ स्थिति में ज्ञान और सफलता देता है।
मंगल (सुखेश, आयेश)सम ग्रहचतुर्थ (4th) और एकादश (11th) भाव का स्वामीस्थिति अनुसार शुभ या अशुभ परिणाम देता है; संपत्ति, पराक्रम और लाभ में भूमिका।
गुरु (पराक्रमेश, व्ययेश)मारकतृतीय (3rd) और द्वादश (12th) भाव का स्वामीआलस्य, भ्रम और दिशा-भ्रष्टता ला सकता है। निर्णयों में अस्थिरता।
चंद्र (सप्तमेश)मारकसप्तम भाव (7th) का स्वामीवैवाहिक अस्थिरता, भावनात्मक असंतुलन और मानसिक तनाव उत्पन्न करता है।
सूर्य (अष्टमेश)मारकअष्टम भाव (8th) का स्वामीअचानक संकट, अहंकार और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का दाता।
राहु-केतुपरिस्थितिजन्यजिस भाव में हों, उसी के अनुसार शुभ-अशुभ परिणाम देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

Makar Lagna Kundali में योगकारक ग्रह वे होते हैं जो जातक को स्थिरता, सफलता और सम्मान की दिशा में अग्रसर करते हैं। यह लग्न स्वयं शनि प्रधान है, इसलिए मेहनत, अनुशासन और समय के प्रति निष्ठा रखने वाले जातक यहाँ श्रेष्ठ परिणाम पाते हैं। मकर लग्न के लिए मुख्य योगकारक ग्रह शनि, शुक्र और बुध हैं।

🪐 1. शनि – कर्म, अनुशासन और स्थिरता का दाता

  • शनि मकर लग्न का स्वामी (लग्नेश) होता है और द्वितीय भाव का भी अधिपति है।
  • यह ग्रह कर्म, मेहनत, धैर्य और स्थिर प्रगति का प्रतीक है।
  • बलवान शनि जातक को दीर्घकालिक सफलता, सरकारी अथवा प्रशासनिक क्षेत्र में पद-प्रतिष्ठा और गहरी समझ प्रदान करता है।
  • जीवन के प्रारंभिक चरण में यह संघर्ष देता है, परंतु उत्तरार्ध में स्थायी सफलता सुनिश्चित करता है।
  • शनि यहाँ धैर्य और समय का शिक्षक बनकर जातक को परखता है — जो धैर्य रखता है, वही ऊँचाई छूता है।

💫 2. शुक्र – कर्मफल में सौंदर्य, प्रेम और प्रतिष्ठा का संयोग

  • शुक्र पंचम (बुद्धि, संतान, प्रेम) और दशम भाव (कर्म, करियर, प्रतिष्ठा) का स्वामी होता है।
  • यह संयोजन धर्म-कर्माधिपति राजयोग बनाता है — जहाँ कर्म में प्रेम और धर्म का संतुलन दिखाई देता है।
  • शुक्र का शुभ प्रभाव व्यक्ति को सामाजिक रूप से आकर्षक, कलात्मक और सम्माननीय बनाता है।
  • बलवान शुक्र करियर में रचनात्मकता, शिक्षा में सफलता और जीवन में विलासिता प्रदान करता है।

🧠 3. बुध – विवेक, व्यापार और भाग्य का स्वामी

  • बुध षष्ठ (प्रतिस्पर्धा, प्रयास, परिश्रम) और नवम भाव (भाग्य, धर्म, विदेश) का स्वामी होता है।
  • यह ग्रह व्यक्ति में व्यावहारिक बुद्धि, तर्कशक्ति, और व्यवसायिक कुशलता प्रदान करता है।
  • शुभ बुध से व्यक्ति को शिक्षा, लेखन, वाणिज्य और संचार के क्षेत्र में प्रगति मिलती है।
  • नवम भाव का स्वामी होने से यह भाग्य को बल देता है और सही समय पर अवसर प्रदान करता है।
  • बुध की स्थिरता मकर लग्न जातक के लिए “संघर्ष को अवसर में बदलने” की क्षमता उत्पन्न करती है।

संक्षेप में – मकर लग्न के योगकारक ग्रह:

ग्रहप्रमुख क्षेत्रविशेष प्रभाव
शनिकर्म, अनुशासन, आत्मबलजीवन में स्थिरता, प्रगति और दीर्घ सफलता देता है।
शुक्रप्रेम, करियर, प्रतिष्ठाधर्म-कर्माधिपति राजयोग बनाता है, सौंदर्य और ख्याति देता है।
बुधविवेक, भाग्य, संवादव्यावसायिक बुद्धि, शिक्षा और अवसरों का मार्ग खोलता है।

मकर लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

मकर लग्न (Capricorn Ascendant) कर्मप्रधान लग्न माना जाता है। यहाँ बनने वाले योग प्रायः व्यक्ति को संघर्ष के बाद दीर्घकालिक सफलता और स्थायी प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। जब शनि, शुक्र, बुध, मंगल जैसे ग्रह बलवान स्थिति में हों या एक-दूसरे से शुभ युति बनाते हों, तब अत्यंत प्रभावशाली राजयोग और धनयोग उत्पन्न होते हैं। नीचे मकर लग्न में बनने वाले प्रमुख शुभ योगों का विश्लेषण दिया गया है —

🪐 1. शश राजयोग (Panch Mahapurush Yog)

  • निर्माण: जब लग्नेश शनि प्रथम भाव (लग्न) या दशम भाव में स्थित हो।
  • फल:
    • यह पंचमहापुरुष योगों में से एक अत्यंत बलवान योग है।
    • जातक कर्मठ, अनुशासित, गंभीर और योजनाबद्ध स्वभाव का होता है।
    • यह योग सरकारी पद, संगठनात्मक नेतृत्व, स्थायी सफलता और संपत्ति का वरदान देता है।
    • व्यक्ति “संघर्ष के बाद राजयोग” का वास्तविक उदाहरण बनता है।

💫 2. लक्ष्मी नारायण राजयोग

  • निर्माण: जब शुक्र और बुध की युति त्रिक भावों (6, 8, 12) को छोड़कर किसी भी अन्य भाव में हो, और दोनों ग्रह बलशाली हों।
  • फल:
    • यह योग धन, सौभाग्य, ज्ञान और वैभव का संयोग बनाता है।
    • जातक को व्यापार, शिक्षा, कला या प्रशासन में अत्यधिक लाभ मिलता है।
    • यह योग “भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक प्रगति” का संतुलन बनाता है।

🌸 3. मालव्य राजयोग + धर्म-कर्माधिपति राजयोग

  • निर्माण: जब शुक्र और बुध दोनों दशम भाव में हों।
  • फल:
    • यहाँ एक साथ दो विशेष योग बनते हैं —
      1. मालव्य राजयोग: शुक्र दशम भाव में होकर भौतिक सुख, करियर की चमक और आकर्षण प्रदान करता है।
      2. धर्म-कर्माधिपति राजयोग: बुध (नवम भाव का स्वामी) और शुक्र (दशम भाव का स्वामी) की युति से धर्म और कर्म का संगम बनता है, जिससे जातक कर्मयोगी बनता है।
    • ऐसा व्यक्ति समाज में अपनी योग्यता और कर्म के बल पर सम्मान प्राप्त करता है।

🧠 4. विपरीत राजयोग (बुध, सूर्य और गुरु से)

  • निर्माण:
    • बुध जब षष्ठ भाव को छोड़कर अष्टम या द्वादश भाव में हो, और लग्नेश शनि बलवान हो।
    • सूर्य जब षष्ठ या द्वादश भाव में हों और शनि का सहयोग मिले।
    • गुरु जब षष्ठ या अष्टम भाव में हों और शुभ दृष्टि या बलवान लग्नेश का साथ प्राप्त हो।
  • फल:
    • प्रारंभिक जीवन में संघर्ष, परंतु अंत में विजय और प्रसिद्धि।
    • यह योग “विपरीत परिस्थितियों को अवसर में बदलने” की क्षमता देता है।
    • ऐसा जातक कठिन समय में भी आत्मविश्वास नहीं खोता और अंततः समाज में सम्मान प्राप्त करता है।

🔱 5. रुचक राजयोग (Panch Mahapurush Yog)

  • निर्माण: जब मंगल प्रथम भाव या चतुर्थ भाव में स्थित हो।
  • फल:
    • यह पंचमहापुरुष योगों में से एक है।
    • जातक अत्यंत ऊर्जावान, पराक्रमी और नेतृत्व-गुणों से सम्पन्न होता है।
    • भूमि, संपत्ति और खेलकूद संबंधी क्षेत्रों में विशेष सफलता देता है।

🌙 6. चंद्र-मंगल लक्ष्मी राजयोग + नीच भंग राजयोग

  • निर्माण:
    • जब मंगल सप्तम भाव में हो और चंद्र द्वारा उसका नीचत्व भंग हो जाए।
  • फल:
    • यह दो योगों का संयोग बनाता है —
      1. नीच भंग राजयोग: मंगल के नीचत्व के भंग होने से संघर्ष का अंत और सफलता का प्रारंभ होता है।
      2. चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग: धन, वैभव और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।
    • यह स्थिति व्यक्ति को जीवन में उच्च आर्थिक और सामाजिक स्तर तक पहुँचा सकती है।

🧘‍♂️ 7. गुरु का हंस राजयोग + नीच भंग राजयोग

  • निर्माण:
    • जब मंगल नीच का हो और गुरु से उसका नीचत्व भंग हो।
    • साथ ही लग्नेश बलशाली होना ही चाहिए।
  • फल:
    • यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान, नीति-निपुण और दूरदर्शी बनाता है।
    • गुरु के प्रभाव से व्यक्ति को धार्मिक आचरण, ज्ञान और प्रतिष्ठा मिलती है।
    • यह योग मानसिक और भौतिक दोनों स्तरों पर उन्नति कराता है।

🔆 8. सूर्य का नीच भंग राजयोग

  • निर्माण:
    • जब सूर्य दशम भाव में नीच का हो और शनि या शुक्र के प्रभाव से उसका नीचत्व भंग हो।
  • फल:
    • यह योग विशेष रूप से “संघर्ष से उत्कर्ष” का प्रतिनिधित्व करता है।
    • ऐसा व्यक्ति करियर के आरंभिक चरण में कठिनाई झेलता है लेकिन बाद में ऊँचे पद, प्रतिष्ठा और सामाजिक मान प्राप्त करता है।

निष्कर्ष रूप में – मकर लग्न के प्रमुख शुभ योग

योग का नामनिर्माण ग्रहभाव स्थितिप्रमुख परिणाम
शश राजयोगशनि1st / 10thस्थिरता, प्रशासनिक सफलता
लक्ष्मी नारायण योगशुक्र + बुधत्रिक भावों को छोड़करधन, वैभव, भौतिक प्रगति
मालव्य + धर्म-कर्माधिपति योगशुक्र + बुधदशमकरियर में उन्नति और ख्याति
विपरीत राजयोगबुध / सूर्य / गुरु6th / 8th / 12thसंघर्ष के बाद सफलता
रुचक राजयोगमंगल1st / 4thपराक्रम और संपत्ति
चंद्र-मंगल लक्ष्मी + नीच भंग योगमंगल + चंद्रसप्तमधन, मानसिक शांति और वैभव
हंस + नीच भंग योगगुरु + मंगलकेंद्रज्ञान, धर्म और प्रतिष्ठा
सूर्य का नीच भंग योगसूर्य + शनि/शुक्रदशमकरियर में ऊँचाई और मान-सम्मान

मारक ग्रह कौन होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र में मारक ग्रह का अर्थ “मृत्यु देने वाला” नहीं, बल्कि रुकावट, भ्रम, देरी और मानसिक तनाव उत्पन्न करने वाला ग्रह होता है। मकर लग्न में जिन ग्रहों की भावाधिपत्य स्थिति असंतुलन उत्पन्न करती है, वे जातक के जीवन में संघर्ष और अस्थिरता बढ़ाते हैं। इस लग्न के लिए ऐसे ग्रह हैं — गुरु, चंद्र, और सूर्य।

🧠 1. गुरु – भ्रम, देरी और अवसरों का नुकसान

मकर लग्न में गुरु तृतीय (साहस, प्रयास) और बारहवें भाव (व्यय, हानि) का स्वामी होता है। इसलिए यह अपनी स्वाभाविक शुभता खो देता है और “विपरीत फल देने वाला ग्रह” बन जाता है।

  • फल:
    • गुरु यहाँ ज्ञान के बजाय भ्रम और अत्यधिक कल्पनाशक्ति देता है।
    • जातक मेहनती होते हुए भी अवसरों को चूक सकता है या गलत दिशा में प्रयास कर सकता है।
    • आर्थिक रूप से यह व्यय को बढ़ाता है और गलत सलाह से हानि करवा सकता है।
    • धार्मिकता तो देता है, लेकिन अंधविश्वास या दिखावे की प्रवृत्ति भी उत्पन्न कर सकता है।

🔹 यदि गुरु अत्यधिक मारक और लग्नेश भी शुभ स्थिति में ना हो तो यह व्यक्ति को आलसी, दिशाहीन और निर्णय लेने में कमजोर बना सकता है।
लेकिन यदि मंगल, शनि और शुक्र की स्थिति अच्छी हो तो जातक जीवन में सम्मान प्रदान करता है।

🌙 2. चंद्र – मानसिक अस्थिरता और संबंधों में उतार-चढ़ाव

चंद्र यहाँ सप्तम भाव का स्वामी बनता है — जो विवाह, साझेदारी और सार्वजनिक जीवन का भाव है। इसलिए इसकी स्थिति सीधी तरह से भावनात्मक स्थिरता और संबंधों को प्रभावित करती है।

  • फल:
    • यदि चंद्र शुभ स्थिति में न हो तो वैवाहिक जीवन में अस्थिरता या बार-बार मन परिवर्तन की प्रवृत्ति देता है।
    • जातक निर्णय लेने में भावनाओं से प्रभावित होता है, जिससे करियर और रिश्ते दोनों में अस्थिरता आती है।
    • चंद्र की दशा में व्यक्ति को नींद की कमी, मनोवैज्ञानिक तनाव, या सामाजिक असुरक्षा की भावना भी हो सकती है।
    • यदि यह अष्टम भाव से दृष्ट हो या पापग्रहों से पीड़ित हो, तो यह व्यक्ति को आकस्मिक हानियाँ और मानसिक संघर्ष देता है।

🔹 यदि चंद्र मंगल या शनि से दृष्ट या युत होकर बलवान हो जाए, तो यह मानसिक संतुलन देता है और व्यक्ति भावनाओं के साथ व्यावहारिकता भी सीख जाता है।

☀️ 3. सूर्य – अहंकार, संघर्ष और अचानक संकट

मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव का स्वामी होता है, जो गुप्त भाव, आकस्मिकता, और परिवर्तन से संबंधित है। इसलिए सूर्य यहाँ स्वभावतः अस्थिरता, स्वास्थ्य संबंधी समस्या या अहंकारजन्य तनाव ला सकता है।

  • फल:
    • यह जातक में आत्मसम्मान की अधिकता या अनुशासन के प्रति विद्रोह की प्रवृत्ति पैदा कर सकता है।
    • यदि सूर्य कमजोर हो तो व्यक्ति को आकस्मिक बीमारियाँ, सरदर्द, या सरकारी मामलों में अड़चनें मिल सकती हैं।
    • वैवाहिक संबंधों या साझेदारी में अहंकार और टकराव की प्रवृत्ति बढ़ा सकता है।
    • यदि सूर्य दशम भाव में नीच स्थिति में हो, तो जीवन में अचानक उतार-चढ़ाव या पिता से मतभेद दे सकता है।
    • यदि लग्नेश कमजोर हो और सूर्य मारक हो तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी रहती ही रहती है।

⚖️ समग्र दृष्टि

ग्रहमारक कारणपरिणाम
गुरुतृतीय व द्वादश भाव का स्वामीभ्रम, गलत सलाह, अवसरों की हानि
चंद्रसप्तम भाव का स्वामीभावनात्मक अस्थिरता, वैवाहिक तनाव
सूर्यअष्टम भाव का स्वामीअहंकार, स्वास्थ्य समस्या, अचानक संकट

मकर लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Makar Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये मकर लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 10(मकर राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम आगे के लेखों में बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 10 लिखा है यानि दशमी राशि और हमको पता है कि दशमी राशि मकर होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और मकर राशि के स्वामी शनि होते हैं तो लग्नेश हुए शनि।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 2H मिला है जोकि व्यक्तित्व और धन का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 11 नंबर लिखा है अर्थात कुंभ राशि जोकि शनि देव की है और शनि तो लग्नेश हैं जो योगकारक हैं।
  5. 3H जिसमें लिखा है 12 नंबर जोकि होती है मीन राशि – जिसके स्वामी होते हैं गुरु देव जोकि प्रक्रामेश बने हैं और व्ययेश भी बने हैं क्योंकि उनकी धनु राशि 12H में हैं तथा लग्नेश के शत्रु है इसलिए गुरु देव इस कुंडली में मारक ग्रह होते हैं।
  6. 4H जिसमें लिखा है 1 नंबर यानि मेष राशि जोकि मंगल देव की है और इनकी वृश्चिक राशि 11H में है, तो मंगल देव लग्नेश शनि के हैं तो शत्रु लेकिन इनको कुंडली के दो बहुत अच्छे घर मिले हैं और इसी कारण से मंगल मकर लग्न कुंडली में सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  7. 5H जिसमें लिखा है 2 नंबर यानि वृषभ राशि जिसके स्वामी हैं शुक्र देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; शुक्र देव को 10H भी मिला है जोकि कर्म का भाव है और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए अति योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  8. अब बात करते हैं 6H की जिसमें लिखा है 3 नंबर यानि मिथुन राशि जिसके स्वामी हैं बुध; इनकी कन्या राशि नवम भाव में है; एक जगह ये ऋणेश हैं तो दूसरी जगह भाग्येश और लग्नेश के मित्र भी हैं और भाग्य का भाव मिलने के कारण बुध देव अति योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ जाते हैं।
  9. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  10. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  11. 7H जो मिला है चंद्र देव को और ये घर विवाह, साझेदारी, रोजमर्रा के कार्य और आय आदि का है; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा। यहाँ चंद्र देव लग्नेश शनि के शत्रु हैं इसलिए चंद्र देव मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  12. 8H में सिंह राशि है जोकि सूर्य की है और वो अष्टमेश हैं तथा लग्नेश के शत्रु भी है इसलिए सूर्य देव मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  13. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकसममारक
शनि मंगल गुरु
शुक्र चंद्र
बुध सूर्य

चित्र – 2

हमारे इस लेख में एक पाठक द्वारा साझा की गई जन्म-कुंडली का विश्लेषण शामिल किया गया है। यह तभी संभव हुआ क्योंकि उन्होंने कमेंट्स में अपनी जन्म-तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी थी।यदि आप भी अपनी जन्म-कुंडली की चर्चा हमारे आगामी लेखों में करवाना चाहते हैं, तो आप कमेंट सेक्शन में अपना विवरण (जन्म-तिथि, समय और स्थान) अवश्य लिखें।

👉 ध्यान रहे कि केवल उन्हीं कुंडलियों का उल्लेख किया जाएगा जो लेख के विषय से संबंधित हों और जिनसे पाठकों को कुछ नया सीखने या समझने को मिले।

तो, यदि आपका चार्ट किसी लेख में फिट बैठता है, तो आने वाले समय में हम आपकी कुंडली की भी चर्चा जरूर करेंगे — ठीक उसी तरह जैसे इस लेख में की गई है।; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
शुक्र शनि
बुध गुरु
मंगल
चंद्र
सूर्य
राहु
केतु
  1. लग्नेश सदा योगकारक ही होता है और वो जहाँ भी जाता है कुछ ना कुछ व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य भी वही होता है जैसे यहाँ लग्नेश अपने से बाहरवें में गए हैं जोकि व्यय का है अर्थात व्यक्ति का जीवन ख़ुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए समर्पित होगा; उसका सारा कर्म चाहते हुए या ना चाहते हुए परोपकारिता के लिए ही है लेकिन हमें यहाँ फलादेश नहीं करना है, अब लग्नेश जब त्रिक भाव में गए तो मजबूरी में मारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
  2. गुरु तो वैसे भी मारक होते हैं और यहाँ भी कोई विशेष स्थिति तो बनी नहीं जिससे वो योगकारक हो जाये इसलिए मारक ही हैं।
  3. मंगल सम ग्रह होते हैं लेकिन मंगल त्रिक भाव में जाने से मारक ग्रह हो गए।
  4. शुक्र कन्या में नीच के ज़रूर हैं लेकिन बुध से उनका नीच भंग हुआ है और नीच भंग राजयोग का निर्माण हुआ है; इसी कारण शुक्र योगकारक हैं, अगर बुध ना होते तो लग्नेश की तरह ईष्टदेव भी मारक हो जाते लेकिन शुक्र है कि राजयोग बन गया।
  5. बुध तो भाग्येश है और बैठे भी भाग्य भाव में हैं और ईष्टदेव शुक्र के साथ हैं इसी कारण नीच भंग राजयोग तो बन ही रहा है लेकिन साथ-साथ लक्ष्मी नारायण राजयोग भी बन रहा है इसलिए बुध यहाँ प्रथम अति योगकारक ग्रह हैं।
  6. चन्द्र ने यहाँ अष्टम भाव में जाके अच्छा नहीं किया; मारक ग्रह तो हुए ही हैं चंद्र लेकिन साथ-साथ सूर्य के साथ युति होने से अमावस्या दोष भी बना दिया और केतु के साथ होने से चंद्र ग्रहण दोष का भी निर्माण कर दिया, क्या यह स्थिति कुछ ज़्यादा ही विषम नहीं हो गई! आप बताओ?
  7. अब सूर्य अपनी ही राशि में अष्टम भाव में हैं माना कि उम्र बढ़ा देंगे लेकिन कष्ट भी तो बराबर आयेंगे; योगकारक ग्रह का तो पूरी तरह योगकारक होना चाहिए।
  8. राहु माना कि मित्र की राशि में हैं लेकिन जब मित्र ही मारक हो गए तो अब राहु भी योगकारक नहीं रहे।
  9. केतु तो मारक ही नहीं महामारक ग्रह हैं क्योंकि उन्होंने अंगारक दोष भी बनाया है, सूर्य ग्रहण दोष भी और चंद्र ग्रहण दोष भी तो केतु तो अति मारक ग्रह हैं।
  10. फलकथन के ऊपर फिर कभी बात करेंगे यदि आप सब लोग कहेंगे तो; फ़िलहाल हमने ये समझा कि कैसे कोई ग्रह योगकारक हुआ और कैसे मारक।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • केतु को 2H और 8H में किसी भी दशा में होने के बावजूद शुभ फल देना वाला माना जाता है मुख्यतः अष्टम भाव में विशेषकर शुभफलदायी होता ही है अगर व्यक्ति आध्यात्मिक है तो जातक को विशेष सफलता मिलती है;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: मकर लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

Makar Lagna Kundali का मूल सिद्धांत है — “कर्म ही धर्म है।”
इस लग्न में सफलता कभी अचानक नहीं आती, बल्कि समय, अनुशासन और निरंतर परिश्रम से अर्जित होती है। यहाँ ग्रह व्यक्ति की परीक्षा लेते हैं, और जो धैर्य रखता है — वही अंततः विजेता बनता है।

मकर लग्न जातक का जीवन साधारण नहीं होता — वह संघर्ष से उत्कृष्टता की यात्रा है। शनि उन्हें धैर्य सिखाता है, शुक्र सौंदर्य और संतुलन देता है, और बुध बुद्धि और संवाद प्रदान करता है। जब ये तीनों साथ सक्रिय होते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में धीमी पर स्थायी सफलता सुनिश्चित होती है। “मकर लग्न वालों के लिए सफलता देर से आती है, पर जब आती है — तो जीवनभर रहती है।”

जीवन दिशा और संतुलन के लिए उपाय

  1. शनि की आराधना: शनिवार को तेल का दीपक जलाएँ, कर्म में ईमानदारी रखें, और श्रमिकों का सम्मान करें।
  2. शुक्र का सशक्तिकरण: शुक्रवार को सफेद वस्त्र, चंदन और सुगंध का उपयोग करें; स्त्रियों का आदर करें।
  3. बुध का संतुलन: बुधवार को हरे वस्त्र धारण करें, तुलसी का पौधा लगाएँ, और मीठे शब्दों का प्रयोग करें तथा किन्नर को हमेशा कुछ भेंट दें।
  4. मारक ग्रहों का शमन:
    • रविवार को सूर्य को अर्घ्य दें।
    • सोमवार को शिव पूजा करें।
    • बृहस्पतिवार को हल्दी और पीले वस्त्र का दान करें।

मारक ग्रहों की स्थिति हमको परखती है, सज़ा नहीं देती।
जब हम जीवन में संयम, सत्य और सेवा का मार्ग अपनाते हैं, तो वही ग्रह हमारे लिए वरदान बन जाते हैं।

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