Mesh Lagna Kundali ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न साहस, ऊर्जा और नेतृत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि मेष लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢
मेष लग्न का महत्व
मेष लग्न (Aries Ascendant) ज्योतिष में पहला लग्न माना जाता है और इसे प्रारंभ, ऊर्जा और साहस का प्रतीक कहा गया है। मेष लग्न वाले जातक प्रायः उत्साही, आत्मविश्वासी और कर्मशील होते हैं। इनका स्वभाव नेतृत्वकारी होता है और यह लोग हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं।
लग्नेश मंगल ग्रह होने के कारण मेष लग्न जातक में तेज़ी, पराक्रम और प्रतिस्पर्धात्मक ऊर्जा स्वाभाविक रूप से देखने को मिलती है। मंगल एक अग्नि तत्व का ग्रह है, इसलिए इस लग्न में जन्मे जातक प्रायः साहसी और जोखिम लेने वाले होते हैं। जीवन में संघर्ष इनके लिए नया नहीं होता, लेकिन इनकी सबसे बड़ी शक्ति यह है कि ये संघर्षों से घबराते नहीं, बल्कि और अधिक सशक्त बनकर सामने आते हैं।
मेष लग्न की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय को अत्यधिक महत्व देता है। ये लोग किसी के अधीन रहना पसंद नहीं करते और अपनी राह स्वयं बनाते हैं। यदि कुंडली में शुभ योग बने हों तो जातक नेतृत्व, प्रशासन, सेना, खेलकूद या किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। वहीं, यदि अशुभ ग्रह प्रभावी हों तो इन्हें क्रोध, अधीरता और दुर्घटनाओं से भी सावधान रहना चाहिए।
मेष लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण
किसी भी लग्न में ग्रहों का शुभ-अशुभ स्वभाव स्थायी नहीं होता, बल्कि वह लग्न के आधार पर बदल जाता है। मेष लग्न में भी सभी नौ ग्रह अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं। कुछ ग्रह योगकारक बनकर जीवन में सफलता और उन्नति प्रदान करते हैं, तो कुछ मारक बनकर कठिनाइयाँ और बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
मेष लग्न का स्वामी मंगल है, इसलिए मंगल इस लग्न के लिए अत्यंत प्रभावी ग्रह माना जाता है। साथ ही, सूर्य, गुरु और चंद्र सामान्यतः शुभ भूमिका निभाते हैं। वहीं, शुक्र और शनि को अशुभ ग्रह माना जाता है क्योंकि ये क्रमशः 7वें और 10वें भाव से मारक और अशुभ प्रभाव ला सकते हैं। बुध और राहु-केतु परिस्थितियों के अनुसार फल देते हैं। इस वर्गीकरण को समझना आवश्यक है क्योंकि यही यह तय करता है कि जातक के जीवन में कौन-से ग्रह सहयोगी होंगे और कौन-से ग्रह बाधक।
मेष लग्न में ग्रहों का सामान्य वर्गीकरण:
| ग्रह | वर्गीकरण | कारण / भूमिका |
|---|---|---|
| मंगल (लग्नेश) | शुभ एवं बलवान | साहस, ऊर्जा और पराक्रम प्रदान करता है। |
| सूर्य (ईष्ट देव) | शुभ | 5वें भाव का स्वामी होकर विद्या, संतान और बुद्धि का दाता। |
| गुरु (भाग्येश) | शुभ | 9वें भाव का स्वामी होकर भाग्य और धर्म का प्रतीक। |
| चंद्र (सुखेश) | शुभ | 4वें भाव से सुख, मातृसुख और मानसिक शांति का दाता। |
| शुक्र (सप्तमेश और धनेश) | अशुभ / मारक | 7वें भाव से संबंध होने पर विवाह में बाधा, साझेदारी में समस्याएँ। |
| शनि (कर्मेश और लाभेश) | सम | 10वें व 11वें भाव से संबंध, करियर में विलंब। |
| बुध (पराक्रमेश और षष्ठेस) | मारक | संघर्ष और ऋण का कारण। |
| राहु-केतु | विश्लेषण पश्चात निर्धारण | जिन राशि में स्थित हों, उसी के अनुसार परिणाम देते हैं। |
इस प्रकार, मेष लग्न में ग्रहों की भूमिका को समझकर ही जातक का संपूर्ण जीवन-विश्लेषण किया जा सकता है। शुभ ग्रहों को बलवान करने और अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने से जीवन में संतुलन और सफलता प्राप्त की जा सकती है।
योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?
ज्योतिष शास्त्र में योगकारक ग्रह वह कहलाते हैं जो जातक की कुंडली में शुभ भावों के स्वामी होकर या शुभ ग्रहों से युति/दृष्टि प्राप्त कर अत्यधिक सकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं। ये ग्रह जीवन में धन, वैभव, सुख-सुविधा, पद-प्रतिष्ठा और भाग्यवृद्धि के योग निर्मित करते हैं। एक बार ग्रह योगकारक की श्रेणी में आ जाए तो वो दशा-गोचर या किसी भी परस्थिति में योगकारक ही रहता है।
मेष लग्न कुंडली में सबसे प्रमुख योगकारक ग्रह सूर्य और गुरु माने जाते हैं। सूर्य पंचम भाव का स्वामी होकर विद्या, संतान सुख और बुद्धि का प्रतीक है। गुरु नवम भाव का स्वामी होकर भाग्य, धर्म और उच्च ज्ञान का दाता है। इन दोनों की स्थिति यदि मजबूत हो तो जातक को समाज में आदर, उच्च पद और जीवनभर शुभ अवसर प्राप्त होते हैं।
इसके अतिरिक्त, चंद्रमा भी चतुर्थ भाव का स्वामी होकर सुख, मातृसुख, वाहन और संपत्ति का कारक बन जाता है। यदि चंद्रमा शुभ भाव में स्थित हो और पापग्रहों से मुक्त हो तो जातक को मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होती है।
मेष लग्न के प्रमुख योगकारक ग्रह:
- सूर्य (पंचम भाव का स्वामी): शिक्षा, संतान और नेतृत्व क्षमता देता है।
- गुरु (नवम भाव का स्वामी): भाग्य, धर्म और सामाजिक सम्मान प्रदान करता है।
- चंद्रमा (चतुर्थ भाव का स्वामी): सुख-संपत्ति और मानसिक संतुलन देता है।
- मंगल (लग्नेश): स्वयं जातक को शक्ति और साहस प्रदान करता है, इसलिए योगकारक की श्रेणी में विशेष महत्व रखता है।
👉 जब ये ग्रह एक-दूसरे से शुभ दृष्टि या युति करते हैं, तो जातक के जीवन में राजयोग, धनयोग और अन्य शुभ संयोजन बनते हैं।
मेष लग्न के लिए मुख्य शुभ योग
मेष लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह अनुकूल स्थिति में होते हैं या आपस में शुभ युति/दृष्टि बनाते हैं, तब जातक के जीवन में अनेक प्रकार के शुभ योग बनते हैं। ये योग व्यक्ति को उन्नति, सफलता और मान-सम्मान की ओर अग्रसर करते हैं। आइए मेष लग्न के लिए प्रमुख शुभ योगों को समझते हैं:
1. राजयोग
यदि पंचम भाव के स्वामी सूर्य और नवम भाव के स्वामी गुरु का परस्पर संबंध बनता है, तो जातक को राजयोग की प्राप्ति होती है। यह योग जातक को नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक पद और समाज में प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
2. धनयोग
जब द्वितीय भाव (धन का भाव) का स्वामी और एकादश भाव (लाभ का भाव) का स्वामी शुभ संबंध बनाते हैं, तो जातक के जीवन में धनयोग उत्पन्न होता है। विशेषकर गुरु या चंद्र यदि इन भावों से जुड़ जाएँ और शुक्र-शनि योगकारक हों तो आर्थिक स्थिरता और वैभव मिलता है।
3. गजकेसरी योग
यदि चंद्रमा और गुरु का केंद्र में संबंध बने तो गजकेसरी योग बनता है। यह योग मेष लग्न जातक को विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता और समाज में उच्च स्थान प्रदान करता है। साथ ही व्यक्ति का व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावशाली बनता है।
4. धर्म-कर्माधिपति योग
नवम भाव का स्वामी गुरु और दशम भाव का स्वामी शनि जब शुभ दृष्टि या युति में हों, तो यह योग जातक को कार्यक्षेत्र में अपार सफलता दिलाता है; विशेषतः तब जब मंगल-गुरु-शनि ये तीनों दशम भाव में हों। ऐसे व्यक्ति जीवन में उच्च पद, समाजसेवा और धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं।
5. मंगल से बने शुभ योग
क्योंकि मंगल मेष लग्न का स्वामी है, यदि मंगल उच्च का हो (मकर में) या शुभ ग्रहों से युति करता हो तो जातक में साहस, पराक्रम और प्रशासनिक क्षमता का विकास होता है। यह योग व्यक्ति को सैन्य, पुलिस, खेलकूद या किसी प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्र में सफलता दिलाता है।
संक्षेप में:
- सूर्य और गुरु का संबंध → राजयोग।
- द्वितीय व एकादश भाव का मेल → धनयोग।
- गुरु + चंद्रमा → गजकेसरी योग।
- गुरु + शनि (शुभ स्थिति में) → धर्म-कर्माधिपति योग।
- मंगल की उच्च स्थिति → शक्ति और पराक्रम का योग।
मारक ग्रह कौन होते हैं?
ज्योतिष शास्त्र में “मारक ग्रह” वे कहलाते हैं जो व्यक्ति के जीवन में अशुभ परिणाम अथवा गंभीर संकट देने की क्षमता रखते हैं। ये ग्रह जातक की कुंडली में जिस भी भावों से संबंध रखते हैं उन भावों से संबंधित अशुभ परिणाम ही देते हैं।
मारक ग्रह हमेशा बाधा का कारण ही नहीं बनते, बल्कि ये जीवन में बड़ी बीमारियाँ, दुर्घटनाएँ, आर्थिक हानि या पारिवारिक संकट भी दे सकते हैं। इस कारण मारक ग्रहों को समझना और उनके प्रभाव को नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
मेष लग्न कुंडली में प्रमुख मारक ग्रह
मेष लग्न में द्वितीय और सप्तम भाव क्रमशः वृषभ (शुक्र का स्वामित्व) और तुला (शुक्र का ही स्वामित्व) में आते हैं। इस कारण से शुक्र ग्रह इस लग्न के लिए प्रमुख मारक माना जाता है। इसके अतिरिक्त, अन्य ग्रह भी परिस्थितियों और दशा-अंतर्दशा के अनुसार मारक प्रभाव दे सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं –
1. शुक्र (Venus) – मुख्य मारक ग्रह
- मेष लग्न में द्वितीय और सप्तम भाव, दोनों ही शुक्र के अधीन होते हैं।
- द्वितीय भाव धन भाव तथा सप्तम भाव साझेदारी का भाव कहलाता है, इस कारण शुक्र का प्रभाव जातक की आर्थिक स्थिति और दाम्पत्य जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
2. शनि (Saturn) – शर्तीय मारक/योगकारक
- शनि मेष लग्न में दशम और एकादश भाव का स्वामी होता है।
- यदि शनि त्रिक भाव में स्थित हो या नीच का हो और नीच भंग ना हो अथवा मारक शुक्र के साथ मिलकर संबंध बनाए, तो यह भी बहुत अशुभ प्रभाव देता है।
- शनि की दशा में करियर में ठहराव, स्वास्थ्य संकट और जीवन में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
3. बुध (Mercury) – उप-मारक ग्रह
- बुध मेष लग्न में तृतीय और षष्ठ भाव का स्वामी है।
- बुध मिथुन राशि में ना हो और विपरीत राजयोग ना बनाये तो यह अशुभ परिणाम ही देता है।
4. राहु और केतु – परिस्थितिजन्य मारक/योगकारक
- राहु और केतु का प्रभाव सदैव जिस भाव और ग्रह से जुड़ता है, उसी के अनुसार परिणाम देता है।
- यदि राहु-केतु मारक तो ग़लत परिणाम और योगकारक तो अच्छे परिणाम देते हैं।
शुभ-अशुभ ग्रहों का जीवन पर प्रभाव
मेष लग्न कुंडली में ग्रहों का प्रभाव जातक के जीवन के हर क्षेत्र पर गहरा असर डालता है। जहाँ शुभ ग्रह (सूर्य, गुरु, चंद्र, मंगल) जातक को सफलता, उन्नति और सुख-संपत्ति प्रदान करते हैं, वहीं अशुभ और मारक ग्रह (शुक्र, बुध) जीवन में कठिनाइयाँ और संघर्ष लेकर आते हैं। इस कारण, ग्रहों के स्वभाव और उनकी स्थिति को समझना अत्यंत आवश्यक है।
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: मंगल और सूर्य जातक को अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा और कार्यक्षमता प्रदान करते हैं।
- अशुभ ग्रह: शनि और राहु-केतु यदि अष्टम या द्वादश भाव में हों तो लंबे समय तक चलने वाली बीमारियाँ, दुर्घटना या शारीरिक कष्ट दे सकते हैं।
2. करियर और धन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: गुरु और सूर्य के अनुकूल होने पर जातक को सरकारी नौकरी, उच्च प्रशासनिक पद और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
- अशुभ ग्रह: शुक्र या शनि की अशुभ स्थिति करियर में अवरोध, आर्थिक हानि और भाग्यहीनता ला सकती है।
3. विवाह और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: चंद्रमा और गुरु की शुभ दृष्टि होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य, संतान सुख और पारिवारिक सहयोग मिलता है।
- अशुभ ग्रह: सप्तम भाव का स्वामी शुक्र यदि पापग्रहों से पीड़ित हो या ना भी हो तो विवाह में विलंब, वैवाहिक कलह और अलगाव तक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
4. सामाजिक और मानसिक जीवन पर प्रभाव
- शुभ ग्रह: मंगल और सूर्य जातक को नेतृत्व क्षमता और समाज में सम्मान दिलाते हैं।
- अशुभ ग्रह: शुक्र और बुध पारिवारिक अशांति, भ्रम और वैवाहिक विवाद का कारण बन सकते हैं।
मेष लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?
Mesh Lagna Kundali का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1
- ये मेष लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 1(मेष राशि) है; यहाँ चित्र – 1 में आपको समझाने हेतु क्रमशः 1H, 2H, 3H……. 12H लिखा है लेकिन कहीं कभी ऐसा लिखा नहीं होता है और जब हम वृषभ लग्न कुंडली की बात करेंगे तो हम भी नहीं लिखेंगे। लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
- 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 1 लिखा है यानि पहली राशि और हमको पता है कि पहली राशि मेष होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और मेष राशि के स्वामी मंगल होते हैं तो लग्नेश हुए मंगल।
- लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 8H मिला है जोकि व्यक्तित्व और मृत्यु का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
- अब बात करते हैं 2H की जहाँ 2 नंबर लिखा है अर्थात वृषभ राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
- यहाँ 2H और 7H के स्वामी शुक्र हैं और वो लग्नेश मंगल के शत्रु है, इसलिए शुक्र मारक की श्रेणी में आते हैं; अगर शुक्र स्वराशि (अपनी ही राशि) हो जाएँ तो योगकारक हो जाते हैं। यहाँ मेष लग्न में शुक्र यदि उच्च के भी हो जायें या वो नीच में होने के बाद उनका नीच भंग होके नीच भंग राजयोग भी बन जाये तो भी कुछ ज़्यादा अच्छा फल प्राप्त नहीं होता है; स्वराशि होने पर फिर भी अच्छा फल मिलता है।
- 3H जिसमें लिखा है 3 नंबर जोकि होती है मिथुन राशि – जिसके स्वामी होते हैं बुध देव और बुध देव को मेष लग्न में दो घर मिले हैं 3H और 6H; कुछ ज़्यादा अच्छे घर मंगल देव ने नहीं दिए बुध देव को, एक संघर्ष वाला घर है तो एक कर्ज़ का और बुध – मंगल के शत्रु भी हैं इसलिए बुध मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- 4H जिसमें लिखा है 4 नंबर यानि कर्क राशि जिसके स्वामी हैं चन्द्र देव, जो बने हैं सुखेश और मंगल के मित्र भी हैं। चंद्र देव को एक बहुत अच्छा घर मिला है और वो लग्नेश मंगल के मित्र भी हैं इसलिए चंद्र देव योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- 5H जिसमें लिखा है 5 नंबर यानि सिंह राशि जिसके स्वामी हैं सूर्य देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; सूर्य देव को एक बहुत अच्छा घर मिला है और वो लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- 6H-7H-8H की हम बात कर चुके हैं इसलिए अब हम बात करेंगे 9H की जिसमें लिखा है 9 नंबर जोकि होती है धनु राशि जिसके स्वामी हैं गुरु (बृहस्पति) देव; इनको एक और घर मिला है 12H — देव गुरु बृहस्पति को एक बहुत अच्छा घर मिला है जोकि 9H है क्योंकि ये भाग्य का भाव है, गुरु देव इस कुंडली में भाग्येश हैं और लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए गुरु भी योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
- 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
- अब बात करते हैं 10H की जिसमें लिखा है 10 नंबर यानि मकर राशि जिसके स्वामी हैं शनि देव और इनको एक और घर मिला है 11H — तो शनि देव हैं तो लग्नेश के शत्रु लेकिन इनको कुंडली के दो मुख्य घर मिले हैं एक जगह तो ये कर्मेश बनें हैं और दूसरी जगह लाभेश, इसलिए ही ये सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- सम ग्रह = जब किसी व्यक्ति की कुंडली होगी तो सम ग्रह का निर्धारण हो जाएगा कि ये सम ग्रह शनि देव योगकारक होंगे या मारक की श्रेणी में आयेंगे। योगकारक हुए तो परिणाम जरूर धीरे हो सकता है लेकिन अंततः परिणाम अच्छा ही होता है; वहीं अगर शनि देव मारक हुए तो परिणाम भी बहुत धीरे मिलता है और जितना किया जाये उसका कुछ कम ही परिणाम मिलता है। योगकारक होने पर व्यक्ति हार नहीं मानता और धीरे-धीरे ही सही पर लगा रहता है लेकिन मारक होने पर व्यक्ति हताश और निराश हो जाता है।
- अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
| योगकारक | सम | मारक |
| मंगल | शनि | शुक्र |
| चंद्र | बुध | |
| सूर्य | ||
| गुरु |
चित्र – 2
ये एक व्यक्ति ने कमेंट करके अपने जन्म का विवरण भेजा और आप भी भेज सकते हो; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-
| योगकारक | मारक |
| मंगल | शुक्र |
| सूर्य | बुध |
| गुरु | चंद्र |
| शनि | केतु |
| राहु |
- मंगल तो हैं ही लग्नेश और इस चार्ट में तो ख़ुद की राशि में होकर रुचक राजयोग भी बना रहे तो यहाँ तो कोई शंका का विषय ही नहीं है।
- शुक्र तो हमने समझा की मारक ही होते हैं और यहाँ इस लग्न चार्ट में कोई विशेष स्थिति तो बनी नहीं है तो यहाँ भी मारक ही हैं।
- बुध भी शुक्र की ही तरह मारक ही है क्योंकि उनके साथ भी कोई विशेष स्थिति नहीं बनी है।
- चंद्र योगकारक होते हैं लेकिन इस लग्न चार्ट में मारक हैं क्योंकि चंद्र त्रिक भाव में चले गए और इतना ही नहीं — वो नीच के भी हो गए — तो आपने देखा कि कैसे एक अति योगकारक ग्रह विषम परिस्थिति बनने के कारण मारक ग्रह की श्रेणी में आ गए; अब यहाँ चंद्र का उपाय करना आवश्यक हो जाता है।
- सूर्य तो ईष्ट देव हैं और वो कर्म भाव में बैठे हैं; सब कुछ सही है इसलिए सूर्य भी योगकारक हैं।
- गुरु तो योगकारक होते ही हैं और यहाँ भी धन भाव में जाकर बैठे हैं जोकि एक बहुत अच्छी जगह है तो ये भी योगकारक ही हुए।
- शनि इस लग्न में सम ग्रह होते हैं लेकिन इस चार्ट में शनि देव भाग्य भाव में जाकर बैठे हैं और भाग्य भाव का स्वामी भी योगकारक है, हालाँकि गुरु योगकारक ना भी होते तो भी शनि देव योगकारक ही हुए क्योंकि उनके पास दो अच्छे घर होने के साथ-साथ वो स्वयं एक अच्छे घर में जाकर बैठे हैं; तो अब धीरे ही सही पर परिणाम अच्छा ही होगा।
- राहु एकादश भाव में बैठे हैं और राहु के साथ एक नियम हमेशा याद रखना आप कि राहु 3H और 11H में चाहें जो कोई भी स्थिति क्यों ना बनी हुई हो लेकिन यहाँ राहु हमेशा योगकारक ही होते हैं और यहाँ तो स्थिति भी बहुत अच्छी बनी हुई है — राहु जिस राशि में बैठे हैं वो उनके मित्र की राशि है और मित्र इस कुंडली में हमने अभी-अभी देखा कि योगकारक हैं इसलिए राहु यहाँ योगकारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
- केतु पंचम भाव में जरूर हैं लेकिन शत्रु की राशि में हैं इसलिए मारक हुए केतु देव।
राहु-केतु की गणना
- राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
- लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
- केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
- राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
- राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
- राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
- राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
- कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।
निष्कर्ष: मेष लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन
मेष लग्न कुंडली जातक को साहस, ऊर्जा और नेतृत्व प्रदान करती है। इस लग्न में जन्म लेने वाले लोग स्वभाव से पराक्रमी, स्वतंत्र विचारों वाले और तेज़ निर्णय लेने वाले होते हैं। जीवन में सफलता और असफलता का संतुलन उनके ग्रहों की स्थिति और दशा-अंतर्दशा पर निर्भर करता है। जहाँ सूर्य, गुरु, चंद्र और मंगल शुभ फल देकर इन्हें ऊँचाइयों पर पहुँचाते हैं, वहीं शुक्र, शनि और राहु-केतु की अशुभ स्थिति बाधाएँ उत्पन्न करती है।
इसलिए मेष लग्न जातकों को चाहिए कि वे हमेशा अपने योगकारक ग्रहों को मज़बूत करें और मारक ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने का प्रयास करें। सूर्य और गुरु के प्रभाव को बढ़ाने के लिए आध्यात्मिकता, दान-पुण्य और धर्म-कर्म का सहारा लेना लाभकारी होता है। मंगल की ऊर्जा को सही दिशा देने के लिए संयम, अनुशासन और साहस का सकारात्मक उपयोग करना चाहिए।
मारक ग्रहों के प्रभाव को कम करने हेतु शुक्र और शनि के उपाय जैसे – शिव की उपासना, दान, गरीबों की सेवा और संयमित जीवनशैली अपनाना बेहद प्रभावी माने जाते हैं। राहु-केतु के दोषों से बचाव के लिए मंत्र-जप और पूजा-पाठ के साथ-साथ सत्कर्म करना आवश्यक है।
मुख्य मार्गदर्शन:
- योगकारक ग्रहों को बलवान बनाने के लिए नियमित पूजा-पाठ और सकारात्मक कर्म करें।
- क्रोध, अधीरता और जल्दबाज़ी से बचें, क्योंकि मंगल प्रधान होने के कारण ये स्वभाव में अधिक होते हैं।
- मारक ग्रहों के उपाय अपनाकर जीवन में आने वाले संकटों को कम किया जा सकता है।
- आत्मविश्वास और परिश्रम मेष लग्न जातक की सबसे बड़ी शक्ति हैं, इन्हें सही दिशा दें।
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- मकर लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।
- कुंभ लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।
- मीन लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।
