वृषभ लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह।

Vrish Lagna Kundli ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह लग्न के जातक जीवन में सुख-सुविधाओं, घर-परिवार को सबसे ज़्यादा महत्व देते हैं। इस कुंडली में योगकारक ग्रह जीवन को शक्ति और सफलता की ओर ले जाते हैं, वहीं मारक ग्रह कठिनाइयाँ और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि वृषभ लग्न जातकों के लिए ग्रहों का सही आकलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। तो इन्हीं सब बातों को लेकर हम आज के विषय का श्री गणेश करते हैं; नमस्ते! Anything that makes you feel connected to me — hold on to it. मैं Aviral Banshiwal, आपका दिल से स्वागत करता हूँ|🟢🙏🏻🟢

वृषभ लग्न का महत्व

वृषभ लग्न (Vrish Lagna Kundli) ज्योतिष में स्थिरता, धैर्य और भौतिक सुख-सुविधाओं का प्रतीक माना जाता है। इस लग्न के जातक सामान्यतः व्यावहारिक, परिश्रमी और जीवन के प्रति स्थायी दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। इन्हें जीवन में सुरक्षा, आराम और स्थायित्व बेहद प्रिय होता है।

वृषभ लग्न का स्वामी शुक्र ग्रह है, जो सौंदर्य, प्रेम, कला और भौतिक वैभव का कारक माना जाता है। इस कारण इस लग्न में जन्मे लोग आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं और कला, संगीत, व्यवसाय या रचनात्मक क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हैं। शुक्र का प्रभाव इन्हें विलासिता और भौतिक सुखों की ओर भी प्रेरित करता है।

वृषभ लग्न जातकों की सबसे बड़ी शक्ति इनका धैर्य और दृढ़ निश्चय होता है। ये लोग किसी भी कार्य को जल्दी छोड़ते नहीं, बल्कि निरंतर प्रयास करते हैं और अंततः सफलता प्राप्त करते हैं। लेकिन दूसरी ओर, इनकी सबसे बड़ी कमजोरी जिद और हठ भी हो सकती है। यदि ग्रह स्थिति अशुभ हो तो ये स्वभाव में आलसी और भौतिकतावादी भी बन सकते हैं।

वृषभ लग्न कुंडली में ग्रहों का वर्गीकरण

हर लग्न के अनुसार ग्रहों का शुभ-अशुभ स्वभाव बदल जाता है। जिस ग्रह का संबंध केंद्र और त्रिकोण भाव से होता है, वह शुभ फलदायक माना जाता है; वहीं, जिन ग्रहों का संबंध षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव से होता है, वे अशुभ प्रभाव देते हैं। वृषभ लग्न कुंडली में भी ग्रहों का वर्गीकरण इन्हीं आधारों पर किया जाता है।

लग्नेश शुक्र इस लग्न का सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है, जो जातक के व्यक्तित्व, आकर्षण और भौतिक सुखों का कारक होता है। शनि इस लग्न में योगकारक ग्रह बनता है क्योंकि वह नवम (भाग्य) और दशम (कर्म) भाव का स्वामी है। बुध पंचम और द्वितीय भाव का स्वामी होकर शुभ फल देता है। वहीं, सूर्य, चंद्रमा और राहु-केतु का प्रभाव परिस्थितियों के अनुसार बदलता है। दूसरी ओर, मंगल और गुरु को प्रायः अशुभ माना जाता है क्योंकि ये अष्टम और द्वादश भाव से जुड़े होते हैं।

वृषभ लग्न में ग्रहों का सामान्य वर्गीकरण

ग्रहवर्गीकरणकारण / भूमिका
शुक्र (लग्नेश)शुभव्यक्तित्व, सौंदर्य, प्रेम और सुख-सुविधाओं का कारक।
शनिअति शुभ (योगकारक)नवम (भाग्य) और दशम (कर्म) भाव का स्वामी।
बुधशुभद्वितीय और पंचम भाव का स्वामी, बुद्धि और धन का दाता।
सूर्यसमचतुर्थ भाव का स्वामी, सुख और मातृभाव पर प्रभाव।
चंद्रमामिश्रिततृतीय भाव का स्वामी, पराक्रम और साहस का कारक।
गुरुअशुभअष्टम और एकादश भाव का स्वामी, बाधाओं और छोटी-मोटी बीमारियों का कारण।
मंगलअशुभसप्तम और बारहवें भाव का स्वामी, वैवाहिक कलह और व्यय का दाता।
राहु-केतुपरिस्थितिजन्यजिस भाव में स्थित हों, उसी के अनुसार शुभ-अशुभ फल देते हैं।

योगकारक ग्रह कौन-कौन से हैं?

ज्योतिष शास्त्र में योगकारक ग्रह वे होते हैं जो केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (1, 5, 9) भावों का स्वामी बनकर जातक के जीवन में अत्यधिक शुभ परिणाम प्रदान करते हैं। ये ग्रह जब मज़बूत स्थिति में हों तो जातक के जीवन में राजयोग, धनयोग और भाग्यवृद्धि के संयोग बनते हैं। लेकिन प्रत्येक लग्न कुंडली में कुछ अच्छा होता है तो कुछ बुरा; सबकुछ किसी एक में नहीं होता है:-

वृषभ लग्न कुंडली में प्रमुख योगकारक ग्रह शनि है।

  • शनि दशम भाव (कर्म) और नवम भाव (भाग्य) का स्वामी होता है।
  • इस कारण शनि भाग्य और कर्म का मेल कराकर जातक को उच्च पद, सम्मान और सफलता दिलाता है।
  • शनि की शुभ स्थिति राजयोग का निर्माण करती है और जातक जीवनभर स्थिर प्रगति करता है।

इसके अतिरिक्त बुध भी शुभ फलदायी माना जाता है क्योंकि यह द्वितीय (धन) और पंचम (विद्या, संतान) भाव का स्वामी है। बुध यदि शुभ ग्रहों से युति करे या मजबूत हो तो जातक को धन, बुद्धिमत्ता और शिक्षा में प्रगति प्राप्त होती है।

लग्नेश शुक्र स्वयं भी योगकारक प्रभाव देता है। शुक्र जातक को आकर्षक व्यक्तित्व, भौतिक सुख, कला, प्रेम और वैभव प्रदान करता है। यदि शुक्र बलवान हो तो जातक विलासिता और समृद्धि का जीवन जीता है।

वृषभ लग्न के प्रमुख योगकारक ग्रह

  • शनि (नवम और दशम भाव का स्वामी): भाग्य + कर्म का मेल कराकर राजयोग देता है।
  • बुध (द्वितीय और पंचम भाव का स्वामी): धन, विद्या और संतान सुख प्रदान करता है।
  • शुक्र (लग्नेश): व्यक्तित्व, सौंदर्य और भौतिक सुखों का दाता।

वृषभ लग्न के लिए मुख्य शुभ योग

वृषभ लग्न कुंडली में जब योगकारक ग्रह (विशेषकर शनि, बुध और शुक्र) मज़बूत स्थिति में हों और एक-दूसरे से शुभ युति या दृष्टि का संबंध बनाएँ, तो जातक के जीवन में अनेक प्रकार के शुभ योग बनते हैं। ये योग व्यक्ति को धन, वैभव, सामाजिक प्रतिष्ठा और उच्च पद प्रदान करते हैं।

  • राजयोग
  1. जब शनि (नवम व दशम भाव का स्वामी) और बुध (द्वितीय व पंचम भाव का स्वामी) का संबंध बनता है, तब जातक को उच्च पद और समाज में सम्मान प्राप्त होता है।
  2. शनि और शुक्र का शुभ मेल भी राजयोग देता है, जिससे जातक प्रशासनिक क्षेत्र, राजनीति या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करता है।
  • धनयोग
  1. बुध (धन भाव का स्वामी) और शुक्र (लग्नेश) यदि एक-दूसरे से संबंधित हों तो धनयोग बनता है।
  2. यह योग जातक को जीवनभर आर्थिक स्थिरता, व्यापारिक सफलता और वैभव देता है।
  • गजकेसरी योग
  1. यदि चंद्रमा और गुरु 3H में युति बनाएँ तो गजकेसरी योग बनता है।
  2. यह योग जातक को विद्या, समाज में आदर और लोकप्रियता प्रदान करता है।
  • धर्म-कर्माधिपति योग
  1. नवम भाव का स्वामी शनि और दशम भाव का स्वामी भी शनि ही है, इसलिए यदि शनि बलवान हो और दशम भाव में हो और लग्नेश मजबूत हो तो अकेले ही धर्म-कर्माधिपति योग का निर्माण करता है।
  2. यह योग जातक को कर्मयोगी बनाता है और जीवनभर शुभ अवसर प्रदान करता है।
  • लक्ष्मी योग
  1. यदि शुक्र बलवान हो और पंचम भाव से संबंध बनाए तो लक्ष्मी योग बनता है।
  2. इस योग से जातक को भौतिक सुख, वैभव और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  3. शुक्र-बुध की युति वैसे भी लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण करती है।

मारक ग्रह कौन होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र में मारक ग्रह वे कहलाते हैं जो जातक को अपने समय में नकारात्मक प्रभाव देते हैं या जीवन में बड़े संकट और बाधाओं का कारण बनते हैं। सामान्यतः सप्तम भाव का स्वामी मंगल मारक हो और लग्नेश भी अशुभ हो जाये तो मंगल दशा-अंतर्दशा में सक्रिय होकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ, आर्थिक हानि या जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मारक ग्रह हमेशा मृत्यु का ही कारण नहीं बनते। कई बार ये ग्रह लंबे समय तक चलने वाली बीमारियाँ, पारिवारिक कलह, करियर में बाधाएँ और मानसिक तनाव भी प्रदान करते हैं। इसीलिए ज्योतिष में इनका महत्व विशेष माना गया है।

वृषभ लग्न में भी जब कोई ग्रह त्रिक भाव से संबंध रखता है और वो मारक हो जाए, तो उसकी प्रवृत्ति मारक बन जाती है। इसके अलावा, राहु-केतु और शनि जैसे ग्रह अगर इन भावों में स्थित हों या इनसे संबंधित हों और किसी तरह मारक हो जायें तो उनका मारक प्रभाव और भी प्रबल हो सकता है।

वृषभ लग्न कुंडली में प्रमुख मारक ग्रह

वृषभ लग्न में द्वादश भाव (मेष) और सप्तम भाव (वृश्चिक) तथा अष्टम भाव (धनु) और एकादश भाव (मीन) क्रमशः मंगल और गुरु के अधीन आते हैं। इस कारण से इन दोनों भावों के स्वामी ग्रह – गुरु और मंगल – को मारक ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है। हालांकि ग्रहों की वास्तविक स्थिति कुंडली में यदि अच्छी हो तो इनके प्रभाव बदल सकते हैं।

  • मंगल (Mars) – मुख्य मारक ग्रह
  1. सप्तम भाव (वैवाहिक जीवन) का स्वामी मंगल है।
  2. मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक को दुर्घटनाएँ, वैवाहिक कलह और रक्त संबंधी रोगों का सामना करना पड़ सकता है।
  3. यदि मंगल अशुभ स्थिति में हो तो यह जीवन में अचानक संकट भी ला सकता है।
  • गुरु (Jupiter) – उप-मारक
  1. वृषभ लग्न में गुरु अष्टम और एकादश भाव का स्वामी होता है।
  2. अष्टम भाव से संबंध होने के कारण गुरु भी उप-मारक की भूमिका निभाता है।
  3. दशा-अंतर्दशा में गुरु जातक को स्वास्थ्य संकट, बाधाएँ और दीर्घकालिक परेशानियाँ दे सकता है।
  • राहु-केतु – परिस्थितिजन्य मारक
  1. यदि राहु या केतु त्रिक भाव में स्थित हों तो ये भी गंभीर संकट और दुर्घटनाएँ दे सकते हैं।
  2. राहु-केतु का प्रभाव हमेशा जिस भाव और ग्रह से संबंधित होता है, उसी के अनुसार फलित होता है।

शुभ-अशुभ ग्रहों का जीवन पर प्रभाव

वृषभ लग्न कुंडली में ग्रहों का प्रभाव जातक के जीवन के हर क्षेत्र पर गहराई से पड़ता है। जहाँ शुभ ग्रह (शुक्र, शनि, बुध) जातक को स्थिरता, समृद्धि और सफलता प्रदान करते हैं, वहीं अशुभ ग्रह (मंगल, गुरु, चंद्र) जीवन में उतार-चढ़ाव और बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। इनका असर अलग-अलग जीवन क्षेत्रों पर इस प्रकार देखा जा सकता है –

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव
  1. शुभ ग्रह: शुक्र और शनि की मजबूत स्थिति से जातक को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु प्राप्त होती है।
  2. अशुभ ग्रह: मंगल और गुरु की अशुभ स्थिति दुर्घटनाएँ, रक्त रोग और मानसिक अशांति का कारण बन सकती है। गुरु की दशा में दीर्घकालिक रोग संभव हैं।
  • करियर और धन पर प्रभाव
  1. शुभ ग्रह: शनि (धर्म-कर्माधिपति योग) और बुध (धन व पंचम भाव स्वामी) जातक को करियर में सफलता, व्यवसायिक लाभ और आर्थिक स्थिरता दिलाते हैं।
  2. अशुभ ग्रह: गुरु और मंगल की अशुभ स्थिति नौकरी में बाधाएँ, व्यापार में हानि और आर्थिक उतार-चढ़ाव का कारण बन सकती है।
  • विवाह और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
  1. शुभ ग्रह: शुक्र (लग्नेश) और बुध (द्वितीय भाव स्वामी) यदि शुभ हों तो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और पारिवारिक सुख मिलता है।
  2. अशुभ ग्रह: मंगल सप्तम भाव का स्वामी होने के कारण विवाह में कलह, देरी और वैवाहिक जीवन में तनाव ला सकता है। राहु-केतु की उपस्थिति वैवाहिक जीवन को और भी अस्थिर बना सकती है।
  • मानसिक और सामाजिक जीवन पर प्रभाव
  1. शुभ ग्रह: शुक्र और शनि जातक को समाज में प्रतिष्ठा, धैर्य और संतुलन देते हैं।
  2. अशुभ ग्रह: गुरु और कमजोर चंद्रमा से जातक को मानसिक तनाव, असमंजस और सामाजिक विवादों का सामना करना पड़ सकता है।

वृषभ लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह कैसे निकालते हैं?

Vrish Lagna Kundli का ये भाग आपको बहुत अच्छे से समझना है क्योंकि अगर ये समझ आ गया तो अभी तक जो हुआ वो सब समझ आयेगा और आगे आने वाली लग्न कुंडली का विश्लेषण भी बहुत आसान हो जाएगा; मैं ये समझ सकता हूँ कि शुरुआत में आपको शायद बार-बार पढ़ना पढ़े और बहुत माथा पच्ची जैसा लगे लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ कि अगर शुरुआत में कर ली मेहनत तो आगे आपको ये सब सोचना भी नहीं पड़ेगा; तो चलिए अब शुरू करते हैं कि कैसे कोई ग्रह योगकारक और मारक होता है।

चित्र – 1

  1. ये वृष लग्न की कुंडली है क्योंकि 1H = पहले घर में, 2(वृषभ राशि) है; लग्न क्या होता है? ये हमने कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष वाले लेख से समझा था।
  2. 1H के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है और लग्नेश सम्पूर्ण कुंडली का मुखिया होता है क्योंकि इसी मुखिया ग्रह के आधार पर ही अन्य सभी ग्रह योगकारक या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। 1H में नंबर 2 लिखा है यानि दूसरी राशि और हमको पता है कि दूसरी राशि वृषभ होती है क्योंकि हमने कुंडली कैसे देखें? लेख को पढ़ा है और वृषभ राशि के स्वामी शुक्र होते हैं तो लग्नेश हुए शुक्र।
  3. लग्नेश हमेशा योगकारक होते हैं जब तक लग्नेश नीच के ना हों और त्रिक भाव (6H-8H-12H) में ना हों। लग्नेश को यहाँ 1H और 6H मिला है जोकि व्यक्तित्व और ऋण का है। कुंडली के किस घर से क्या-क्या फलकथन होता है ये हमने कुंडली के 12 भाव से क्या क्या देखते हैं? इस लेख से समझा था।
  4. अब बात करते हैं 2H की जहाँ 3 नंबर लिखा है अर्थात मिथुन राशि; एक अष्टम-द्वादश सिद्धांत होता है जिसको हम आगे जाके बहुत अच्छी तरह समझेंगे लेकिन फ़िलहाल हम ये समझते हैं कि वो सिद्धांत कहता है कि अगर 2H और 7H का स्वामी लग्नेश का मित्र है तो योगकारक की श्रेणी में आएगा अन्यथा मारक की श्रेणी में आएगा।
  5. यहाँ 2H के स्वामी बुध हैं और 7H के स्वामी मंगल हैं और मंगल – लग्नेश शुक्र के शत्रु है; जबकि बुध – शुक्र के मित्र है। इसलिए मंगल मारक की श्रेणी में आते हैं और बुध योगकारक की श्रेणी में आते हैं।
  6. 3H जिसमें लिखा है 4 नंबर जोकि होती है कर्क राशि – जिसके स्वामी होते हैं चंद्र देव और चंद्र देव लग्नेश शुक्र के शत्रु भी हैं और उनको घर भी संघर्ष वाला मिला है इसलिए चंद्र देव भी मारक की श्रेणी में आएंगे।
  7. 4H जिसमें लिखा है 5 नंबर यानि सिंह राशि जिसके स्वामी हैं सूर्य देव, जो बने हैं सुखेश लेकिन लग्नेश के शत्रु हैं। सूर्य देव को एक बहुत अच्छा घर मिला है; इसी कारण सूर्य देव वृषभ लग्न कुंडली में सम ग्रह की श्रेणी में आयेंगे।
  8. 5H जिसमें लिखा है 6 नंबर यानि कन्या राशि जिसके स्वामी हैं बुध देव, जो बने हैं पंचमेश और लग्नेश के अति मित्र भी हैं। कुंडली के पंचमेश को ईष्ट देव भी कहा जाता है; बुध देव को एक बहुत अच्छा घर मिला है और वो लग्नेश के मित्र भी हैं इसलिए योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
  9. 6H की हम बात कर चुकें हैं क्योंकि यहाँ तुला राशि है जिसके स्वामी शुक्र देव हैं और 7H की भी बात कर चुके हैं क्योंकि 7H के स्वामी मंगल हैं और मंगल – लग्नेश शुक्र के शत्रु है, मंगल को एक और घर मिला है 12H तो इन दोनों जगह मंगल ग़लत ही परिणाम देंगे।
  10. आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ कर लेते हैं क्योंकि आगे जाके या अभी हो सकता है कि एक प्रश्न आपके मन-मस्तिष्क में बन गया हो; किसी भी ग्रह को त्रिकोण भाव { (1H-5H-9H) [1H केंद्र और त्रिकोण दोनों में आता है] } मिले और त्रिक भाव (6H-8H-12H) मिले तो उस ग्रह को त्रिक भाव का दोष नहीं लगता है और वो ग्रह योगकारक की श्रेणी में ही रहता है।
  11. 1H-5H-9H; 1H तो लग्नेश का ही होता है – यदि लग्नेश की एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उसको दोष नहीं लगेगा, ठीक इसी तरह ईष्ट देव (5H) – भाग्येश (9H) हमेशा लग्नेश के मित्र होते हैं और इनकी एक राशि 6H-8H-12H में होगी तो उनको भी लग्नेश की तरह दोष नहीं लगता है और ये तीनों ग्रह लग्नेश-ईष्ट देव-भाग्येश हमेशा योगकारक रहते हैं।
  12. अब बात करते हैं 8H की जहाँ लिखा है 9H यानि धनु राशि, जिसके स्वामी है गुरु देव जिनको एक और घर मिला है जो है लाभ का घर और छोटी मोटी बीमारियों का घर 11H और गुरु लग्नेश शुक्र के शत्रु भी हैं इसलिए गुरु मारक ग्रह की श्रेणी में आएंगे।
  13. अब बात करते हैं 9H और 10H जहाँ क्रमशः मकर और कुंभ राशियाँ हैं जोकि शनि देव की राशियाँ हैं; शनि देव लग्नेश के अति मित्र भी हैं और शनि देव भाग्येश और कर्मेश भी बने हुए हैं तो शनि देव योगकारक की श्रेणी में आएंगे।
  14. अब बचे राहु-केतु जिनका निर्धारण यथार्थ कुंडली विश्लेषण के पश्चात् होता है कि ये दो ग्रह योगकारक हैं या मारक क्योंकि इन दोनों ग्रह की कोई राशि नहीं होती और ये छाया ग्रह हैं इसलिए इनका निर्धारण भी अभी नहीं हो सकता है।
योगकारकसम मारक
शुक्र सूर्य चंद्र
बुध मंगल
शनि गुरु

चित्र – 2

ये एक व्यक्ति ने कमेंट करके अपने जन्म का विवरण भेजा और आप भी भेज सकते हो; तो ये उनका लग्न चार्ट है अब हम इससे समझते हैं कि कौनसे ग्रह योगकारक हुए और कौनसे मारक:-

योगकारक मारक
शुक्र चंद्र
बुध गुरु
सूर्य शनि
मंगल राहु
केतु
  1. शुक्र तो लग्नेश हैं और मीन राशि में हैं जोकि उनकी उच्च की राशि है तो शुक्र तो योगकारक होंगे ही।
  2. बुध ईष्टदेव हैं और मीन राशि में नीच के हैं लेकिन फिर भी योगकारक हैं क्योंकि वहाँ शुक्र के होने से बुध का नीच भंग हो गया और नीच भंग राजयोग बन गया।
  3. सूर्य तो सम ग्रह थे लेकिन यहाँ भी वो किसी ग़लत घर में नहीं है; लाभ वाले घर में हैं एक अच्छे घर में हैं इसलिए योगकारक होंगे।
  4. अब देखो मंगल मारक थे इस लग्न कुंडली में लेकिन वो योगकारक हो गए क्योंकि मंगल ने विपरीत राजयोग बना दिया इसलिए ही मंगल योगकारक हुए हैं।
  5. चंद्र पहले से ही संघर्ष के दाता बने थे अब तो वो त्रिक भाव में चले गए तो मारक ग्रह की श्रेणी में आ गए।
  6. गुरु कन्या राशि में हैं और गुरु मारक होते हैं इस कुंडली में; उनके साथ कोई विशेष स्थिति नहीं बनी जैसे मंगल के साथ बनी इसलिए गुरु मारक ग्रह ही रहेंगे।
  7. शनि जो अति योगकारक ग्रह थे लेकिन ग़लत घर में जाने की वजह से वो मारक हुए हैं और अब मजबूरी में उनको ग़लत परिणाम देना होगा; इसलिए यहाँ जरूरी है कि सबसे पहले शनि का उपाय किया जाये।
  8. राहु मारक हुए क्योंकि शत्रु की राशि में हैं और केतु जरूर मित्र की राशि में हैं लेकिन होंगे मारक क्योंकि मित्र ही मारक है, यदि मित्र योगकारक होते तो केतु भी योगकारक होते।
  9. इस लग्न कुंडली में मंगल जो अति मारक ग्रह थे वो विपरीत राजयोग बनाने की वजह से योगकारक हो गए और जो अति योगकारक ग्रह थे शनि वो ग़लत घर में जाने की वजह से मारक ग्रह की श्रेणी में आ गए —, ऐसे ही परिवर्तन लग्न कुंडली में हो जाते हैं जो विश्लेषण करते रहने से आपको धीरे-धीरे सब आ जायेंगे।

राहु-केतु की गणना

  • राहु-केतु यदि मित्र की राशि में हुए और मित्र योगकारक है तो ये भी योगकारक होंगे;
  • लेकिन अगर शत्रु की राशि में हुए तो मारक होंगे;
  • केतु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं, भले ही शत्रु मारक हो;
  • राहु उच्च के होने पर योगकारक होते हैं यदि मित्र मारक हों फिर भी;
  • राहु-केतु का कभी भी नीच भंग नहीं होता है इसलिए नीच अवस्था होने पर हमेशा मारक ही रहेंगे;
  • राहु 3H और 11H में नीच हों या शत्रु राशि में हों या फिर मित्र राशि में होने पर मित्र मारक ही क्यों ना हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो योगकारक ही रहते हैं;
  • राहु-केतु त्रिक भाव (6H-8H-12H) में होने पर मारक होते हैं;
  • कुछ अपवाद वालीं बातें भी होती है जैसे केतु का 8H में होना और राहु का 6H-12H में होना कभी-कभी किसी-किसी कुंडली में अच्छा परिणाम देते हैं जिसका पता कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात ही लगता है — और आपको भी ये धीरे-धीरे सब आ जाएगा बस लगे रहिए और बने रहिए।

निष्कर्ष: वृषभ लग्न जातक के लिए मार्गदर्शन

वृषभ लग्न कुंडली जातक को स्थिरता, धैर्य और भौतिक सुखों की ओर प्रेरित करती है। इस लग्न के स्वामी शुक्र जीवन में आकर्षण, कला और वैभव प्रदान करते हैं, जबकि शनि योगकारक ग्रह बनकर भाग्य और कर्म के मेल से जातक को उन्नति और उच्च पद पर पहुँचाता है। बुध भी धन और विद्या का कारक बनकर सफलता का मार्ग खोलता है।

लेकिन दूसरी ओर, मंगल और गुरु (सप्तम व अष्टम भाव से संबंध होने के कारण) मारक ग्रह बनकर कठिनाइयाँ और संकट ला सकते हैं। गुरु अष्टम भाव से जुड़कर उप-मारक प्रभाव देता है, जबकि राहु-केतु की स्थिति अचानक घटनाएँ और मानसिक अशांति का कारण बन सकती है। इसीलिए जातक को हमेशा अपने शुभ ग्रहों को बलवान करने और अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

वृषभ लग्न जातक के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि वे अपने स्वभाव में जिद और हठ को त्यागकर संतुलित जीवन अपनाएँ। साथ ही, शनि और शुक्र की उपासना, दान-पुण्य और अनुशासित जीवनशैली से जीवन में संतुलन और सफलता प्राप्त की जा सकती है।

मुख्य मार्गदर्शन:

  • योगकारक ग्रह शनि, शुक्र और बुध को बलवान करने का प्रयास करें।
  • मारक ग्रह मंगल व गुरु से सावधान रहें और उनके उपाय करें।
  • गुरु और राहु-केतु के दोषों से बचने हेतु मंत्र-जप और आध्यात्मिक साधना करें।
  • धैर्य, परिश्रम और अनुशासन वृषभ लग्न जातक की सबसे बड़ी शक्ति हैं।

अंतिम संदेश

यदि आपको यह लेख ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक लगा हो, तो कृपया इसे अपने मित्रों और परिजनों के साथ साझा करें। आपकी छोटी-सी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुत मूल्यवान है — नीचे कमेंट करके जरूर बताएं………………..

👇 आप किस विषय पर सबसे पहले पढ़ना चाहेंगे?
कमेंट करें और हमें बताएं — आपकी पसंद हमारे अगले लेख की दिशा तय करेगी।

शेयर करें, प्रतिक्रिया दें, और ज्ञान की इस यात्रा में हमारे साथ बने रहें।

📚 हमारे अन्य लोकप्रिय लेख
अगर ज्योतिष में आपकी रुचि है, तो आपको ये लेख भी ज़रूर पसंद आएंगे:

बारह लग्नों में योगकारक और मारक ग्रहों का विश्लेषण।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
WhatsApp Chat
जीवन की समस्याओं का समाधान चाहते हैं? हमसे पूछें!